काशी के लोग कैसे झेलेंगे तरंगों की मार
एक हजार से ज्यादा टावर पहुंचा रहे हैं सेहत को नुकसान
विजय विनीत
वाराणसी शहर में मनमाने ढंग से लग रहे मोबाइल टावरों (बीटीएस) की मार सीधे सेहत पर पड़ रही है। जाने-अनजाने हम बीमारियों को न्योता दे रहे हैं। दूसरे महानगरों के मुकाबले काशी में यह खतरा ज्यादा है। इसकी वजह है घनी आबादी और टावरों का संजाल। केन्द्र सरकार ने पांच साल पहले एक समिति गठित की थी, जिसकी सिफारिश थी कि टॉवर से 50 मीटर के दायरे में न कोई स्कूल होना चाहिए और न ही मकान। इसके बावजूद काशी में 12 सौ से अधिक टॉवर घनी आबादी के बीच हैं। कई मुहल्लों में एक नहीं कई-कई टॉवर लगे हैं। जिले में करीब पांच सौ टावर बीएसएनएल और तीन सौ एयरटेल के हैं। रिलायंस जीओ के टावरों की संख्या 450 से भी ज्यादा है। सभी निजी कंपनियों को जोड़ दें तो टॉवरों की संख्या 2000 से अधिक पहुंच जाएगी।
बीएचयू के इलेक्ट्रानिक विभाग के वैज्ञानिकों के अध्ययन के मुताबिक मोबाइल टॉवर इलेक्ट्रो मैगनेटिक रेडिएशन (ईएमआर) निकालते हैं। ये 800/900 और 1900/2100 मेगा हट्र्ज पर काम करते हैं। यह फ्रीक्वेंसी और ईएमआर शरीर ही नहीं, कंकरीट की दीवारों को भी आसानी से भेद देते हैं। इसका एक किमी की रेंज में जीवित व्यक्तियों पर असर पड़ता है। ईएमआर की सघनता 17100 से 72000 माइक्रोवाट प्रति वर्ग मीटर पर फिक्स होती है। लेकिन ज्यादा दूरी कवर करने के लिए टावरों की क्षमता बढ़ा दी जाती है। खतरा तब और अधिक बढ़ जाता है जब एक ही टॉवर पर कई कंपनियों के बीटीएस लगा दिए जाते हैं।
अध्ययन के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति टॉवर से 500 मीटर की रेंज में रहता है तो उसे कैंसर होने का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है। बड़ों की तुलना में ईएमआर बच्चों पर ज्यादा असर डालता है। यह धीरे-धीरे होने वाला असर पैदा करता है इसलिए इसका असर लंबे समय में दिखाई पड़ता है। बीएचयू से रिटायर माइक्रोवेव विशेषज्ञ प्रो. आरके झा के मुताबिक टॉवरों से निकलने वाली तरंगों से किसी भी आदमी के अंगों पर घाव हो सकता है। जो बाद में कैंसर में तब्दील हो जाता है। भौतिक विज्ञानी एके झा का कहना है कि अधिक ऊंचाई पर लगे टॉवर कम खतरनाक होते हैं। जिन लोगों ने मकानों की छतों पर टॉवर लगवा रखा है उनके लिए यह बेहद नुकसानदेह है।