…फिर भी अधिकारों से वंचित हैं बेटियां
किसी भी समुदाय में स्त्रियों की स्थिति प्रशंसनीय नहीं
विजय विनीत
सिर्फ भारत में ही नहीं, समूची दुनिया के कई देशों में लिंग अनुपात में कमी चिंता का विषय है। प्रबुद्ध समाज ने इसे पहचान लिया, यह एक अच्छी बात है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का मूलसार अवसादग्रस्त लोगों को जागरूक करना है, जिनका व्यवहार स्त्री जाति के लिए अमानवीय है। किसी भी समुदाय में स्त्रियों की स्थिति प्रशंसनीय नहीं है। ऐसे में उन कारणों को को जानना होगा, जिसके चलते कन्या भ्रण हत्या जैसे जघन्य अपराध होते हैं।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में पुत्र और पुत्री को बराबर का वारिस माना जाता है। फिर भी बेटियां अधिकारों से वंचित हैं। मुस्लिम समुदाय में भी लिंग भेद स्त्री के पक्ष में नहीं है। दुनिया के कई इस्लामिक देशों में विवाह और उतराधिकार से जुड़े कानूनों में संशोधन किया जा चुका है। पाकिस्तान, बंगलादेश, ईरान जैसे देशों में कई तरह के सुधार लागू किए गए हैं। मुस्लिम निजी कानून भारत में एकमात्र कानून है जो बहु विवाह की अनुमति देता है, लेकिन महिलाओं से जुड़ी किसी परेशानी को दूर नहीं कर पाता।
इतिहास गवाह है कि अलग-अलग खंडों में यूनान और रोम में स्त्रियां पुरुषों की जागीर समझी जाती थीं। सुकरात ने स्त्री के प्यार को पुरुष की घृणा से अधिक खतरनाक बताया है। प्राचीन अरब में बेटियों के जन्म को अशुभ मानते हुए उन्हें जिंदा दफनाने की परंपरा थी। आज समय बदल चुका है, फिर भीमहिलाओं के प्रति सामाजिक व्यवस्था अच्छी नहीं है। यही वजह है कि अक्सर कन्या भ्रण हत्या और दुष्कर्म जैसी घटनाएं होती रहती हैं। इतिहास यह भीकहता है कि समय के साथ सामाजिक परिस्थितियां बदलती हैं और इसके साथ परंपरागत आदर्श व मूल्य भीबदलते हैं।
लड़कियों ने दुनिया भर में भले ही हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया हो। लोगों ने उनकी सफलताओं पर ढेरों बधाइयां दी हों, लेकिन आज भीहम अपनी दकियानूसी सोच में बदलाव करने में सक्षम नहीं हो पाए हैं। लोग लड़कियों को सम्मान और बराबरी का हक देने में आनाकानी करते हैं। अगर किसी के घर लड़की पैदा हो और घर वालों को उससे कोई आपत्ति न भीहो तो समाज और रिश्तेदारों की दकियानूसी सोच, लड़की के साथ जन्म से ही भेदभाव के बीज बो देती है।
बेटियों से भेदभाव सिलसिला लड़की के जन्म से पहले शुरू हो जाता है। बहू की गोद भराई पर ही उसे दूधो नहाओ-पूतो फलो और भगवान तुम्हें चांद का लड़का दे जैसे आशीर्वाद मिलते हैं। कोई भीऐसा आशीर्वाद नहीं देता कि इनकी गोद में एक चांद सी परी आए। आशीर्वाद की झड़ी के बाद ही गर्भवती स्त्री के मन में यह डर समा जाता है कि उसे सिर्फ लड़के को ही जन्म देना है। अगर कहीं गलती से लड़की ने जन्म ले लिया तो बधाई रूपी ताने मिलने शुरू हो जाते हैं। अक्सर लड़की के जन्म पर कोई रिश्तेदार कहता है कि बधाई हो, घर में लक्ष्मी आई है। कोई बात नहीं, अगली बार बेटा हो जाएगा। कोई कहता है कि अरे भइया घर में लड़की हुई है। अभीसे रकम जोड़ना शुरू कर दो। जब तक लड़की ब्याहने लायक होगी तब तक पैसे का जुगाड़ हो जाएगा।
कोई शुभचिंतक कहता है कि अगर भगवान लड़का दे देता तो अच्छा होता। खैर भगवान की मर्जी के आगे किसकी चलती है। इतना ही नहीं, हक से नेग मांगने वाले भीलड़की के जन्म पर जिद नहीं करते। उनका कहना होता है कि अभीजो देना हो दे दो। जब लड़का होगा तो मनचाहा नेगा चाहिए। बधाइयों के इस दौर में यह समझ ही नहीं आता कि वास्तव में वे कन्या को दुआएं दे रहे हैं अथवा लड़की के जन्म पर शोक व्यक्त कर रहे हैं।
सच यह है कि हम जिस समाज में रह रहे हैं, वह आज भीरूढ़िवादी सोच की बेड़ियों में जकड़ा है। हम विकास के चाहे जितने भीदावे कर लें, लड़कियों को कभीलड़कों की तरह बराबरी का हक नहीं मिलता। हम भले ही आधुनिक हो जाएं, लेकिन बात जब लड़कियों की आती है तो हमेशा पिछड़ी हुई सोच का प्रदर्शन करते हैं।
