जापानी मियाज़ाकी : ‘लाखों का आम’ नहीं, इंस्टाग्राम का इनफ्लुएंसर है…!

मियाज़ाकी का सच यह है कि वह स्वाद नहीं बेचता, बल्कि स्टेटस बेचता है…।
✍️ विजय विनीत
बनारस की गलियों से लेकर मलिहाबाद के बागानों तक इन दिनों एक आम ने सबका चैन छीना हुआ है नाम है मियाज़ाकी, उर्फ़ ‘लाखों वाला आम’। यह आम नहीं-ग़ज़ल है, जिसे सुनते ही लोग कहते हैं, “अरे यही है वो जापानी फल जिसकी एक किलो की कीमत में पूरी बारात खिला दी जाती है?” सोशल मीडिया पर इसकी ऐसी चर्चा है, जैसे इसके खाने से स्वर्ग की सीधी उड़ान मिल जाती हो।
अब बताइए, हमारे देसी लंगड़ा, दशहरी, चौसा और सफेदा बेचारे तो सालों से बिना फोटो फिल्टर के लोगों को मीठा सुख देते आ रहे थे। पर मियाज़ाकी जनाब, ये तो आम कम और बॉलीवुड स्टार ज़्यादा लगते हैं। बस कैमरा देखो और चमकने लगते हैं!

बनारस के शैलेंद्र सिंह रघुवंशी ने जब जयश्री बाग में इसे लगाया, तो जैसे कोई विदेशी बहू अपने घूंघट के साथ बनारस की चौखट पर आई हो। अब लोग आम खाने नहीं, उसकी आरती उतारने आ रहे हैं, “यही है वो फल जो तीन लाख किलो वाला है?” शैलेंद्र मुस्कुरा कर कहते हैं, “भाई साहब, आम की पहचान स्वाद और खुशबू से होती है, रील और रेट से नहीं।” लेकिन सोशल मीडिया पर इसे देख कर लोग समझ बैठते हैं कि शायद यही वो फल है, जिसे खाते ही इंसान ‘बुद्ध’ हो जाता है।
अब भला आम भी कभी स्टेटस सिंबल हुआ है? पर यहां तो हालत यह है कि लोग इसे उगाने नहीं, उगते हुए देखने और फोटो खिंचवाने आ रहे हैं, “#MillionMango के साथ।” हद तो तब हो जाती है जब लोग इस आम के साथ सेल्फ़ी लेकर कैप्शन डालते हैं,“खाया नहीं, बस देखा है… मियाज़ाकी है भैया!”
मलिहाबाद के ज़ुबैर भाई कहते हैं, “लाखों की बात अफ़वाह है बाबूजी। पिछले साल फल आया था, इस साल एक क्विंटल निकला, लेकिन ₹500 किलो में भी कोई लेने वाला नहीं।” और जब उन्होंने एक मियाज़ाकी दिखाया, तो सच में लगा कि यह आम नहीं, किसी कलेक्टर की परीक्षा पास कर चुका फ्रेम में जड़ा फल है। चमक ऐसा कि सूरज भी शरमा जाए!
जुबैर ने विदेशों में ईमेल भेजे, बात की पर हर बार वही जवाब, “Thank you for your interest…” यानी कि आम वहां भी वही है, बस कहने का स्टाइल अंतरराष्ट्रीय है। अंततः उन्हें आम मुफ्त में बांटना पड़ा, जैसे नेताजी चुनाव हारकर मिठाई बांटते हैं, “खाओ और भूल जाओ।”
हीरालाल मौर्य, जो बनारस की मंडी के पुराने खिलाड़ी हैं। वो कहते हैं, “मियाज़ाकी दिखा नहीं कभी मंडी में। और आया भी तो ₹50 किलो से ऊपर नहीं जाएगा। ये तो वही बात हो गई कि शादी से पहले लड़का अमेरिका का बताया गया और शादी के बाद निकला पड़ोस का भोलाराम।”
पूर्व संपादक जगन्नाथ कुशवाहा ने तो और भी सटीक बात कही, “जापान वाला मियाज़ाकी तो विशेष देखभाल, जलवायु और लालसा से पाला जाता है। वहां के फल रेशमी होते हैं, जैसे कोई जापानी कविता। लेकिन भारत में यह आम बारिश में नहा जाता है, रंग उतर जाता है, स्वाद हल्का हो जाता है और रेशा रह जाता है।” कुल मिलाकर आम वही, पर फिनिशिंग में झोल है।
उन्होंने बिल्कुल ठीक कहा कि लोग इसे स्वाद के लिए नहीं, स्टेटस और स्टोरी के लिए लगाते हैं। फल मिले या न मिले, लाइक मिलते हैं और शायद यही 21वीं सदी की नयी खेती है, “फोटो उगाओ, फल मत तोड़ो! भारत की मिट्टी सिर्फ़ तमाशा नहीं, स्वाद भी उगाती है। बनारस से लेकर लखनऊ तक अब किसान मियाज़ाकी के पौधे लगाकर वो उम्मीद पाल रहे हैं जो सरकारी नौकरी के सपने जैसा है, “कभी तो पक जाएगा फल… या कम से कम किसी शादी में गिफ्ट देने लायक हो जाएगा।”
लखनऊ के रहमानखेड़ा स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान यानी CISH ने मियाज़ाकी के इस विदेशी नखरे का देसी जवाब तैयार कर दिया है – अवध समृद्धि और अवध मधुरीमा। ये आम सिर्फ दिखने में सुंदर नहीं हैं, बल्कि स्वाद, सेहत और किसान की मेहनत का असली निचोड़ हैं। अवध समृद्धि जलवायु प्रतिरोधी है, मतलब मौसम चाहे जितनी करवट बदले, यह आम हर बार फसल देगा। इसका आकार करीब 300 ग्राम का है, स्वाद में भरपूर मिठास और खास बात यह कि तोड़ने के बाद भी 15 दिन तक ताजा रहता है। अब बताइए, मियाज़ाकी सिर्फ शोकेस में अच्छा लगता है, लेकिन अवध समृद्धि तो दिल और थाली – दोनों में जगह बना लेता है।

