दुनिया के अनूठे शिल्पी हैं भदोही के कालीन निर्माता इम्तियाज अहमद

शिल्प कला के इस चितेरे को विरासत में मिला कार्पेट की कारीगरी का हुनर
नाज है इन पर
0 बेहद मुलायम और मखमली कालीन के अलावा चमड़े की शानदार कार्पेट का निर्यात भी करते हैं इम्तियाज
0 दीवारों पर टांगी जाने वाली नेचुरल लुक में छोटे आकार की कालीन और दरियों की कारीगरी में अव्वल है टेक्सटिको
विशेथ संवाददाता
भदोही। इम्तियाज अहमद देश के अनूठे शिल्पी हैं, जिन्होंने भदोही की कालीन को समूची दुनिया नई पहचान दिलाई है। नई सोच और नए नजरिये के दम पर इन्होंने हस्तशिल्प कला को उस शिखर पर पहुंचाया है जहां पहुंच पाना हर किसी के बूते में नहीं है। वो बेहद मुलायम और मखमली कालीन तो बनाते ही हैं, अपने हुनर से चमड़े की कालीन को गजब का लुक देते हैं। दीवारों पर टांगी जाने वाली नेचुरल लुक में छोटे आकार की कालीन का निर्माण और निर्यात भी करते हैं।
देश के जाने-माने कालीन निर्माता और निर्यातक इम्तियाज अहमद कहते हैं कि कालीन अब सिर्फ फर्श पर बिछाने की चीज नहीं रही। दीवारों पर पेंटिंग की बजाय खूबसूरत नेचुरल कालीन टांगने का वक्त आ गया है। उनकी कंपनी टेक्सटिको के उत्पाद पश्चिमी मुल्कों के दफ्तरों और घरों की शान हैं। दरअसल, इम्तियाज अहमद भदोही के ऐसे प्रयोगवादी शिल्पी हैं, जिन्होंने भदोही की कालीन को न सिर्फ अमेरिका में, बल्कि समूचे यूरोप में अपने हुनर का दबदबा कायम किया है। चीन और पाकिस्तान जैसे देश इनसे हस्तनिर्मित कालीन खरीदते हैं और विश्व बाजार में बेचते हैं। इम्तियाज को कालीन निर्माण और निर्यात का हुनर विरासत में मिला है। वो बताते हैं कि उनकी पांचवीं पीढ़ी ने भदोही की कालीन में तमाम उपलब्धियों का हुनर संजोया है।
भारत में कालीन उद्योग को लाने में मुगल बादशाह अकबर का नाम इतिहास में दर्ज है तो नए दौर में नए नजरिए के साथ भदोही की कालीन को दुनिया भर में परचम लहराने के लिए के लिए इम्तियाज को जाना जाता है। शायद इनका नाम भी आने वाली पीढ़ियां इतिहास में पढ़ेंगी।
इम्तियाज अहमद सिर्फ गलीचे ही नहीं बनाते। हस्त निर्मित दरियों के अलावा चमड़े के गलीचे भी तैयार करते हैं। चमड़े के गलीचों को देखकर हर कोई उनकी हुनर का अंदाज ही नहीं लगा सकता। वो ऐसे फनकार हैं जो गलीजों पर कुछ भी उकेर देते हैं। शहर की तस्वीर हो या फिर किसी युग पुरुष का पोट्रेट। कई बार अंदाज लगाना कठिन हो जाता है कि कार्पेट पर आकृतियां उकेरी गई हैं अथवा किसी पेंटिंग को उसमें समाहित कर दिया गया है। दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं होगा जहां कालीन के कद्रदान इम्तियाज के हुनर पर फिदा न हुए हों। इम्तियाज अहमद अपनी अनूठी कारीगरी का श्रेय अपनी उन पीढ़ियों को देते हैं जिनसे उन्हें यह हुनर विरासत में मिली है।
रफ्ता-रफ्ता निखरने लगी कालीन इंडस्ट्रीज की रंगत
भदोही। टेक्सटिको कंपनी के निदेशक इम्तियाज मानते हैं कि कोरोना ने कालीन उद्योग की कमर तोड़ने में कोई कसर बारी नहीं छोड़ी है। वो कहते हैं कि रफ्ता-रफ्ता अब कालीन उद्योग की रंगत फिर निखरने लगी है। वो बताते हैं कि भदोही से बनने वाले कालीन का 95 फीसदी निर्यात होता है। पूर्वांचल में करीब 20 लाख लोग इस उद्योग से जुड़े हैं। भारत का कालीन निर्यात 1960 में 436 करोड रुपये से शुरू होकर 2020 में 10,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर चुका है। उम्मीद है कि गंभीर प्रयासों से इस आंकड़े को जल्द दोगुना किया जा सकता है।
पूर्वांचल में मास्क बनाने का इकलौता कारखाना
भदोही। इम्तियाज अहमद सिर्फ गलीचे ही नहीं बनाते। कोविड से लड़ने के लिए इन्होंने लाकडाउन के दौरान मास्क बनाने का आटोमैटिक प्लांट लगाया। पूर्वांचल में मास्क बनाने का उनका इकलौता कारखाना है। वो कहते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी की परिकल्पना को साकार करने के लिए सरकार के सहयोग से उन्होंने मास्क बनाने का काम शुरू किया। हर महीने वह पचास लाख मास्क तैयार करते हैं। क्वालिटी उम्दा होने की वजह से उनका मास्क आसपास के जिलों में हाथो-हाथ बिक जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी मास्क की आपूर्ति करते हैं।