अधूरे ख्वाब…! एक आत्मिक दस्तावेज

अधूरे ख्वाब…! एक आत्मिक दस्तावेज

यह एक पागल की डायरी है… ! एक दिल की आवाज जो शायद कभी नहीं सुनी गई…, पर इश्क तो इश्क ही है, चाहे वह पागलपन ही क्यों न हो….!

@विजय विनीत

जानता हूं कि सारे सबक किताबों में नहीं लिखे होते हैं। कुछ सबक जिंदगी दिखा देती है, तो कुछ खास रिश्ते। 20 दिसंबर को तुमने फेसबुक पर पहला मैसेज भेजा था। वहीं से हम आगे बढ़े थे। आपस में बात करके या फिर मिलकर दोनों स्पार्क महसूस किया करते थे। पुराने दिनों को री-क्रिएट करता हूं तो पाता हूं कि पहले कितना भरोसा था, एक दूसरे के ऊपर। कितनी इज्जत थी और कितनी खुशियां थीं? मेरे मन में कोई गलत भावना नहीं थी, गलत धारणा नहीं थी, गलत मकसद नहीं था। फिर भी तुमने मुझे गलत ठहरा दिया।

तुमसे जब आखिरी मर्तबा बात हुई तो तुमने इल्जाम लगा दिया, “आप मेरे पीछे हाथ धोकर क्यों पड़ गए हैं…? दूसरे लोगों से मेरे बारे में क्यों बात करते हैं? मेरे पास टेप है बातचीत का…! चीरहरण कर रहे हैं…! मैं ऐसी लड़की नहीं हूं कि आप मेरे साथ बत्तमीजी कर देंगे.., मैं एक तमाचा लगा दूंगी… दिमाग सही हो जाएगा..! मैं भूल जाऊंगी कि कौन इंसान हो…!”

तुम्हारे कहे शब्द आज भी मुझे सोने नहीं देते। इतने अपशब्द मैंने जिंदगी में कभी नहीं सुने थे। इतनी बत्तमीजी की कल्पना नहीं की थी। मेरे पास झूठ की दुनिया नहीं है। अपने दिल से पूछो कि क्या वो बातचीत का टेप है तुम्हारे पास…? मैं सफाई देता रहा और तुम इल्जाम पर इल्जाम लगाती रही…। इन दिनों हर रात मेरे मन में यह बात बार-बार कौंधती है कि मेरा गुनाह क्या था? तुम्हारी कही हुई बातों का थप्पड़ मेरे ऊपर रोज पड़ता है…। वह भी बगैर गुनाह के। ताज्जुब होता है कि दुनिया में बहुत से लोग हैं जो अपने स्वार्थ के लिए आसानी से ‘ब्लेम गेम’ खेल लिया करते हैं।

तुम्हें लगता था कि हम बेवजह तुम्हारे साथ चेप हो रहे हैं। तुमने अजीब-अजीब बातें कहनी शुरू कर दी। तोहमत लगानी शुरू कर दी। पीछा ही छुड़ाना था तो तुम अच्छे से बोल तो सकते थे। कह सकते थे कोई और ठौर देख लो…। आखिर इंसल्ट करने की जरूरत क्यों पड़ गई? हमने कहां रोका था तुम्हें उड़ान भरने से। हमने कहां मांगा था तुमसे कुछ। एक कश्ती तो कायदे से चल नहीं रही थी और दूसरे पर बैठ गए। ईगो और मोह-माया इतनी असर कर गई कि उसके पीछे भागने लगे।

टॉक्सिक रिश्तों के अनुभव ने हमें बहुत कुछ सीख दी है। कुछ लोग समझते हैं कि दुनिया उनके हिसाब से चल रही है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। किसी भी रिश्ते की सबसे मजबूत डोर होती है सामने वाले की नजरों में इज्जत। बोलने में लिहाज ही रिश्तों की नींव को सुदृढ़ बनाता है। सम्मान और शिष्टाचार ही रिश्तों की असली पहचान है। इज्जत और लिहाज से ही रिश्ते सजीव व स्थायी बनते हैं और इसके बगैर वो खोखले और कमजोर हो जाते हैं। वैसे भी रिश्ता निभाने वाले अलग और झूठे लोग अलग होते हैं। फरेबी हर जगह मिल जाया करते हैं, लेकिन वो शख्स नहीं मिला करते, जिनसे मिलने के बाद मन में एक अलग तरह की खुशी का स्पार्क होता है।

नेपथ्य में देखता हूं तो पाता हूं कि कितना गहरा और पवित्र सोल कनेक्शन था हम दोनों के बीच। किसी न किसी रूप में हम दोनों एक दूसरे की जिंदगी में बने रहना चाहते थे। कितनी गहरी समझ, गहरा स्नेह, आत्मीय संबंध और परस्पर सम्मान शामिल था। हमारा दिल और हमारी आत्मा कितनी प्योर थी। एक-दूसरे को बिना शब्दों के भी समझ लिया करते थे। विचारों और भावनाओं को आसानी से महसूस कर लिया करते थे। कितनी स्ट्रांग बाइंडिंग थी हम दोनों के बीच। हमारी आत्मा को ईश्वर ने देखा है। ईश्वर ने हमें अच्छे काम करने के लिए भेजा था, गंदगी फैलाने के लिए नहीं। जानता हूं कि प्रकृति सबसे ज्यादा टेस्ट स्पिरिचुअल लोगों की लेती है, ताकि वो हमसे बड़े-बड़े काम करवा सके।

