बनारस में सुहागिन महिलाओं का मंदिर

बनारस में सुहागिन महिलाओं का मंदिर

पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं पूजा

विजय विनीत

सौभाग्य प्राप्ति और पति की लंबी आयु की कामना के लिए समूची दुनिया में वट सावित्री की जाती है। लेकिन 33 करोड़ देवताओं की सहमति के बाद स्थापित इकलौता वट सावित्री का मंदिर सिर्फ बनारस में है। जी हां..। यह मंदिर है दशाश्वमेध इलाके के मीरघाट स्थित धर्मकूप मोहल्ले में। व्रत रखकर इस मंदिर में पूजा करने वाली महिलाओं का सुहाग ताजीवन सलामत रहता है। भारत में आमतौर पर वट सावित्री की पूजा ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को की जाती है। लेकिन बनारस में विधान कुछ अलग ही है।

बाबा विश्वनाथ की नगरी में महिलाएं वट सावित्री की पूजा करने के लिए तीन दिन पहले से ही व्रत शुरू कर देती हैं। आखिरी दिन वट सावित्री के मंदिर पर विराजमान विशालकाय वटवृक्ष की कली निगलकर वत्र का पारण करती हैं। खत्री, मैथिल और मारवाड़ी समाज की महिलाएं ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन पूजा करती हैं और  महाराष्ट्रियन महिलाएं ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में। बंगाली समाज की महिलाएं अषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष में व्रत रखकर वट सावित्री की पूजा-अर्चना करती हैं। मंदिर और वटवृक्ष की परिक्रमा करते हुए अपने पति के दीर्घायु के लिए मौली लपेटती हैं। कुछ महिलाएं सात बार, कुछ 11 बार, कुछ 51 बार और कुछ 108 मर्तबा वट वृक्ष की परिक्रमा करके अपने पति को सलामत रखने के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। वट सावित्री का पूजन करने के लिए  सुहागन महिलाएं पूरे 16 श्रृंगार कर वट सावित्री मंदिर की पूजा करती हैं। साथ ही अपने पति की लंबी आयु की कामना भी करती हैं।

पौराणिक कथा अनुसार सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाया था। तभी से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि जो स्त्री सावित्री के समान यह व्रत करती है उसके पति पर भी आने वाले सभी संकट इस पूजन से दूर होते हैं। बनारस के मीरघाट के धर्मकूप मोहल्ले में वट सावित्री मंदिर में महिलाएं एकत्र होकर सावित्री और सत्यवान की पूजा करती हैं। इसी वजह से इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा है। इस व्रत के परिणामस्वरूप सुखद और संपन्न दांपत्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। ऐसे वट सावित्री का व्रत समस्त परिवार की सुख-संपन्नता के लिए भी किया जाता है। दरअसल सावित्री ने यमराज से न केवल अपने पति के प्राण वापस पाए थे, बल्कि उन्होंने समस्त परिवार के कल्याण का वर भी प्राप्त किया था।

शास्त्रों के अनुसार, वट सावित्री व्रत में पूजन सामग्री का खास महत्व होता है। मान्यता है कि सही पूजन सामग्री के बिना की गई पूजा अधूरी ही मानी जाती है। पूजन सामग्री में बांस का पंखा, लाल या पीला धागा, धूपबत्ती, फूल, कोई भी पांच फल, जल से भरा पात्र, सिंदूर, लाल कपड़ा आदि का होना जरूरी है। पूजन सामग्री को एक टोकरी, प्लेट या डलिया में सही तरीके से रखा जाए। मंदिर में धूप, दीप, रोली, भिगोए चने, सिंदूर आदि से पूजन करें। इसके बाद लाल कपड़ा अर्पित करें और फल समर्पित करें। फिर बांस के पंखे से सावित्री-सत्यवान को हवा करें और बरगद के एक पत्ते को अपने बालों में लगाएं। इसके बाद धागे को पेड़ में लपेटते हुए वटवृक्ष की परिक्रमा करें। अंत में सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें और गरीबों को दान भी दें। बाद में घर आकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करें और उनका आशीर्वाद लें। फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि ग्रहण करने के बाद शाम के वक्त मीठा भोजन करें।

मद्र देश के राजा अश्वपति को पत्नी सहित सन्तान के लिए सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत तथा पूजन करने के पश्चात पुत्री सावित्री की प्राप्त हुई। फिर सावित्री के युवा होने पर एक दिन अश्वपति ने मंत्री के साथ उन्हें वर चुनने के लिए भेजा। जब वह सत्यवान को वर रूप में चुनने के बाद आईं तो उसी समय देवर्षि नारद ने सभी को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की शादी के 12 वर्ष पश्चात मृत्यु हो जाएगी। इसे सुनकर राजा ने पुत्री सावित्री से किसी दूसरे वर को चुनने के लिए कहा मगर सावित्री नहीं मानी। नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात करने के बाद वह पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं।

इसके बाद नारदजी की बताए समय के कुछ दिनों पूर्व से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। ऐसे जब यमराज उनके पति सत्यवान को साथ लेने आए तो सावित्री भी उनके पीछे चल दीं। इस पर यमराज ने उनकी धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा तो उन्होंने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु की कामना की। फिर भी पीछे आता देख दूसरे वर में उन्हें अपने ससुर का छुटा राज्यपाठ वापस मिल गया। आखिर में सौ पुत्रों का वरदान मांगकर सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस पाए। ऐसे सावित्री के पतिव्रत धर्म और विवेकशील होने के कारण उन्होंने न केवल अपने पति के प्राण बचाए, बल्कि अपने समस्त परिवार का भी कल्याण किया।

धर्मकूप मोहल्ले में स्थित वट सावित्री मंदिर हजारों साल पुराना है। सालों पहले यह मंदिर ढह गया था। बाद में स्थानीय निवासी कन्हैया त्रिपाठी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। यह मंदिर अब पुरातत्व विभाग के अधीन है और विभाग ने श्री त्रिपाठी को मंदिर का सेवइत बना रखा है। वट सावित्री मंदिर के पास ही धर्म कूप है। मान्यता है कि इस कूप के पानी में जिस व्यक्ति की छाया नहीं दिखती है उसकी महीने भर में ही मौत हो जाती है। एक मान्यता यह भी है कि धर्मकूप का दर्शन करने से क्षीण आयु भी प्राप्त हो जाती है। धर्मकूप के पास पास है ऐतिहासिक धर्मेश्वर मंदिर। इस मंदिर में पूजा अर्चना करने से दस हजार गायत्री मंत्र जप करने जितना फल मिलता है।

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