इस अनूठी दोस्ती में प्यार-मुहब्बत के अनगिनत कलाम
एक मुकम्मल इंसान व इंसानियत गढ़ते हैं डाक्टर गांगुली
विजय विनीत
ये दोस्ती भी एक रिश्ता है
जो निभा दे वो फ़रिश्ता है।
सिर्फ इंसान ही नहीं, जानवर भी इंसान से दोस्ती करते हैं। हदों-सरहदों की संकीर्ण घेराबंदी को पारकर संकीर्णता की दीवारों को गिराते हैं। एक मुकम्मल इंसान और इंसानियत को गढ़ते हैं…। इंसान और जानवर की दोस्ती की मिसाल देखनी हो तो बनारस के कबीरचौरा आइए। यहां है डाक्टर शिव सुंदर गांगुली की क्लीनिक। यहां दोस्ती का फर्ज अदा करने रोज आती है एक गाय। यह कोई मामूली गाय नहीं। यह इंसान से जानवर की दोस्ती का फर्ज बताती है। समाज को ताकीद करती है–
‘वहां भी काम आती है मोहब्बत..।
जहां नहीं होता, कोई किसी का…।
जैसे-जैसे ढलती है शाम। डाक्टर गांगुली के क्लीनिक पर लगना शुरू हो जाता है मरीजों का जमघट। इसी बीच दबे पांव आती है वो बेजुबान गाय। सलीके से क्लीनिक में दस्तक देती है। दो पैर रखकर कमरे में दाखिल होती है। टुकुर-टुकुर डाक्टर गांगुली को निहारती है। मरीज घबरा जाते हैं। कुछ के दिलों की धड़कन भी बढ़ जाती है, लेकिन उन मरीजों की नहीं जो यह जानते हैं कि डक्टर गांगुली से इस खुशनसीब गाय की दोस्ती है।
रात साढ़े नौ बजे के आसपास दबे पांव आती है यह गाय। इंतजार तब तक करती है, जब तक डाक्टर गांगुली खुद उसके पास नहीं आते। उसे प्यार से नहीं दुलराते। लौटने को नहीं कहते। पहले तो सिर हिलाकर मना करती है। डाक्टर गांगुली जब तक उसके सिर पर हाथ रखकर सहलाते नहीं, तब तक वह अड़ी रहती है… डटी रहती है। आखिर में हाथ जोड़कर लौटने को कहते हैं तो बात मान जाती है। और लौट जाती है अगली रात तक के लिए…। दंगा हो या कर्फ्यू, दोस्ती का फर्ज अदा करने यह गाय जरूर आती है।
जानवर से इंसानी दोस्ती की पटकथा रोज लिखी जाती है। डाक्टर गांगुली और इस गाय की दोस्ती की कहानी में एक राग है। ऐसा राग जिसमें प्यार-मुहब्बत के अनगिनत कलाम हैं। शिव सुंदर गांगुली डाक्टर बाद में हैं, ये पहले इंसानियत की नब्ज टटोलते हैं। काशी में इंसानियत की नई भाषा गढ़ने वाले डाक्टर गांगुली हमेशा यही कहते हैं- लोगों के दरम्या ये जो दीवारें हैं इंसानियत को बांटती हैं। बंटने-बांटने के मर्ज का इलाज सिर्फ यही है कि पहले हम इंसान बनें। इंसानियत का पाठ पढ़ें। मुहब्बत का हक अदा करें। जैसे किसी शायर ने कहा है-
शुक्रिया ऐ दोस्त मेरी ज़िन्दगी में आने के लिए।
हर लम्हे को इतना खूबसूरत बनाने के लिए।
तू है तो हर ख़ुशी पर मेरा नाम लिख गया है।
शुक्रिया मुझे इतना खुशनसीब बनाने के लिए।
प्यार की…, दोस्ती की…., रवायतों को जिंदा रखने वाले डाक्टर गांगुली बनारस में रंगकर्म को भी बचाए हुए हैं। काशी में नाट्यकला की विरासत को पाल-पोसाकर सहेजने में जुटे हुए हैं। कहते हैं-
‘‘जिन्दगी एक कर्ज है, भरना हमारा काम है,
हमको क्या मालूम कैसी सुबह है, शाम है।
सर तुम्हारे दर पे रखना फर्ज था, सर रख दिया।
आबरू रखना न रखना, यह तुम्हारा काम है।