पुस्तक प्रेमः “मैं इश्क लिखूं तुम बनारस समझना” की जादुई कहानियां

पुस्तक प्रेमः “मैं इश्क लिखूं तुम बनारस समझना” की जादुई कहानियां

@ रेणु ददलानी

अगर किसी पुस्तक से इश्क़ हो जाए, तो उसके हर शब्द का दिल में ऐसा असर होता है कि वह शब्दों से खास रिश्ता बना लेता है। लेकिन किसी पुस्तक से इश्क होना इतना आसान नहीं है। इश्क़ तभी हो सकता है जब शब्द हृदय को स्पर्श करें और अपनी जगह बना लें। ऐसा ही कुछ हुआ जब मैंने “मैं इश्क लिखूं तुम बनारस समझना” पढ़ना शुरू किया। इस पुस्तक के लेखक आदरणीय विजय विनीत जी ने कहानियों और किरदारों को इस कदर जोड़ा है कि पाठक उत्सुकता से पढ़ता चला जाता है। लेखक ने किरदारों को एक माला में पिरोए हुए अलग-अलग गुणों और विशिष्टताओं वाले मोतियों की तरह प्रस्तुत किया है।

पुस्तक के कुछ महत्वपूर्ण अंश:

काश:

लेखक को आबूलेन के बैंक में खाता खोलना था, जहां की डिप्टी मैनेजर प्रीति थी। मुलाकातों के बाद, लेखक को प्रीति नेक दिल की लगी। उसकी सुंदरता में अदभुत पीड़ा छिपी थी। प्रीति अपनी बहन की शादी करवाना चाहती थी और उसने गबन कर आत्मसमर्पण कर दिया। प्रीति का सवाल “क्या तुम मेरा साथ दोगे जब मैं जेल से छूट जाऊंगी?” लेखक के हृदय को छू गया। यह रचना बहुत हृदयस्पर्शी है।

नैना:

नैना, जो अपनी जिंदगी से उबकर आत्महत्या करने जा रही थी, को एक युवक ने बचा लिया। नैना के घरवाले उसकी शादी एक शराबी से करना चाहते थे। युवक अजीत, जो नैना से ही शादी करने वाला था, उसे दिल्ली ले जाकर नौकरी ढूंढने की सलाह देता है। दोनों एक दूसरे को चाहने लगते हैं और शादी करने का फैसला करते हैं। 

कशमकश:

करिश्मा, जो पर्यटकों को नाव विहार कराने के साथ फूल भी बेचती है, अपनी मासूमियत भरी मुस्कान से लेखक को प्रभावित करती है। करिश्मा के पति को कैंसर था, और वह उसकी सेवा के साथ-साथ बहन की शादी की जिम्मेदारी भी निभा रही थी। करिश्मा का किरदार बहुत बड़ी सीख देता है।

सफर के हमसफ़र:

इस रचना में प्रणय बाबू और उनकी पत्नी सुचिता का जिक्र है। सुचिता लेखक की नैतिकता की परीक्षा लेती है, लेकिन लेखक इस परीक्षा में सफल होते हैं। यह रचना लेखक की सवश्रेष्ठ रचनात्मकता को प्रदर्शित करती है।

सुबह हो गई:

डॉक्टर प्रकाश और उनकी पत्नी तूलिका की कहानी। डॉक्टर प्रकाश अपनी पत्नी को समय नहीं दे पाते, लेकिन तूलिका की लेखन में रुचि देख, लेखक महोदय को कहानी, कविता सिखाने के लिए कहते हैं। इस रचना में पति-पत्नी के प्रेम और मानवता के रिश्ते की गहराई को बताया गया है।

पुस्तक “मैं इश्क लिखूं तुम बनारस लिखना” से इश्क होना सम्भव है। इसे बार-बार पढ़ा जाए, तो भी इश्क बरकरार रहेगा। आदरणीय पंकज सक्सेना जी, इस पुस्तक को मुझ तक पहुँचाने के लिए आपका बहुत आभार। आपके ही कारण मुझे इस पुस्तक पढ़ने का मौका मिला। हृदयतल से आभार व्यक्त करती हूँ।

सादर

रेणु ददलानी (भोपाल से)

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