बारिश में टमाटर, मुनाफा ही मुनाफा
बारिश के सीजन में करें टमाटर की खेती, हो जाएं मालामाल
विजय विनीत
टमाटर अब सिर्फ जाड़े की फसल नहीं रही। इसे अब हर सीजन में उगाया जा सकता है। बारिश के मौसम में टमाटर की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। इस मौसम में टमाटर की न सिर्फ व्यावसायिक खेती की जा सकती है, बल्कि इसे गृह बाटिकाओं में भी उगाया जा सकता है। टमाटर की मांग अब पूरे साल रहती है। सब्जी के अलावा इसे सूप, चटनी, सलाद, सॉस, स्कवैश आदि के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। आजकल इसकी डिब्बाबंदी भी की जाती है। टमाटर का सूखा पाउडर भी बनाया जाता है। एक कुंतल ताजा टमाटर से 6.5 किग्रा सूखा पाउडर बनाया जा सकता है। इसकी अनुमानित लागत सिर्फ 25 से 30 रुपये आती है।
उन्नत किस्में
बारिश के मौसम के लिए देश की कई नामी बीज कंपनियों ने टमाटर की नई किस्में इजाद की है। नुनहैम्स कंपनी ने वर्षा ऋतु के लिए तीन प्रजातियां विकसित की हैं। इनमें एक है लक्ष्मी 5005, देव और सुपर लक्ष्मी। टमाटर की इन तीनों प्रजातियों को 15 जून से 15 सितंबर तक खेतों में लगाया जा सकता है। इनके अलावा जेके कंपनी का देशी, माइको का गोठिया और एक अन्य कंपनी का अरुणा टमाटर बारिश के मौसम के लिए काफी उपयुक्त है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने पूसा अर्ली डुआर्फ और के-1 के संस्करण से हिसार अरुण (सेलेक्शन-7) प्रजाति विकसित किया है। इसके पौधे छोटे होते हैं। पौधों पर फल काफी मात्रा में लगते हैं। इस किस्म के फल एक ही समय पर पकते हैं, जो मध्यम से बड़े आकार के होते हैं। यह काफी अगेती किस्म है। हिसार अरुण को वर्षा ऋ तु में उगाने के लिए सिफारिश की गई है।
इनके अलावा हिसार अनमोल (एच-24) विषाणुरोधी किस्म है। इसके फल छोटे, मध्यम आकार के गोल, लाल और गूदेदार होते हैं। इस प्रजाति को जुलाई से लेकर दिसंबर तक लगाई जा सकती है। चिकने और मध्यम आकार वाले पूसा गौरव का कोई जोड़ ही नहीं है। ये पूरी तरह लाल रंग के होते हैं। फलों का छिलका मोटा होता है। इसे बेचने के लिए दूरस्थ बाजारों में सुगमता से ले जाया जा सकता है। पूसा गौरव के फल डिब्बाबंदी के लिए उपयुक्त होते हैं। इसे हर मौसम में उगाया जा सकता है। टमाटर की सैकड़ों प्रजातिया हैं, जिसमें से अधिसंख्य को बारिश के मौसम में उगाया जा सकता है।
फसल चक्र और भूमि
टमाटर को कई फसलों के साथ सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसे भिंडी-टमाटर-मक्का के साथ और भिंडी-टमाटर-लोबिया के साथ भी उगाया जा सकता है। मक्का के साथ टमाटर और राजमा की खेती की जा सकती है। मूुली और भिंडी के साथ भी टमाटर पैदा किया जा सकता है। लोबिया और भिंडी के साथ भी टमाटर की खेती की जा सकती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्र टमाटर की खेती के लिए अनुपयुक्त होते हैं। टमाटर की खेती कई तरह की जमीनों में की जा सकती है। जल निकास वाली दोमट भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी रहती है। यदि मिट्टी का पीएच मान 5 से कम हो तो मिट्टी में चूना मिलाकर इसकी खेती करनी चाहिए।
खाद और उर्वरक
टमाटर के अधिक पैदावार के लिए पोषक तत्वों को उचित मात्रा में देने की जरूरत पड़ती है। खाद और उर्वरक देने से पहले मिट्टी की जांच जरूरी है। यदि मिट्टी की जांच न हो तो 100 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस और 60 किग्रा पोटाश की जरूरत पड़ती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा का मिश्रण बनाकर रोपाई से पहले 8-10 सेमी गहरे कूड़ों में डालना चाहिए। नाइट्रोजन की बाकी मात्रा दो बराबर भागों में बांटकर एक भाग रोपाई के 25-30 दिन बाद और दूसरा फूल निकलने के समय टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालना चाहिए। एक हेक्टेयर में टमाटर की खेती के लिए 400-500 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। एक ग्राम बीज में टमाटर के 300 बीज होते हैं। टमाटर के बीजों को चार साल तक कभी भी बोया जा सकता है।
पौधशाला और रोपाई
एक हेक्टेयर टमाटर रोपने के लिए 120 वर्ग मीटर में तैयार की गई पौधशाला पर्याप्त है। पौधशाला की भूमि में पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद डालकर इसकी भली-भांति जुताई कर लें। पौधशाला की भूमि 15-20 सेमी जमीन से उठी होनी चाहिए। बीज बोने से पहले 0.2 प्रतिशत ब्रेसिकॉल अथवा कैप्टान दवा का छिड़काव करके मिट्टी का उपचार लाभप्रद रहता है। बीज छिड़ककर गोबर की सड़ी-गली खाद से उन्हें ढंक दिया जाता है। बाद में सिंचाई कर दी जाती है। जब पौधों में 2-3 पत्तियां आ जाए तो पौधशाला में 0.1 प्रतिशत ब्रेसिकॉल का घोल छिड़कना चाहिए। ऐसा करने से फसल की रोगों से सुरक्षा हो जाती है। जब पौधे 12-15 सेमी के हो जाएं तो उनकी रोपाई कर देनी चाहिए। रोपाई से पहले टमाटर के पौधों की जड़ों को साफ पानी से धो लें फिर सेरासॉन के घोल में डुबो लेना चाहिए। ऐसा करने से पौधे स्वास्थ रहते हैं। वार्षा वाली फसलों की रोपाई डौलियों में करनी चाहिए। बारिश में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। पहली निराई के बाद खेत में पलवार (बांस की परखच्ची) बिछाने से अधिक उपज मिलती है। पलवार की परत कम से कम पांच सेमी होनी चाहिए। इससे टमाटर की उत्पादकता काफी बढ़ जाती है। फलों को उत्तम रंग और सड़ने से रोकने के लिए पौधों को सहारा देना बेहद जरूरी है। इसके लिए अरहर की लकड़ियों का इस्तेमाल करना चाहिए।
कीट नियंत्रण और उपज
टमाटर में तंबाकू की सूड़ी, फल छेदक कीट, इपीलैचना बीटिल, कटुआ कीट का प्रकोप होता है। आद्र विगलन रोग का भी प्रकोप होता है। अगेता झुलसा, बैकिटरियल विल्ट, गुच्छा-मुच्छा रोग से फसल को बचाने का इंतजाम करना चाहिए। टमाटर की तोड़ाई उसके पकने की अवस्था, उसके उद्देश्य पर निर्भर करती है। टमाटर की उपज उसकी किस्मो, फसल की देखभाल पर निर्भर करती है। सामान्य रूप से 150 से 250 कुंतल तक उपज मिल जाती है। बारिश के मौसम में ताजे टमाटर की डिमांड बहुत अधिक होती है। ऐसे में किसान मालामाल हो सकते हैं।
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