भारत में लड़कियों को शिक्षित बनाने और भ्रण हत्या रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल 22 जनवरी को बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना शुरू की। मकसद था लड़कियों की लगातार गिर रही संख्या को रोकना। 2001 में लड़कियों का आंकड़ा 927 प्रति 1000 था। एक दशक बाद यह आंकड़ा गिर कर यह 919 प्रति 1000 पर आ गया। लड़कियों की संख्या में सर्वाधिक गिरावट हरियाणा में आई है। यही वजह है कि पीएम बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना इसी राज्य में शुरू की। ने बेमें है। इसी वजह से इसकी शुरुआत हरियाणा से हुई। भारत में महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के प्रति जागरुकता जरूरी है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना कन्या भ्रण हत्या को जड़ से मिटाने के लिए लोगों का आह्वान करती है। साथ ही उन्हें अच्छी शिक्षा, सुरक्षा और कन्या भ्रण हत्या रोकने की मुहिम को बल देती है। इस योजना का मकसद लड़कियों को सामाजिक और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाना है, जिससे वह अन्याय व अत्याचार से लड़ने में सक्षम हो सकें।
अस्पतालों में लिंग पता करने की सुविधा ने कन्या भ्रण की हत्या को बल मिला है। इस वजह से लड़कियों की संख्या में भारी कमी आई है। दरअसल समाज में लैंगिक भेदभाव की वजह से यह बुरी प्रथा अस्तित्व में आई। भारतीय समाज में लड़कियों के प्रति लोगों की मानसिकता बहुत क्रूर हो चुकी है। लोगों का मानना है कि लड़कियां पहले परिवार के लिये बोझ होती हैं। हालांकि ये मुक्त सच नहीं है। दुनिया की आधी महिलाओं की है। लड़कियों को कम महत्व देने से धरती पर मानव समाज खतरे में पड़ सकता है। सच यह है कि महिलाओं के बगैर स्वस्थ समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।
जन्म के बाद लड़कियों को कई तरह के भेदभाव से गुजरना पड़ता है। लड़कियों शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, खान-पान, अधिकार जैसी जरूरतें मिलनी चाहिए। लेकिन उन्हें ताकतवर बनाने के बजार कमजोर बनाया जा रहा है। लड़कियों के लिए के प्रति सोच बदलने के लिए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना एक आसान रास्ता है। इस योजना की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिकित्सक बिरादरी को याद दिलाया था कि चिकित्सा पेशा लोगों को जीवन देने के लिए बना है, उन्हें खत्म करने के लिए नहीं।
भारतीय समाज में छोटी बच्चियों के खिलाफ भेदभाव और लैंगिक असमानता की ओर ध्यान दिलाने के लिए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना शुरू की गई है। यह यह सिर्फ योजना नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की शुरुआत है। लड़कियों को अस्तित्व को मिटने से बचाने की दिशा में नई पहल है।
भारतीय समाज में छोटी लड़कियों पर बहुत सारे प्रतिबंध किये जाते है जो उनकी उचित वृद्धि और विकास में रोड़ा बना हुआ है। ये योजना छोटी लड़कियों के खिलाफ होने वाले अत्यचार, असुरक्षा, लैंगिक भेदभाव आदि को रोकेगा। आधुनिक युग में भीमहिलाओं के प्रति लोगों की मानसिकता बहुत अच्छी नहीं है।
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम की शुरुआत करते समय प्रधनमंत्री ने कहा था कि, भारत के लोगों की की धारणा है कि लड़कियां पराया धन होती है। अभिभावक सोचते हैं कि लड़के तो अपने होते हैं। बुढ़ापे की सहारा बनते हैं। देखभाल करने की जिम्मेदारी उठाते हैं। लड़कियां दूसरें घरों में जाकर अपने ससुराल वालों की सेवा करती हैं, लेकिन यह सच नहीं है। लड़कियों के बारे में लोगों की ऐसी मानसिकता शर्मनाक है। लड़कियों को पूरा अधिकार देने के लिए लोगों के दिमाग से इसे जड़ से मिटाने की जरूरत है।
बेटियों के मामले में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच बेहद प्रभावकारी है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना से लड़कियों की संख्या बढ़ेगी। उनकी सुरक्षा, शिक्षा और कन्या भ्रण हत्या उन्मूलन में कमी आएगी। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना ने एक बड़ा संदेश दिया है कि आने वाले दिनों में सामाजिक-आर्थिक कारणों की वजह से किसी भीलड़की को गर्भ में नहीं मारा जाएगा। बेटियां अशिक्षित नहीं रहेंगी, असुरक्षित नहीं रहेंगी और उनके साथ बलात्कार नहीं होगा। देश में लैंगिक भेदभाव को मिटाने का लक्ष्य लड़कियों को आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह से स्वतंत्र बनाने का है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और लड़का-लड़की एक-समान के नारे आपको हर जगह सुनने को मिल जाएंगे, लेकिन वास्तव में इन नारों को सिर्फ पढ़ लेना या कह देना ही काफी नहीं है। प्रधानमंत्री के सपने तभीसाकार होंगे, जब बेटियों को इसका फायदा तभीमिलेगा। यह तभी संभव है जब लोग बेटियों के महत्व को अपने जीवन में आत्मसात करेंगे।
विजय विनीत जी,नमस्कार,बेटियो पर अति सुन्दर व् दिल को छु लेने वाली टिपण्णी।बेटियां देश की धरोहर है।