दूसरी ओर अवध मधुरीमा, जिसका नाम सुनते ही रस घुलने लगता है। इसका रंग लालिमा लिए होता है और स्वाद ऐसा कि एक बार चखो तो बाकी सब भूल जाओ। अभी ये फील्ड ट्रायल में है, लेकिन शुरुआती स्वाद परीक्षणों में ही इसे ‘स्वदेशी मियाज़ाकी’ का खिताब मिल गया है। अब फर्क साफ है। मियाज़ाकी एक ऐसा आम है जो कहता है, “देखो मुझे, खाओ मत।” यह इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का ‘दिव्य फल’ है, जो ज़ुबान पर नहीं, स्क्रीन पर मीठा लगता है। वहीं अवध समृद्धि और मधुरीमा वे आम हैं जो स्वाद के साथ-साथ ज़मीन से भी जुड़े हैं। ये किसानों की उम्मीद हैं, उपभोक्ताओं की खुशी हैं और हमारी संस्कृति का असली स्वाद हैं।
अगली बार अगर कोई अकड़ कर कहे कि उसने मियाज़ाकी खाया है तो मुस्कुराइए और पूछिए, “क्या स्वाद आया या बस स्टोरी डालने लायक था?” क्योंकि मियाज़ाकी आम नहीं, एक ‘सेल्फ़ी फ्रूट’ है जो खाया नहीं, सिर्फ़ दिखाया जाता है और अपने देश की माटी में पैदा होने वाला अवध समृद्धि और मधुरीमा आम तो ज़ुबान के लिए भी हैं और ज़मीन के लिए भी।
बागबानी के अनुभवी लालजी पाठक की राय तो एकदम सीधी है, “स्वाद हल्का, रंग ठीक है, लेकिन दशहरी और लंगड़ा के सामने यह आम खड़ा भी नहीं हो सकता।” अब आप ही बताइए, जिस आम को देखकर लोग कहते हैं, “वाओ कितना सुंदर है,” लेकिन खाते ही मुंह बना लें, तो ये फल हुआ कि मॉडलिंग शो?
मियाजाकी सिर्फ ‘एलीट’ ज़ुबानों को ही नसीब है। बाकियों के हिस्से तो बस उसकी चर्चा, शेयर और रीपोस्ट ही आते हैं। मियाज़ाकी का सच यह है कि वह स्वाद नहीं बेचता, बल्कि स्टेटस बेचता है। ये आम नहीं कहता कि “खा लो मुझे,” बल्कि शरमाते हुए फुसफुसाता है, “बस मुझे देख लो, स्टोरी में डाल दो और बाकी आमों से नज़रें चुरा लो।”