चार साल की जेल यातना भी नहीं तोड़ पाई हौसला

राजनीतिक बर्बरता के खिलाफ लड़ते हुए न हारे, न कभी टूटे बाबू सिंह कुशवाहा
विजय विनीत
वक्त ने फंसाया है, मगर परेशान नहीं हूं,
हालातों से हार जाऊं वो इंसान नहीं हूं।
मुझे ये फिक्र नहीं, सर रहे-रहे ना रहे,
सच कहता था, सच कहेंगे इंसान वही हूं।
सच और साफगोई के हिमायती बाबू सिंह कुशवाहा की जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है। बसपा सरकार में यूपी के कद्दावर मंत्री रहे श्री कुशवाहा की खुद्दार जिंदगी किसी अफसाने से कम नहीं। समाज के जिन मूल्यों के लिए उन्होंने संघर्ष किया, उनमें वह तेवर आज भी बरकरार है। मजबूत और परिपक्व नेता की तरह। बेकसूर होते हुए भी चार साल तक सलाखों में रहने वाले बाबू सिंह में आज भी वह ताकत है जो हवा का रुख गरीबों की झोपड़ी और किसानों की खेतों की ओर मोड़कर ले जाने की ताकत रखते हैं। कहते हैं, मैं नीतियों का समर्थक रहा हूं, व्यक्तियों का नहीं। नीतियों की सफाई अभी बहुत मामलों में होना बाकी है। मेरा नेता नीति है, विधान है, संविधान है, व्यक्ति नहीं। मेरा नेता पिछड़ा हुआ इंसान है। मेरा नेता नंगा-भूखा और उदास आदमी है। मेरा नेता गांवों में रहने वाले गरीब इंसान हैं। मैं नीतियों की चादर ओढ़े हुए हूं..जिसे न फटने दूंगा और न गंदा होने दूंगा…। श्री कुशवाहा की जिंदगी किसी अद्भुत कथा की तरह लगती है। अपने जज्बातों को काबू में रखकर आखिर जेल में कैसे बिताए इतने साल?
मेरी सफलता को नहीं, जितनी बार गिरा हूं और उठा हूं उसे आंकिए
पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा टूटे नहीं हैं। करीब चार सालों तक काल कोठरी में जीवन गुजारने के बावजूद उनमें गजब का धैर्य है…। गजब का हौसला… और गजब का तेवर है…। इन्हें अब जेल का डर नहीं सताता। कहते हैं, राजा उन्हीं से डरता है जो ताकतवर होता है। जो उसे कुर्सी पर उतारने की हैसियत रखता है। राजाओं में यह डर सनातन काल से चला आ रहा है। राजशाही के जमाने से। ताकतवर लोगों को राजा पहले देशद्रोही सिद्ध करते थे। बाद में साजिश रचकर उन्हें काल कोठरी डलवा देते थे। हत्या तक करा देते थे। स्थिति आज भी वही है। बस, समय, काल और परिस्थितियां बदल गई हैं। व्यवस्थाएं बदल गई हैं। राजाओं की फौज की जगह, सीबीआई आ गई है। घाघ अफसर आ गए हैं। राजा को लगता है कि बाबू सिंह ज्यादा दिन बाहर रहे तो उनका वोट बैंक खिसक जाएगा। चार-छह महीने में सीबीआई नई कहानी गढ़ देती है। शिगूफा छोड़ती है। मनगढ़ंत चार्ज लगाकर हवालात में ठूंस देती है। फिर बेल करानी पड़ती है। लगातार चल रही है ये कहानी।
बाबू सिंह कुशवाहा कहते हैं, वह देश के इकलौते नेता हैं जिन्हें बिना सबूत और एक आरोपी के बयान के आधार पर अंडर ट्रायल चार साल तक हवालात में गुजारने पड़े। सुप्रीम कोर्ट में जमानत की सुनवाई के समय भी सीबीआई अफसरों ने विरोध किया। यूपी के कुछ ऐसे अफसर हैं जो जिनकी उनके विरोधियों से साठगांठ है। डाक्टरों के हत्यारों से उनके गठजोड़ हैं।
श्री कुशवाहा ने पहली बार उन किस्सों को बयां किया जो उनकी जिंदगी में अफसाने बन गए थे। वह कहते हैं कि मेरी सफलता को मत आंकिए, जितनी बार गिरा हूं और उठा हूं उस बल को आंकिए। मेरी जिंदगी के उन पलों को गिनिए जिनमें समाज के आखिरी आदमी के लिए हमने क्या कुछ नया और अलग किया है। एनआरएचएम घोटाले के जिक्र करने पर लंबी सांस खींचते हुए कहते हैं, आप रिकार्ड देखिए। मेरे खिलाफ कोई रिटेन एविडेंस नहीं है। सारे आरोप ओरल हैं। गढ़े गए हैं। असली घोटालेबाजों को बचाने के लिए। हत्यारों को बचाने के लिए। लोगों को याद होगा कि लखनऊ में छह-छह महीने के अंतराल में डा.वीपी सिंह और डा.आर्या का कत्ल कर दिया गया। मामला कानून व्यवस्था से जुड़ा था। गृह विभाग से जुड़ा था।
