बनारस की इस शक्तिपीठ में बाबा विश्वनाथ रोजाना करते हैं विश्राम

बनारस की इस शक्तिपीठ में बाबा विश्वनाथ रोजाना करते हैं विश्राम

 

पुकारते ही भक्तों का कष्ट हर लेती हैं मां विशालाक्षी

दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी में मां जगदंबे के 51 पीठों में से एक है मां विशालाक्षी का दरबार। मान्यता है कि देवाधिदेव महादेव भगवान शिव इस शक्तिपीठ में रोजाना विश्राम करने आते हैं। ममता, त्याग बलिदान और शक्ति जैसे अद्भुत गुणों के चलते इस शक्तिपीठ में भक्तों के पुकारते ही मां विशालाक्षी उनके कष्टों का निवारण कर देती हैं। राजा हो या प्रजा, मां विशालाक्षी के दरबार में सब बराबर हैं। यहां सच्चे मन से की गई पूजा जरूर फलीभूत होती है।

पौराणिक मान्यताओं के चलते काशी का यह पौराणिक मंदिर काफी लोकप्रिय है। मां विशालाक्षी मंदिर की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। मां के दरबार में आमजन से लेकर देश के बड़े-बड़े दिग्गज और नेता तक पहुंचते हैं। जिनके शीश मां के दरबार में झुकते हैं, उनके कष्टों का निवारण जरूर हो जाता है। मां विशालाक्षी के चमत्कार के चलते नवरात्र और सावन में इस मंदिर में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर से बेहद करीब मीरघाट पर स्थित है मां विशालाक्षी का दरबार। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां का विशाल नेत्र होने के कारण इस देवी का नाम विशालाक्षी पड़ा। मां विशालाक्षी का मूल विग्रह पीछे है। सामने है उनकी प्रतिष्ठित मूर्ति। मूल विग्रह को स्पर्श करना वर्जित है। यहां दान, जप और यज्ञ करने पर सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसी मान्यता है कि यदि मां के दरबार में 41 मंगलवार कुमकुम का प्रसाद चढ़ाया जाए भक्तों की झोली भर जाती है।

मां विशालाक्षी के दरबार में हर साल लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। दुनिया भर से लोग यहां धूप, दीप, सुगंधित हार, मोतियों का आभूषण और नए कपड़े चढ़ाने आते हैं। मां का आशीर्वाद पाने और पुण्य लाभ कमाने के लिए आने वालों में बंगाल, बिहार, तमिलनाडु, केरल, गुजरात और आंध्र प्रदेश के श्रद्धालु ज्यादा होते हैं। नवरात्र के समय तो इस मंदिर में पैर रखने की जगह होती। मंदिर के महंत राजनाथ तिवारी के मुताबिक मां विशालाक्षी मात्र सुख-समृद्धि देने वाली देवी ही नहीं, यह अपने भक्तों को राजनीति में शिखर पर पहुंचा देती है।

मंदिर में प्रतिष्ठापित देवी मां की प्रतिमा स्वयंभू है। वर्ष 1968 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था। समय काल से प्रभावित होने पर वर्ष 1971 में शंकराचार्यों की आम सहमति से श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य ने इस मंदिर में मूर्ति की स्थापना कराई। इसके बाद नियमित रूप से दोनों विग्रहों की पूजा-अर्चना की जाती है। मां विशालाक्षी  के मंदिर में हर 12 वर्ष पर कुंभ अभिषेक का आयोजन किया जाता है। इस दिन भक्तों की सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान शिव के अपमान से दुखी होकर उनकी पत्नी सती ने अपने प्राण त्याग दिए थे। तब शंकरजी बेहद क्रोधित हो उठे थे और तांडव करने लगे थे। भगवान के गुस्से को शांत करने और सृष्टि की रक्षा के लिए देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में विभक्त कर दिया। भगवान विष्णु द्वारा विभक्त चक्र चलाने के बाद देवी का मुंह काशी में गिरा। जिस स्थान पर सती का अंग गिरा उसी जगह है मां विशालाक्षी की मूर्ति। पौराणिक काल से ही इस मंदिर को शक्तिपीठ की मान्यता मिली है।

मां विशालाक्षी के मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए दक्षिण भारत के भक्त ज्यादा आते हैं। अगर आप इस मंदिर में दर्शन-पूजन करना चाहते हैं तो वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से गोदौलिया आएं। वहां से दशाश्वमेध रोड से बाबा विश्वनाथ मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचें। द्वार में घुसते ही सरस्वती फाटक की ओर मुड़ें। यहां से लाहौरी टोला होते हुए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इस शक्तिपीठ के पास कई अन्य मंदिर भी हैं, जहां पूजा-अर्चना कर पुण्य कमाया जा सकता है। विशालाक्षी मंदिर में पूजा करने के बाद बाबा विश्वनाथ का भी जलाभिषेक किया जा सकता है।

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