अब आसमां में उड़ेंगी उम्मीद खो चुकीं बेटियां
गरीबी से सूझ रही लड़कियों को एनटीपीसी गर्ल्स सुपर-30 बनाएगा टेक्नोक्रेट
अनूठी पहल
कंडक्टर, आटो ड्राइवर, किसान और मजदूरों की बेटियां बनेंगी इंजीनियर
यूपी के 21 जनपदों की 25 लड़कियों को दी जा रही मुफ्त कोचिंग
फिजिक्स, मैथ और केमेस्ट्री के साथ योग की भी चलती है क्लास
विजय विनीत
जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है/मेरे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है/अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमीं हमने/ अभी तो सारा आसमां बाकी है। इस जोश…, इस जज्बे…के नेपथ्य में है उन बेटियों की कहानी जिन्हें आपने कभी गाय-बकरी चराते देखा होगा, तो कभी दूध निकालते और खेतों में काम करते। प्रतिभा होने के बावजूद इन्हें मंजिल नहीं मिल पाती। एनटीपीसी का कमाल देखिए। देश की यह नवरत्न कंपनी ऐसी ही बेटियों को टेक्नोक्रेट बनने के लिए ताकत दे रही है। जिनकी माली हालत ठीक नहीं है, उनके सपनों में हकीकत का रंग भरने की कोशिश कर रही है। बेटियों के पंख पर ऐसा रंग लगा रही है कि तरक्की की आसमां में न उड़ पाने का उन्हें कतई मलाल न रहे। इनमें कोई कंडक्टर-ड्राइवर की बेटी है, तो कोई किसान-मजदूर की।
एनटीपीसी ने प्रतिभाशाली बेटियों को तराशने के लिए बनारस में गर्ल्स सुपर 30 शुरू किया है। यह अभियान उन प्रतिभाओं के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है जो आर्थिक तंगी के चलते अपने सपने को साकार नहीं कर पाती हैं। एनटीपीसी का सेंटर फार सोशल रिस्पांसबिलिटी एंड लीडरशिप (सीएसआरएल) प्रोग्राम बेटियों को अनूठे तरीके से निखार रहा है। सुपर-30 में गरीबों की बेटियों को फिजिक्स, मैथ और केमेस्ट्री के साथ दी जाती है योग की क्लास। सिर्फ आवास, भोजन ही नहीं, पाठ्य पुस्तकें और अन्य सभी जरूरी सुविधाएं भी यहां मुफ्त दी जा रही हैं। यहां बेटियों को 11 महीने तक ट्रेनिंग दी जाएगी। ऐसी ट्रेनिंग, जो टेक्नोक्रेट बनने के लिए उनकी हर मुश्किलें आसान कर देगी।
नवलपुर बसही की जयप्रकाश नगर कालोनी में है एनटीपीसी सुपर गर्ल्स सुपर-30 का कोचिंग सेंटर। यहीं तराशी जा रही हैं गरीबों की हुनरमंद बेटियां। यहां यूपी की 21 जिलों की 25 लड़कियां आईआईटी इंट्रेंस अच्छे नंबरों से पास करने के लिए पढ़ाई कर रही हैं। इनमें कुछ तो ऐसी भी हैं जिनके सिर से पिता का साया भी उठ चुका है। एनटीपीसी अगर इनके सपनों में पंख नहीं लगाता तो शायद इनकी प्रतिभा घरों की चहारदीवारी में दम तोड़ देती। सुपर 30 में पढ़ने वाली सभी लड़कियां वो हैं जिनका परिवार आर्थिक रूप से विपन्न है। एनटीपीसी इन्हें अनूठी ट्रेनिंग देकर महिला सशक्तिकरण की ओर मजबूत कदम बढ़ा रहा है।
एनटीपीसी गर्ल्स सुपर 30 में 24 घंटे का टाइट शेड्यूल रखा गया है। सुबह से शाम तक पढ़ाई, खेलकूद और फिर पढ़ाई। सुबह 7 से 9.30 तक केमेस्ट्री की क्लास। फिर 10.30 से 1.00 बजे तक मैथ-फिजिक्स की पढ़ाई। लंच के बाद खेलकूद। फिर आधी रात तक पढ़ाई। साथ ही हर रोज कराया जाता है योग। यहां सभी बेटियां कड़ी सुरक्षा में सीसी टीवी कैमरे की निगरानी में रहती हैं।
… तो टूट जाता इंजीनियर बनने का सपना
वाराणसी। कानपुर की तान्या को उसके पिता का चेहरा ठीक से याद नहीं। फकत पांच साल की उम्र में उसके सिर से उठ गया था पिता का साया। बोझ बन गई थी जिंदगी। टूट गए थे सपने। मां रोडवेज बस में कंडक्टर हैं। मगर इतना पैसा नहीं कि वह आईआईटी इंट्रेंस के लिए कोचिंग क्लास की फीस भर सके। सुपर 30 में उसका दाखिला हुआ तो हौसलों को पंख लग गए। उसे यकीन है कि वह आईआईटी इंट्रेंस पास करके टेक्नोक्रेट जरूर बनेगी। तान्या यह भी कहती है कि सुपर 30 में दाखिला न होता तो मन मारकर उसे कहीं से ग्रेजुएशन की डिग्री लेनी पड़ती। शायद अफसोस रह जाता जिंदगी भर। तब जिंदगी देती हर वक्त कसक भरा दर्द। इंजीनियर बनने का सपना तो शायद ही पूरा हो पाता।
बुझने से बच गई लक्ष्य पाने की ज्योति
वाराणसी। सुल्तानपुर की रुचिता पांडेय के सिर पर भी पिता का साया नहीं है। अगर कुछ है तो सिर्फ उनका आशीर्वाद। सुपर 30 की बदौलत ही लक्ष्य पाने की ज्योति अभी जल रही है। ऐसा न होता तो शायद वह अपने सपनों को भुलाकर गुमनामी में कहीं खो गई होती। जीवन में बड़ा लक्ष्य पाने की ज्योति बुझने से बच गई। रुचिता के साथ पढ़ने वाली सभी लड़कियों की अपनी अलग-अलग कहानी है, जिन्हें स्वर दिया है एनटीपीसी ने।
कठिन है चयन प्रक्रिया
वाराणसी। सुपर गर्ल्स 30 में प्रवेश आसान नहीं है। इस कोचिंग में पढ़ने के लिए एनटीपीसी उन्हीं गरीब लड़कियों को अहमियत देता है जो इंट्रेंस में अव्वल आती हैं। इम्तिहान यूपी के हर प्रमुख जिले में होता है। प्रोजेक्ट मैनेजर दीपिका भार्गव बताती हैं कि 21 जुलाई से पहला बैच शुरू हुआ है। उन्हें यकीन है कि सुपर 30 में पढ़ने वाली सभी बेटियां इतिहास रचेंगी। उन्होंने यह भी बताया कि गरीब लड़कों के लिए गिलटबाजार स्थित राम जानकी धाम कालोनी में कॉनकोर सुपर 30 संचालित किया जा रहा है। एनटीपीसी के अधीन चलने वाली इस मुहिम के बल पर दो सालों में 35 परवाज में पंख लगे और आईआईटी में दाखिले के बाद इंजीनियर बनने का उनका सपना पूरा होता नजर आ रहा है।