अतिथि देवो भव: की परंपरा में हकीकत का रंग भरेगी काशी
बनारसियों के घरों में ठहरेंगे दुनिया भर के हजारों प्रवासी भारतीय मेहमान
विजय विनीत
अनूठी संस्कृति और सभ्यता के लिए दुनिया भर में मशहूर काशी अगले साल नया इतिहास रचेगी। यह इतिहास अतिथियों के स्वागत-सत्कार का होगा। प्रवासी भारतीय दिवस पर दुनिया के 194 देशों के करीब 7000 से अधिक मेहमानों की खिदमत का जिम्मा बनारसियों को सौंपा गया है। पीएम नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि बनारस के लोग अतिथि देवो भव: की परंपरा में हकीकत का रंग भरें। दरअसल इसी परंपरा ने काशी ही नहीं, समूचे भारत में पर्यटन को एक नई पहचान दी है। साल 2019 के जनवरी में होने वाले इस कार्यक्रम का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ करेंगे।
बनारस में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कोई आयोजन होने जा रहा है। इसके नेपथ्य में है बनारस के पर्यटन का विकास। ऐसा विकास जो युवाओं में सुनहरे करियर की उम्मीद भी जगाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस के पर्यटन की, बनारस के खान-पान की, बनारस के संगीत की, बनारस की कला की, बनारस की आस्था की, बनारस की अनूठी संस्कृति की धाक समूची दुनिया में जमाना चाहते हैं। साथ ही वह काशी को बदलना चाहते हैं। पुरातन काशी की संस्कृति को नया लुक देकर दुनिया में शोहरत दिलाना चाहते हैं। यह भी दिखाना चाहते हैं कि अतिथियों के स्वागत-सत्कार में उनके अपने शहर का कहीं कोई सानी नहीं है।
आगामी 21 से 23 जनवरी को लालपुर के हस्तकला संकुल में पहली बार दुनिया भर के प्रवासी भारतीयों का मेला लगेगा। मोदी चाहते हैं कि मेहमान बनारस आएं तो होटलों के बजाए लोगों के घरों में ठहरें। एक-दूसरे देशों की संस्कृति और विचार साझा करें। इस योजना को मूर्तरूप देने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ रविवार को बनारस के प्रबुद्ध नागरिकों से सीधे रूबरू हुए। उन्होंने काशी के लोगों को प्रवासी भारतीयों के स्वागत और सत्कार का जिम्मा सौंपा।
काशी के पर्यटन में करीब 40 फीसदी की होगी बढ़ोतरी
सरकार की कोशिश है कि इस सम्मेलन का सरकारीकरण न हो। सम्मेलन में बनारसीपन निखरकर सामने आए। कुल सात हजार मेहमानों के ठहराने का इंतजाम किया जा रहा है। सरकार चाहती है कि इनमें से आधे को बनारस के लोग अपने घरों में ठहराएं। जाहिर है कि खान-पान और अनूठे स्वागत के लिए दुनिया भर में मशहूर काशी के लोगों का अबकी बड़ा इम्तिहान होगा। सरकार का मानना है कि प्रवासी सम्मेलन के बाद बनारस के पर्यटन में करीब 40 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। यह बढ़ोतरी इस शहर की तरक्की की नई इबारत लिखेगी। प्रवासी सम्मलेन पर्यटन के क्षेत्र में युवाओं को कुछ नया करने के लिए बड़ा गलियारा भी देगा।
काशी के विकासकर्ता अनुज डिडवानिया और समाजसेवी चिकित्सक डा.अजित सहगल कहते हैं कि प्रवासी सम्मेलन तो एक बहाना है। इस सम्मेलन के जरिये पीएम एक बड़ा संदेश देना चाहते हैं। आने वाली पीढ़ी को अतिथियों के प्रति उदारता का भाव रखने का पाठ सिखाना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि विदेशी मेहमान बनारस आएं तो इस शहर के लोग उनके साथ अपने अच्छे व्यवहार को पेश करें। प्रवासी भारतीयों को जब तक अपनापन फील नहीं होगा, तब तक उन्हें इस देश का वंशज होने का गौरव नहीं होगा। पर्यटन व्यवसाय पर टिकी काशी की तरक्की तब तक संभव नहीं है जब तक उन्हें इस शहर विशेष आदर और सम्मान नहीं मिलेगा।
