पुस्तक समीक्षा : ‘जर्नलिज़्म AI’: तकनीक के शोर में मनुष्यता की आवाज़

व्योमेश शुक्ल
वक़्त के बदलते पहिए ने जब छापाखाने की स्याही को डिजिटल अक्षरों में ढाला, तब पत्रकारिता ने अपनी परंपरा और प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ने की कोशिश की। पर आज, जब सूचना का संसार कृत्रिम बुद्धि के हवाले हो रहा है, तो एक सवाल धीरे-धीरे हमारे मन में दस्तक देता है कि क्या तकनीक के इस तीव्र उभार में पत्रकारिता की आत्मा कहीं खो तो नहीं जाएगी?
बनारस के वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत की पुस्तक ‘जर्नलिज़्म AI’ इसी बेचैनी का सृजनात्मक उत्तर है। यह केवल एक तकनीकी गाइड नहीं, बल्कि उन जटिल और गहरे सवालों की साहित्यिक खोज है जो आज हर पत्रकार, लेखक, पाठक और पाठक बनने की आकांक्षा रखने वाले को झकझोर रहे हैं।

यह किताब उस crossroads पर खड़ी दिखती है, जहां एक रास्ता तकनीकी दक्षता की ओर ले जाता है और दूसरा मानवीय मूल्यों की ओर। लेखक का कहना है, “इन दोनों रास्तों को मिलाकर ही नई पत्रकारिता की इमारत खड़ी हो सकती है।” विजय विनीत ने इस नई इमारत की नींव अपने शब्दों से रखी है। शब्द जो केवल टाइप नहीं किए गए हैं, महसूस किए गए हैं।
AI की आंधी में शब्दों का दीपक
आज हर ओर AI का शोर है-ChatGPT, Bard, Gemini, Midjourney… हर तकनीकी टूल हमारे सामने एक नया चमत्कार पेश कर रहा है। लेकिन ‘जर्नलिज़्म AI’ इन चमत्कारों की चमक में छिपी परछाइयों को भी देखने का साहस रखती है। यह पुस्तक कहती है कि तकनीक अगर दिशा न पाए, तो वह केवल गति बनकर रह जाती है और गति बिना संवेदना के विनाश का रास्ता बनती है। विजय विनीत AI को केवल एक ‘साधन’ नहीं, बल्कि एक ‘सह-यात्री’ के रूप में देखते हैं। उन्होंने बड़ी सूक्ष्मता से बताया है कि पत्रकार कैसे इस तकनीक से अपनी रचनात्मकता को नया विस्तार दे सकता है, न कि उसे खोकर सिर्फ ‘जेनरेटर’ बन जाए।
‘जर्नलिज़्म AI’ उस युवा पीढ़ी के लिए एक पाथेय की तरह है, जो पत्रकारिता की ओर देख तो रही है, पर दिशा को लेकर संशय में है। किताब में विस्तार से बताया गया है कि कैसे AI का उपयोग रिपोर्टिंग, संपादन, विश्लेषण और सामग्री निर्माण में किया जा सकता है। राजनीतिक, अपराध, खेल, स्वास्थ्य, महिला, कृषि, पर्यावरण से लेकर विज्ञान और साहित्य तक-हर क्षेत्र की रिपोर्टिंग में AI की भूमिका को लेखक ने सरल भाषा और व्यावहारिक उदाहरण के साथ प्रस्तुत किया है।
यह पुस्तक एक प्रकार का नया ‘कोर्सबुक’ बन सकती है पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए। जो सीखना चाहता है कि AI के ज़रिये एक इंटरव्यू कैसे लिया जाए, फ़ीचर कैसे लिखा जाए, कैसे अपनी आवाज़ में समाचार पढ़ा जाए, कैसे एक मोबाइल फोन से YouTube चैनल, Instagram रील्स या ब्लॉग तैयार किया जाए,उसके लिए यह पुस्तक एक गुरु की भूमिका निभा सकती है।

