बीएचयूः स्क्रीनिंग कमेटी ने किया गजब का गड़बड़झाला

बीएचयू आईएमएस में तीन और प्रोफेसरों की नियुक्ति में यूजीसी के गाइडलाइन की अनदेखी
बीएचयू में नियुक्तियों में मनमानी का खेल गजब का है। पड़ताल करें तो पाएंगे कि पिछले एक दशक में जितने भी कुलपति आए सभी ने अपने चहेतों को उपकृत करने में तनिक भी कोताही नहीं बरती। नियमों को ताक पर रख दिया। विश्वविद्यालय ही नहीं, यूजीसी तक गाइडलाइन को दरकिनार कर दिया। हाल में आरटीआई से प्रोफेसरों की नियुक्ति में गड़बड़झाला सामने आया है।
शिक्षकों की नियुक्ति में योग्यता और अनुभवों को कैसे ताक पर रखा गया है इसकी कुछ बानगी देखिए। आरटीआई एक्टिविस्ट संजय कुमार सिंह ने जो तथ्य जुटाएं हैं उससे स्क्रीनिंग कमेटी की मनमानी प्याज के छिलकों की तरह परत-दर-परत उधड़ती नजर आती है। चिकित्सा विज्ञान संस्थान के एनाटामी विभाग में डाक्टर आनंद मिश्रा को प्रोफेसर पद पर नियुक्त किया गया है। इस पद नियुक्ति का जो मानक है उसके मुताबिक दस साल की शैक्षणिक अहर्ता पूरी किए बगैर ही इन्हें प्रोफेसर बना दिया गया। जिन कामों को योग्यता की श्रेणी में नहीं रखा जाता, उसे भी जोड़कर इन्हें प्रोफेसर का ताज पहना दिया गया। इन्हें साल 2011 में प्रोफेसर बनाया गया था।
राष्ट्रपति, पीएम से लेकर सतर्कता आयुक्त से हुई शिकायत रही बेनतीजा
इसी तरह आईएमएस के कम्युनिटी मेडिसीन में डा.ज्ञान प्रकाश सिंह को प्रोफेसर नियुक्त किया गया है। ये भी प्रोफेसर बनने की अहर्ता नहीं रखते थे। दस्तावेज बताते हैं कि इनके पास पीजी टीचिंग का कुल नौ साल का ही अनुभव था। तथ्यों को छिपाकर इन्हें प्रोफेसर बना दिया गया। इसी तरह आईएमएस के फार्माकोलाजी विभाग में प्रोफेसर पद पर नियुक्त डा.अमित सिंह की नियुक्ति भी सवालों के घेरे में है। इनके पास दस साल के सापेक्ष सिर्फ नौ साल छह महीने पीजी टीचिंग का अनुभव है। इनके बावजूद इन्हें शिक्षा का शीर्ष दायित्व सौंपा गया है।
हैरत की बात यह है कि तीनों शिक्षकों की प्रोफेसर पद पर हुई नियुक्तियों के बारे में पीएम से लेकर राष्ट्रपति तक से शिकायत की जा चुकी है, लेकिन जांच-पड़ताल कराने की जरूरत नहीं समझी गई। सतर्कता आयुक्त ने भी इस मामले की शिकायतों की जांच नहीं की।
प्रोफेसर बोले, मीडिया न करे बेवजह ताकझांक
प्रोफेसर की कुर्सी पर बैठे प्रो.आनंद मिश्र और प्रो.अमित सिंह का कहना है कि नियुक्ति में उन्होंने अपनी ओर से कोई बाजीगरी नहीं की है। फार्म भरा और साक्षात्कार दिया। नियुक्ति का लेटर मिला तो ज्वाइन कर लिया। क्या गलत है और क्या सही, ये स्क्रीनिंग कमेटी व साक्षात्कार लेने वाले जानें। मीडिया को इसमें ताकझांक करने की कोई जरूरत नहीं है।