पुलिस और अफसरों के नाकारेपन के चलते दोनों हत्याएं हुईं। तीसरे डाक्टर का कत्ल जेल में कर दिया गया। इन हत्याओं को लेकर देश भर में बावेला मचा। मैने अभियुक्तों को पकड़ने के लिए दबाव बनाया। यही मेरा कसूर बन गया। यह कहकर मुझसे रिजाइन मांग लिया गया कि जो डाक्टर मारे गए हैं वो विभाग आपका है। गृह विभाग तो सीएम के पास ही था। जेल महकमा भी उन्हीं के पास था। मुझे हैरानी हुई कि डीजीपी और होम सेक्रेट्ररी का बालबांका नहीं हुआ। वे न हटे, न उन पर कोई कार्रवाई हुई। कहा गया कि इस्तीफा दे दो, बाद में देख लेंगे।
मेरी जिंदगी के उन पलों को गिनिए जिनमें क्या कुछ नया और अलग किया
डाक्टरों की मौत की जांच की बात उठाई तो मुझे चुप कराने की बहुत कोशिश की गई। मीडिया में हत्या की चर्चा हर हाल में रोकना था, सो एनआरएचएम घोटाले का शिगूफा छोड़ दिया गया। इस घोटाले को प्रचारित करने और हत्या के मामलों को दबाने के लिए वे सारे हथकंडे अपनाए गए जो संभव थे। बगैर किसी पुख्ता सबूत के मुझे जेल भेज दिया गया। हत्या की फाइलें दफना दी गईं और एनआरएचएम घोटाला जिंदा रह गया। यूपी के तीन ईमानदार और नामी डाक्टरों की हत्या की आज उनकी कोई चर्चा नहीं करता। न मीडिया करती है, न नेता करते हैं।
श्री कुशवाहा बताते हैं कि जिस समय ये घटनाएं हुईं उस समय कांग्रेस सत्ता में थी और बसपा उसे समर्थन दे रही थी। यूपी के विधान सभा चुनाव में हमने भाजपा का प्रचार किया। डाक्टरों के हत्यारों ने भाजपा के स्वार्थी नेताओं को भी खरीद लिया। अब मैं जब भी समाज को जोड़ने की कोशिश करता हूं, साजिश के तहत सीबीआई मुझे एक चार्जशीट थमा देती है। मेरी आवाज दबाने लिए अनगिनत कोशिशें हुई। सीबीआई आज तक मेरे खिलाफ डाकुमेंट्री एविडेंस नहीं जुटा सकी। सब कुछ ओरल चल रहा है। फैसला न्यायालय को करना है। सरकार जब चाहती है, सीबीआई अफसर नया शिगूफा छोड़ देते हैं। जेल भेजने का मुद्दा वोटों से जुड़ा है। राजनीतिक स्वार्थों से जुड़ा है। कहानी लगातार दोहराई जा रही है। हालात चाहे जो भी रहे हों, बाबू सिंह कतई नहीं डिगे। पिछड़ों और दलितों की मुश्किल भरी जिंदगी को लेकर इनके मन में जो ताकत है…, जो धीरज है…, जो प्रतिबद्धता है…, उसी के दम पर गरीबों के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए जंग लड़ रहे हैं।
नोटबंदी के सवाल पर श्री कुशवाहा कहते हैं कि जब कभी इतिहास लिखा जाएगा तो नोटबंदी को काला दिन के रूप में लिखा जाएगा। केंद्र के इस प्रपंच से कुटीर उद्योग तबाह हो गए। शुरू में गरीबों को लगा कि यह सब कालधन निकालने के लिए हो रहा है। जमाखोरों को पकड़ने के लिए हो रहा है। उस समय लोग नहीं बोले। नोटबंदी के दुष्प्रभाव का पता तब चला जब गरीब तबाह हो गए। उनके सामने फांकाकशी की नौबत आ गई।
श्री कुशवाहा कहते हैं कि मोदी सरकार को लाने में पिछड़ों और दलितों की अहम भूमिका रही। सरकार ने इसी वर्ग के लोगों का नुकसान सबसे अधिक किया। इनका आरक्षण छीन लिया। अधिकार छीन लिया। मलाईदार ओहदों पर स्वार्थी लोग बैठा दिया। इसलिए लड़ रहे हैं कि हमें गरीबों के अधिकार और सम्मान को वापस दिलाना है। राजनीति ही ऐसी सीढ़ी है जो उन्हें आबादी के आधार पर आरक्षण और सत्ता में भागीदारी दिला सकती है। भाजपा सरकार ने आरक्षण को लगभग खत्म कर दिया है। ओबीसी और एससी-एसटी के लोग करीब 50 बरस पीछे चले गए हैं। सरकार उन अधिकारों के भी मिटाने पर उतारू है जिन्हें बाबा साहेब सरीखे लोगों ने दिलाया था। आरक्षण बचाना है तो सरकार बदलनी होगी। हम आबादी के हिसाब से हर वर्ग को आरक्षण देने के पक्षधर हैं। हमने सभी जिलों में जनअधिकार पार्टी का संगठन खड़ा किया है। जहां हमारी तैयारी अच्छी है, वहां से हम लोकसभा चुनाव जरूर लड़ेंगे।