सूचना के समुद्र में संवेदना की नाव
किताब का सबसे सशक्त पक्ष यही है कि यह तकनीक के बीच भी आत्मा की तलाश करती है। जब लेखक कहते हैं, “यदि पत्रकार अब शब्दों की उष्मा के स्थान पर केवल कमांड और कोड से चलेगा, तो पत्रकारिता खबर नहीं बनेगी,”तो वह हमें याद दिलाते हैं कि तकनीक का हर औज़ार केवल साधन है, साध्य नहीं।
यह चेतावनी भी है और उम्मीद भी। चेतावनी इसलिए कि अगर हम केवल ‘generate’ करने लगें और ‘सोचना’ छोड़ दें, तो पत्रकारिता से उसका मनुष्यता का पक्ष छिन जाएगा। और उम्मीद इसलिए कि लेखक विश्वास रखते हैं कि आने वाली पीढ़ी सोचने की प्रक्रिया को जिंदा रखेगी-चाहे AI कितना भी उन्नत क्यों न हो।
‘जर्नलिज़्म AI’ की एक और उपलब्धि है उसका भाषा-प्रेम। तकनीकी विषयों के बीच भी लेखक ने भाषा, व्याकरण और लेखन के अनुशासन को जीवंत बनाए रखा है। किताब पढ़ते हुए लगता है कि यह केवल पत्रकारिता नहीं सिखा रही, यह अच्छा इंसान और अच्छा लेखक बनने की राह भी दिखा रही है।

विजय विनीत व्याकरण को बोझ नहीं, बल्कि सौंदर्य मानते हैं। भाषा की शुद्धता को केवल तकनीकी शुद्धता नहीं, बल्कि संवेदनात्मक प्रामाणिकता के रूप में देखते हैं। यही कारण है कि इस पुस्तक में व्याकरण के नियम भी आपको रूखे नहीं लगते, बल्कि वे लेखन की गरिमा बढ़ाने वाले सूत्र बनते हैं।
विचार और आत्मा की पुनर्प्रतिष्ठा
‘जर्नलिज़्म AI’ महज़ सूचना का पुलिंदा नहीं है। यह विचार का दस्तावेज़ है। यह उन प्रश्नों से टकराती है, जिन्हें आज का औसत पत्रकार शायद टाल जाना चाहता है। जब लेखक कहते हैं, “अब भी वक़्त है, सोचो, महसूस करो, और फिर लिखो… वरना यह दुनिया मशीनों की गूंज बनकर रह जाएगी” तो वे उस अदृश्य भय की ओर इशारा करते हैं, जिसमें मानवता अपनी पहचान खोती जा रही है।
यह पुस्तक हमें सिखाती है कि पत्रकारिता का भविष्य उन्हीं हाथों में सुरक्षित है, जिनमें तकनीक के साथ संवेदना भी हो। जहां रिपोर्टिंग में तथ्य हों, पर उनके पीछे एक मनुष्य की दृष्टि भी हो। जहां कहानी का केंद्र आंकड़ा नहीं, अनुभव हो। जहां ‘डेटा’ हो, पर उसमें ‘दर्द’ भी हो।

‘जर्नलिज़्म AI’ एक समकालीन पत्रकार की आत्मस्वीकृति है जहां वह तकनीक से डरता नहीं, पर उसकी सीमाओं को भी जानता है। यह एक जिम्मेदार लेखक की प्रस्तुति है, जो पाठकों से केवल पढ़ने का आग्रह नहीं करता, बल्कि महसूस करने और बदलने की प्रेरणा भी देता है।
विजय विनीत ने एक ऐसी किताब दी है, जो हमें सिर्फ आने वाले कल की तकनीक नहीं सिखाती, बल्कि वर्तमान के भीतर बैठी मनुष्यता की आवाज़ को पहचानने की सलाह देती है। यह किताब पत्रकारिता की आत्मा को बचाने की एक कोशिश है। उस आत्मा को जो शायद इन दिनों सबसे ज़्यादा खतरे में है।
यह पुस्तक एक मार्गदर्शक है, एक संवाद है, एक चेतावनी है और सबसे बढ़कर एक भरोसा है कि पत्रकारिता अभी मरी नहीं है। वह तकनीक के साथ नए कलेवर में सामने आ सकती है, बशर्ते हम उसे अपने भीतर से जीना न भूलें। सर्व भाषा ट्रस्ट-नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित ‘जर्नलिज़्म AI’ कुल 475 पृष्ठ की है। कीमत-499 रुपये है, जिसे अमेजन पर सिर्फ 449 रुपये में प्राप्त की जा सकती है।
(लेखक नागरी प्रचारिणी सभा
वाराणसी, नई दिल्ली और हरिद्वार