बनारस में भक्तों के लिए गांधी से ज्यादा जरूरी गोडसे
काशी में बापू के हत्यारे का महिमामंडन
जिस तारीख को बापू का हुआ था कत्ल, उसी रोज गोडसे पर खेला जाएगा नाटक
0 विजय विनीत
बनारस में अब एक नया बनारस जन्म ले रहा है। यह नया बनारस है भक्तों का। उन भक्तों का, जिनके लिए महात्मा गांधी से ज्यादा जरूरी हैं गोडसे। वही नाथूराम गोडसे जिसने महात्मा गांधी का कत्ल किया था। गांधी के घोर आचोलक और हत्यारे गोडसे का महिमामंडन उस शहर में किया जा रहा है जहां के लोगों ने फिरंगी शासकों को खदेड़ दिया था और देश में लोकतंत्र का पताका फहराया था। वाराणसी में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के साथ मिलकर भाजपा के अनुसांगिक संगठन संस्कार भारती ने 27 से 31 जनवरी तक बनारस नाट्य महोत्सव का आयोजन किया है।
तीस जनवरी को जिस नाटक का आयोजन किया गया है उसका नाम है गोडसे। हैरत यह है कि जिस दिन गांधी हत्या हुई थी, ठीक उसी दिन गोडसे के सम्मान में इस नाटक के मंचन का ऐलान किया गया है। बनारस में गोडसे सम्मान में अब से पहले इस तरह से किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया गया था। बनारस थिएटर क्लब के तत्वावधान में मंचित किए जाने वाले इस नाटक के लेखक हैं उत्कर्ष उपेंद्र सहस्रबुद्धे। निदेशक अर्पित शिधोरे हैं। बनारस थिएटर क्लब भक्तों का है और भक्त ही गोडसे नाटक के कलाकार हैं।
मर गया आंख का पानी
अब लगता है कि बनारस के तथाकथित बुद्धिजीवियों और सांस्कृतिककर्मियों की आंख का पानी मर गया है। शहर में वाराणसी रंग महोत्सव की होर्डिंग्स चौराहों पर लगी हैं, लेकिन सबकी जुबां पर ताले लगे हैं। प्रशासन भी खामोश है। बनारस की सरकार के हुक्मरान भी मौनीबाबा बन गए हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अफसरों ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए बनारस में इस धतकरम के लिए संस्कार भारती को पूरी छूट दे रखी है। गोडसे पर मंचन के लिए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने नागरी नाटक मंडली का थिएटर भी फोकट में अलाट कर दिया है।
अजूबा यह है कि गोडसे नाटक का मंचन उसी दिन रखा गया है जिस तारीख को महात्मा गांधी को नाथूराम ने गोली से उड़ाया था, यानी तीस जनवरी। इस मुद्दे पर बनारस के बुद्धिजीवी चुप हैं और गांधी के नाम पर दुकानें चलाने वाले सियासी दल भी। शहर की हर गली-नुक्कड़ पर खड़ी संस्थाओं के कर्ता-धर्ता मोतियाबिंद के शिकार हो गए हैं। कुछ इसी तरह की बीमारी से ग्रसित है गोदी मीडिया। बनारस के पत्रकारों और लेखकों को लगता है कि इन दिनों महात्मा गांधी से ज्यादा जरूरी हैं गोडसे। बापू के हत्यारे के जीवन पर लिखे गए नाटक को समूचा बनारस ऐलानिया तौर पर देखेगा।
धर्मांध हत्यारा था गोडसे
दुनिया जानती है कि गोडसे एक हिन्दू धर्मांध हत्यारा था, जिसने दिन-दहाड़े गांधीजी को मौत के घाट उतार दिया था। उसने उस बापू का कत्ल किया था, जिन्होंने देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। लगता है कि जो लोग गोडसे का नाम आते ही अपनी आंख, नाक, कान बंद होने का स्वांग रचते रहे हैं , उनके लिए इस कातिल का नाम अब बहुत काम की चीज है। 1980 के दशक तक देश में गोडसे का नाम लेने से लोग डरते थे और अब शौक से लिया जा रहा है। नाम की कौन कहे, नाटक भी रच दिया गया है।