अब से पहले मैंने तुम्हें यह कभी नहीं बताया कि तुम हमारे लिए क्या थे? दरअसल तुम मेरे लिए “लकी चार्म” थे। तुमसे मिलने के बाद दुनिया भर में मुझे पहचान मिली, शोहरत मिली और पैसा भी। सोचा था कि तुम्हारे अंदर एक मासूमियत है, एक भोलापन है और एक अनकंडिशनल सपोर्ट है, जो किसी में नहीं है, लेकिन मुझे बेइज्जत करने के बाद तुम विजेता की तरह आगे निकल गए। हमारी फीलिंग को तुमने कभी रिग्रेट नहीं किया। तुमने जैसा रास्ता चुना है, जाहिर है कि मंजिल भी तुम्हें वैसी ही मिलेगी। एक बात और, जिंदगी में कुछ भी भूला जा सकता है, लेकिन वो लोग कभी नहीं भुलाए जा सकते, जिनकी आत्मा से रिश्ता जुड़ा होता है। तुम मेरे लिए ‘लकी चार्म’ थे, इसलिए हम चाहें तब भी तुम्हें नहीं भुला पाएंगे।

ईश्वर ने हमें तपाया है, तभी हम आज दुनिया भर में चमकने की कोशिश कर रहे हैं। तुमसे जुड़ने के पीछे मेरे मन में यही भाव जगा था कि हम दोनों गुरु-शिष्य, जमाने के लिए हैं, लेकिन असल में हैं सोलमेट पार्टनर। सिमिलर एनर्जी थी हम दोनों के पास। दोनों की आत्मा एक दूसरे को पहचानती थी। हम दोनों एक दूसरे की जिंदगी में बने रहना चाहते थे। एक दूसरे को एहसास भी कराते थे। मैं भी किसी स्वार्थ से नहीं जुड़ा था तुमसे। जब कोई किसी की आत्मा से जुड़ जाता है तो वो चाहकर भी दूर नहीं हो पाता है।

अब तो मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। मन ऊब जाता है तो गंगा घाटों पर चला जाता हूं। कई बार घाटों पर देखा है तुम्हें। हिम्मत नहीं हुई बात करने की। बचा भी क्या है? रिश्तों की लीज तो तुम पहले ही खत्म कर चुकी हो। मेरी जिंदगी में कोई रंग नहीं है, इसलिए यूनिवर्स की ओर बढ़ रहा हूं। मैं जानता हूं कि मेरे मर्ज की दवा इंसान के पास नहीं है। हमें यकीन है कि अब तो ईश्वर ही इलाज करेगा। वहीं से हमें न्याय मिल सकता है। वैसे भी जब कोई इंसान लुटता चला जाता है तो यूनिवर्स ही जजमेंट करता है।

तुम्हीं ने बोला था कि “आप अपना काम करो, मुझे अपना करने दो…!” तुम्हारी बातों पर अमल किया है। ईश्वर से कामना करता हूं कि तुम अपनी लाइफ में खुश रहो…। हाल के दिनों में कुछ नए लोगों ने मेरी लाइफ में घुसने की बहुत कोशिश की, लेकिन सभी को मैंने जवाब दे दिया। अब मुझमें हिम्मत नहीं बची है। जीवन की सच्ची खुशी, दिव्य अनुभव और आत्मिक संतोष में निहित होती है। जिसके साथ मेरा मन का रिश्ता था, वो चकनाचूर हो गया। जब संवेदनाओं का अटूट धागा ही टूट गया तो मैं दूसरों की जिंदगी को कैसे खुशहाल बना सकता हूं…?

जानता हूं कि प्रकृति हर किसी का हिसाब रखती है। उन लोगों का हिसाब तो जरूर रखा जाता है जो “डिवाइन कनेक्शन” में होते हैं। यूनिवर्स के आदेश पर डिवाइन ने हम दोनों को जोड़ा था। जब साथ थे, तब न कोई चिंता थी, न नफरत थी। अगर कुछ था तो जुनून था, हिम्मत थी और तरक्की का हौसला था। मैं तुम्हें हर वक्त आगे बढ़ते हुए देखना चाहता था। मुझसे जो बन पड़ता था, प्रयास जरूर करता था। इस रिश्ते को हमने कोई नाम भी नहीं दिया था। कोई शर्त नहीं लगाई थी। मन में कोई लालच नहीं था। बात कर लिया करते थे, दिमाग में ऊर्जा भर जाया करती थी। बिगड़े काम भी बन जाया करते थे, क्योंकि तुम मेरे लिए लकी चार्म थे।

अब तो दिल और आत्मा के इतने टुकड़े हो गए हैं कि कुछ बचा ही नहीं है। जिंदगी में दूसरी बार महसूस हुआ है कि दिल टूटने की आवाज नहीं होती, लेकिन उसकी चोट बहुत गहरी होती है। हमें जो करना था, कर लिया। हमें यह बात भी समझ में आ गई है कि जो इंसान दिल से हार जाता है तो वो सब कुछ हार जाता है। तुमने हमें वहां पहुंचा दिया है, जहां से मैं अब नहीं लौट सकता, क्योंकि मेरी आत्मा मुझे धिक्कारेगी। फिलहाल तो हम “सेल्फ लव” की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। डिवाइन कनेक्शन से कुछ आवाज आएगी और जब अंतरआत्मा जागेगी, तब शायद कुछ सोचेंगे…।

मेरी किसी बात से दुख पहुंचे तो माफ करना।

तुम्हारा

………….???

(विशेषः यह संस्मरण उन युवाओं के लिए हैं, जो इश्क की खोह में फंसे हैं, पर कतिपय वजहों से जीवन टाक्सिक हो गया है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!