बनारस के रघुवंशी के दीवाने बादल और चिदंबरम

नाज है इन पर
विजय विनीत
अपनी चकाचौध और रंगीनियों से दुनिया भर के पर्यटकों को लुभाने वाले थाईलैंड की एप्पल बेर की बनारस में धूम है। इसकी खेती शुरू की है सूबे के जाने-माने अमरूद उत्पादक शैलेंद्र सिंह रघुवंशी ने। चोलापुर के बबियांव गांव में है इनकी नर्सरी और बेर-अमरूद के बाग। लोकप्रियता का आलम यह है कि इनके बाग में लगे एप्पल बेर के पौधों की पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने अपने फार्म हाउस के लिए एडवांस बुकिंग कराई है। इस साल एप्पल बेर के कुछ ही पौधे तैयार हुए । नेता, नौकरशाह और कुछ फार्म हाउसों के मालिक ले गये। एप्पल बेर के पेड़ों पर घुंघरू की तरह लकदक फलों को जिसने देखा, पौधों का एडवांस आर्डर दे दिया। एप्पल बेर के पौधों के उत्पादक श्री रघुवंशी कहते है कि पूर्वांचल के बागवानों को अभी कुछ साल इंतजार करना पड़ेगा।
एप्पल बेर की दीवानगी की वजह यह है कि इसके झाड़ीनुमा पौधों में बेर के फल दो बार लगते हैं। बेर के फलों का आकार और रंग सेब की तरह होता है। दो से ढाई सौ ग्राम के एक-एक बेर। मिठास अधिक। दो बेर खा लीजिए, पेट भर जाएगा। शैलेंद्र सिंह रघुवंशी ने कोलकाता की एक प्रदर्शनी में एप्पल बेर देखी थी। काफी जद्दोजहद के बाद उन्हें करीब 200 पौधे मिले। ट्रायल के तौर पर लगाया। एक ही साल में फूल लगे और फलने लग गई बेर। फल पके तो दंग रह गये। बाग देखने के लिए बबियांव आने वाले वैज्ञानिकों से बागवानी में दिलचस्पी लेने वाले नेताओं और नौकरशाहों को खबर मिली। कुछ खुद आये और अपने प्रतिनिधियों को भेजा। जिसने भी पेड़ों पर सेबनुमा रंगीन बेर देखा और खाया वह मुरीद हो गया। स्वाद में बेहद मीठे एप्पल बेर की देश भर में डिमांड है।
रघुवंशी को लगता है कि वह दो-चार साल बाद ही यूपी के बागवानों को भरपूर संख्या एप्पल बेर के पौधे मुहैया करा पायेंगे। इस बेर के पौधों में लगे फल जनवरी-फरवरी और जुलाई-अगस्त में पकते हैं। इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल के तमाम किसान श्री रघुवंशी की नर्सरी और बाग देखने आये। हर किसी ने एप्पल बेर के पौधों की डिमांड की। मनचाहा दाम भी देने को तैयार हुए, लेकिन कुछ चुनिंदा फार्मरों को ही वह अगले साल पौध देने को राजी हुए। एप्पल बेर के पौधों में बहुत कम कांटे होते हैं। सघन बागवानी के लिए इस बेर की खेती का कोई जवाब ही नहीं है।
बबियांव में शैलेंद्र के बाग में सभी प्रजातियों के अमरूद के पेड़ हैं। इनके पास थाईलैंड की अमरूद की वह प्रजाति भी है जिसका वजन 500 से 1000 ग्राम तक होता है। काफी कम बीज वाले इस अमरूद के फल काफी मीठे होते हैं। इसे 5 से 6 दिन तक बाजार में रखकर बेचा जा सकता है। वह पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को अमरूद के 8500 पौधे दे चुके हैं, जिसमें थाईलैंड का मशहूर अमरूद भी है। अगले साल वह एप्पल बेर के करीब 20 हजार पौधे तैयार करेंगे, जिसकी एडवांस बुकिंग हो चुकी है। शानदार बागवानी के लिए इन्हें पिछले साल मुंबई में एस्पी एमएल पटेल अवार्ड और एक लाख रुपये के पुरस्कार से नवाजा गया। ये अमरूद उत्पादक एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं।
हृदयाघात को काबू में करती है बेर
त्रेता युग में सबरी ने जूठे बेर भगवान राम को यूं ही नहीं खिलाये थे। गरीबों का मेवा समझी जाने वाली बेर सेब, अंगूर और अनार से भी गुणकारी है। बेर लीवर कैंसर, हार्ड अटैक, एलर्जी, एसोमिया (दिमाग की बीमारी) को मात देता है। खून को थक्का बनने और लीवर को बढ़ने से रोकता है। इसीलिए इसे स्टार न्यूट्रिएंट आफ द मिलेनियम कहा जाता है।
0 अनिल सिंह, उप निदेशक उद्यान, वाराणसी
बेर जूस बनाने की तकनीक
आक्सीकारक ही नहीं, जीवाणुरोधी होता है यह जूस
वाराणसी। देश में बिकने वाले सभी फलों के जूस बाजार में हैं, लेकिन बेर जूस कहीं नहीं मिलता। दरअसल देसी-विदेशी कंपनियां इसके महत्व को जानती ही नहीं है। वाराणसी के अदलपुरा स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आईआईवीआर) के वैज्ञानिक डा.तन्मय कुमार कोले बेर जूस बनाने की तकनीक इजाज कर चुके हैं। इसके लिए उन्हें राष्टÑपति पदक मिल चुका है।
डा.कोले के मुताबिक बेर जूस में मिलने वाला पॉलीफेनाल, सीई फ्लैबोनाइट और विटामिन सी हृदय, दिमाग, लीवर की बीमारियों के अलावा एल्जाइमर व पार्किसन सिड्रोम को काबू में करता है। यह त्वचा रोग में लाभकारी है। यह आक्सीकारक और जीवाणुरोधी है। डा.कोले के मुताबिक दूसरे फलों के मुकाबले बेर सस्ती मिलती है। इसलिए कम खर्च में इसका जूस तैयार किया जा सकता है। इस बनाने के लिए बेर को उबालने के बाद गूदा निकालने वाली मशीन में डालते हैं। बाद में एंजाइम ट्रीटमेंट करते हैं। एक घंटे के अंदर गूदा शर्बत (जूस) जैसा हो जाता है। इसे मोटे कपड़े में डालकर हाइड्रोलिक प्रेस से जूस निकालते हैं। सौ मिली ग्राम पानी में पंद्रह ग्राम बेल जूस डालकर उसमें लेमन जैसा फ्लेवर और चीनी डालते हैं। बाद में पाश्चराइज करने के बाद बेंजोएट डालकर प्रिजर्ब किया जाता है। छह से आठ महीने तक इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।