दरअसल, बापू की हत्या में हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा वाले वीर सावरकर का नाम भी उछला था। हालांकि 10 फरवरी 1949 के फ़ैसले में विशेष न्यायालय ने साक्ष्य के अभाव में सावरकर को दोषमुक्त करार दे दिया था। सावरकर कवि, लेखक और नाटककार भी थे। इसके बावजूद संघ और भाजपा के कुछ नामचीन नेताओं को विपक्षी दल गांधी के कातिल बताते रहे हैं। जब से बनारस में भक्ति भावना बढ़ी है तब से गोडसे का ओहदा गांधी से ज्यादा बड़ा हो गया है। बापू की ब्रांडनेम की ब्रांडवैल्यू कमज़ोर हो गई है। समूची दुनिया इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक को महात्मा गांधी का करीबी संबंधी समझती रही है। कांग्रेस ने गांधी के ब्रांडनेम के दम पर ही हिन्दुस्तान में सालों तक राज किया था।
विचारधारा से नफ़रत
बनारस में ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा हो गई है जो इतिहास को भूलकर गोडसे के पक्ष में तर्क देते नजर आ रहे हैं। गोडसे ने अपनी गिरफ्तारी के बाद गांधी के पुत्र देवदास गांधी को पहचान लिया था, जब वे गोडसे से मिलने पुलिस संसद मार्ग स्थित थाने में पहुंचे थे। इस चर्चित मुलाकात का जिक्र नाथूराम के भाई और सह अभियुक्त गोपाल गोडसे ने अपनी किताब-गांधी वध क्यों, में विस्तार से किया है। गोपाल गोडसे फांसी से बच गया था, लेकिन उसे क़ैद की सजा हुई थी।
नाथूराम ने देवदास गांधी से कहा कि वह नाथूराम विनायक गोडसे है। हिंदी अख़बार हिंदू राष्ट्र का संपादक। मैं भी वहां था (जहां गांधी की हत्या हुई)। तुमने अपने पिता को खोया है। तुम्हें दुख पहुंचा होगा। इसलिए मुझे भी दुख है। सिर्फ सियासी कारणों से बापू की हत्या की है।
गोडसेवादियों का तर्क यह है कि 32 सालों तक लोकतांत्रिक विचारों में उत्तेजना भरने वाले गांधी ने जब मुस्लिम समुदाय के लोगों के पक्ष में उपवास रखा, तब गोडसे को बापू रास्ते से हटाना पड़ा। नाथूराम को लगता था कि वो ऐसा नहीं करता तो उसे और कांग्रेस को गांधी के लिए अपना रास्ता छोड़ना पड़ता। गांधी की सनक, सोच, दर्शन और नजरिए को भी अपनाना पड़ता या फिर गांधी के बगैर ही आगे बढ़ना होता। गोडसे को यह भी लगता था कि गांधी की नीतियां मुसलमानों के पक्ष में हैं। वो उन्हें तानाशाह और हिन्दू विरोधी मानने लगा था। गोडसे पर यह भी आरोप लगा था कि उसका ‘ब्रेनवाश’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किया था।
गांधी दर्शन पर लट्टू दुनिया
महात्मा गांधी भले ही अपने पीछे कितना सुगंधित एहसास छोड़कर गए हैं, लेकिन आरएसएस के लोग उनके दर्शन को समझने के लिए कतई तैयार नहीं हैं। बनारस में भक्तों की तादाद इतनी ज्यादा हो गई है कि गांधी जी के कत्ल से उपजी तमाम बातें सियासी धुंध में गायब हो गई हैं। आरएसएस और भाजपा का अनुसांगिक संगठन संस्कार भारती अब खुलेआम नाथूराम गोडसे के महिमामंडन में जुट गए हैं। महिमा मंडन ऐसे कातिल का किया जा रहा है जिसे समूची दुनिया हिकारत की नजर से देखती है। बनारस वाले मिश्रा जी और बनारस के वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव वर्मा कहते हैं कि बनारस रंग महोत्सव के आयोजन के नेपथ्य में गोडसेवाद का प्रचार करना है। साथ ही उस आतंकवाद को बढ़ावा देना है जिससे भारत के लोग घृणा करते हैं।
इनक पक्ष-
वाराणसी नाट्य विद्यालय के निदेशक रामजी बाली का पक्ष यह है कि गोडसे नाटक का मंचन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। नाट्य विद्यालय बनारस में कोई विवाद नहीं खड़ा करना चाहता है।