सिर्फ बनारस को पढ़ा, बबुरी का इतिहास नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा

सिर्फ बनारस को पढ़ा, बबुरी का इतिहास नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा

राजा बब्रुवाहन की राजधानी हुआ करती थी बबुरी

चंदौली से सत्य प्रकाश की रिपोर्ट

आपने सिर्फ काशी को पढ़ा, चंदौली के बबुरी को नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा। इस कस्बे में एक एक ऐसा इतिहास दफन है, जिससे चंदौली के लोग भी अनजान हैं। किसी जमाने में बबुरी राजा बब्रुवाहन की राजधानी हुआ करती थी। इस कस्बे के कण-कण में दफन हैं इतिहास के अनोखे पन्ने। खुदाई में कई पुरातात्विक धरोहरें मिली हैं। राजा बब्रुवाहन के समय के कई मंदिर और मूर्तियां विद्यमान हैं। उपेक्षा की शिकार हैं।

काशी के पूर्वी छोर पर बसा चंदौली अपने आप में अनमोल ऐतिहासिक विशेषता रखता है। बबुरी के सीने में इतिहास के कितने पन्ने दफन हैं यह कह पाना मुश्किल है। चंदौली जनपद के बबुरी क्षेत्र में कई दशक से खुदाइयों मे मिलने वाली पुरातात्विक धरोहर इसकी प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। यहां से निकली धरोहर कहीं अपनी महत्ता के कारण मंदिरों में विराजमान हैं तो कहीं उपेक्षित सी पेड़ पौधों के बीच धूल धूसरित हैं। अगर बबुरी की ऐतिहासिकता की चर्चा की जाए तो इतिहास बताता है कि बबुरी राजा बब्रुवाहन की राजधानी हुआ करती थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम बबुरी पड़ा।

बबुरी के सीने में दफन है एक अदद इतिहास

राजा बब्रुवाहन की कुलदेवी मां बागेश्वरी का ऐतिहासिक सिद्धपीठ मंदिर आज भी क्षेत्रीय लोगों के लिए आस्था और शक्ति पुंज का केन्द्र है। सत्रहवीं शताब्दी में देश के महान विद्वान नागेश भट्ट ने इसी मंदिर में कठिन तपस्या कर सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस मंदिर प्रांगण के किनारों पर राजा बब्रुवाहन के ऐतिहासिक राजशाही टीले होते थे, जिन्हें कोट के नाम से जाना जाता था। आज उसी कोट की भूमि पर पुराने थाने से लेकर मंदिर प्रांगण तक तमाम बस्तियां बसी हुई हैं। राजा बब्रुवाहन के काल का कोट मंदिर बबुरी के कुम्हार बस्ती में और ऐतिहासिक कुआं आज भी मंदिर परिसर मे विद्यमान है। इतिहास बताता है कि बबुरी में ही आल्हा ने राजा बब्रुवाहन से युद्ध कर अपने भाई उदल को उसके कैद से मुक्त कराया था।

बबुरी क्षेत्र की मिट्टी के गर्भ मे कितने ही रहस्य हैं जो आज भी दफन हैं। खुदाइयों के दौरान ऐसे रहस्यों से जब पर्दा उठता है तो लोग अकस्मात ही इस क्षेत्र की दिव्यता के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। सैकड़ों वर्ष पहले बबुरी क्षेत्र के हटिया गांव में खेत की जुताई के दौरान हनुमान जी की मूर्ति मिली थी, जहां श्रद्धालुओं ने एक भव्य मंदिर का निर्माण कर मूर्ति को स्थापित किया। डवक गाव के बीच खेत में ऐसी ही परिस्थितियों में भगवान शिव का एक विशाल शिवलिंग प्राप्त हुआ जहां आज भी भगवान शिव के दर्शन पूजन के लिए भक्तों का तांता लगता है।

इसी क्रम में पसही गांव में भी एक स्वंभू शिवलिंग सैकड़ो साल पहले प्रकाश में आया था, जहां आज एक भव्य शिवालय स्थापित है। बबुरी के तालाब के पास भी एक स्वयंभू देवी प्रतिमा मां कालिका जी नाम से मंदिर में स्थापित है। इन सभी प्रतिमाओं के प्रति क्षेत्रवासियों की अटूट श्रद्धा है। इसके अलावा डवक गांव में एक मोबाइल टावर के निर्माण के लिए खुदाई के दौरान दर्जनों नर कंकालो के अवशेष मिले थे, जो पुरातत्व विभाग के अनुसार सैकड़ों वर्ष पहले के थे। खुदाई में इन कंकालो के साथ ही मिट्टी के बर्तन भी मिले जो कि पुरातात्विक काल के बताए जाते हैं। कुछ वर्ष पहले बरसात के दौरान बाजार में एक सड़क धंस गई। देखे जाने पर वहां एक छोटे ब्यास का पक्का गहरा कुआ पाया गया, जबकि गांव के बुजुर्गों ने अपनी जानकारी में कभी भी वहां किसी कुएं के होने से इनकार किया।

खंडित मूर्तियां कहती हैं अपनी भव्यता की कहानी

खुदाइयों मे अखण्डित प्रतिमाओं को जहां आस्था मिली, वहीं खण्डित मूर्तियां कहीं दीवालों के सहारे तो कहीं वृक्षों के नीचे उपेक्षित पड़ी हुई हैं। क्षेत्र के नगई गांव में एक मंदिर के चारदीवारी के बाहर भगवान विष्णु की आदम कद प्रतिमा गले के पास से खण्डित अवस्था में पड़ी हुई है। पास ही एक विशालकाय शिवलिंग और कई खण्डित प्रतिमाएं बिखरी पड़ी है। इसी तरह क्षेत्र के चित्तौड़ी गांव मे एक पीपल के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु की ही कमर तक की टूटी मूर्ति और साथ ही आधा दर्जन भव्य मूर्तियों के अवशेष पड़े हुए हैं। इन मूर्तियों की नक्काशियां मूर्तिकारों की सिद्धहस्तता का परिचय देती हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह क्षेत्र काशी की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा में आता है। अभी कुछ वर्ष पहले तक एक वृद्ध साधु हर वर्ष यहां आकर रात्रि विश्राम करते थे। यहां एक ऐतिहासिक पोखरा हुआ करता था, जो कालांतर में अतिक्रमण के कारण अब खेतों के रूप में तब्दील हो गया है। आज अगर बबुरी क्षेत्र के आसपास पुरातत्व विभाग खुदाई कराए तो निश्चित तौर पर हड़प्पा मोहनजोदड़ो की तरह एक विस्तृत सभ्यता का उदय हो सकता है।

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