युवाओं में सुनहरे करियर की उम्मीद जगाए यह कार्यक्रम
पीएम नरेंद्र मोदी की पहल पर काशी के विश्व विद्यालयों, उद्योगपतियों, व्यापारियों, चिकित्सकों, मंदिर-मठों के संतों और समाज के प्रबुद्ध लोगों से आग्रह किया जा रहा है कि वे अतिथियों के स्वागत की तैयारियों में अतिथि देवो भव: की परंपरा के निर्वहन में अहम भूमिका अदा करें। जाहिर है कि अबकी बनारसियों के लिए यह बड़ा इम्तिहान है। पीएम चाहते हैं कि बनारस के लोग प्रवासी भारतीयों का स्वागत घर में आने वाले अतिथियों की तरह करें जिससे उन्हें अपनापन महसूस हो।
सरकार ने 15वें प्रवासी भारतीय सम्मेलन का थीम रखा है -नए भारत के निर्माण में प्रवासी भारतीयों की भूमिका। इस सम्मेलन में शामिल होने वाले प्रवासियों को कुम्भ स्नान के साथ ही दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लेने का भी मौका मिलेगा। अमेरिका में भारतीय दूतावास के सामुदायिक मंत्री अनुराग कुमार भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लोगों को काशी लाने के लिए प्रचार और तैयारियों में अभी से जुट गए हैं। वह चाहते हैं कि अधिक संख्या में अमेरिका से प्रतिनिधि इस कार्यक्रम में हिस्सा लें।
ट्रैफिक व चौथ वसूली पर नहीं हुई कोई चर्चा
प्रवासी भारतीय दिवस की तैयारियों को लेकर रविवार को लालपुर के टीएफसी में आयोजित परिचर्चा में उन समस्याओं को नजरंदाज कर दिया गया जो इस कार्यक्रम की अहमियत पर पानी फेरती नजर आ रही हैं। सम्मेलन की तैयारियों पर लाखों रुपये बहाने वाले अफसरों के पास भगवान भरोसे चल रही ट्रैफिक व्यवस्था के समाधान का कोई पुख्ता हल नहीं है। सात हजार प्रवासी भारतीय तीन दिन काशी में कैसे घूमेंगे? इसका पुख्ता प्लान किसी के पास नहीं है। टैंपो और ई-रिक्शा वालों की मनमानी, चौराहों की चौथ वसूली, जगतगंज, लोह मंडी समेत शहर के तमाम इलाकों में अवैध वाहनों की आवाजाही और अराजकता पर लगाम कैसे लगेगी? इसका भी किसी के पास जवाब नहीं है।
सम्मेलन में सिर्फ सरकार ही न बोले
उद्यमी ही नहीं, विद्वानों व वैज्ञानियों को भी दें अहमियत
वाराणसी। पीएम नरेंद्र मोदी बहुत अच्छा बोलते हैं। अबकी कोशिश यह भी होनी चाहिए कि सम्मेलन में सिर्फ सरकार न बोले। हम प्रवासी भारतीयों को ज्यादा सुनें। संवाद हो तो दो-तरफा। भारत में जो कुछ हो रहा है उसे प्रवासी भारतीयों को समझाने की जरुरत है। दुनिया में कुछ ही देश ऐसे हैं जहां पैसे वाले भारतीय हैं। सरकार को चाहिए कि वह उन प्रवासियों का भी योगदान ले जो पैसे वाले नहीं हैं। मसलन-शिक्षक, वैज्ञानिक, चिकित्सक, लेखक-पत्रकार और खेतिहर किसान।
दुनिया में भारत का जितना नाम पैसे वालों ने किया है, उससे ज्यादा भारतीय वैज्ञानिकों और विद्वानों ने किया है। सम्मलेन में अब इन लोगों को ज्यादा अहमियत नहीं दी जा रही है। सरकार को चाहिए कि वो प्रवासी भारतीय विद्वानों से कहे कि वो भारतीय विश्वविद्यालयों में आकर पढ़ाएं। भारतीय डाक्टरों को चिकित्सा के नये गुर सिखाएं। भारतीय विद्यार्थियों को अपने विश्वविद्यालयों में ले जाएं। भारत के लिए इस तरह का बौद्धिक योगदान बहुत जरूरी है।
साल 2003 में देश में पहली बार प्रवासी भारतीय सम्मेलन सम्मेलन हुआ था। उसमें विदेश में रहने वाले विद्वानों को बुलाया गया था। आग्रह किया गया था कि वे आकर बताएं कि भारत क्या है? कहां से आया? कहां जा रहा है? ऐसे लोग, देश के इतिहास, इसके तत्वचिंतन के बारे में कुछ कहें? विद्वानों में वीएस नायपॉल और अमर्त्य सेन जैसे लोग भारत आए थे। इस बार फिलहाल ऐसी पहल नहीं दिख रही है।