जहां रंग बोलते हैं भक्ति की भाषा, वहां पूनम राय के चित्रों में उतरती है संकट मोचन की चेतना

बनारस की इस कलाकार की तूलिका में आकार लेती है हनुमान की दिव्य उपस्थिति
विजय विनीत
बनारस, यह कोई साधारण नगर नहीं है; यह एक जीवित महाकाव्य है, कला, संस्कृति, अध्यात्म और आस्था का अद्वितीय संगम, जो समय के कागज़ पर अंकित होकर सदियों से आत्मा को छूता आया है। यह वही नगरी है, जहां हर गली, हर घाट, और हर मंदिर में एक अनकही कहानी बसी हुई है। इस अद्वितीय भूमि पर जन्मी और पली-बढ़ी चित्रकार पूनम राय ने अपनी तूलिका से ऐसी छवियां रची हैं, जो केवल रंगों की नहीं, बल्कि गहरे भावों की भी भाषा बोलती हैं। उनके चित्र एक अलौकिक अनुभव की तरह हैं, जो दर्शक को न केवल देखे हुए रूप में, बल्कि जीते हुए अर्थों में एक नई दुनिया में प्रवेश कराते हैं।
संकट मोचन मंदिर में हनुमान जी की उपस्थिति जितनी सजीव और प्रभावशाली होती है, उतनी ही जीवन्तता पूनम राय की कलाकृतियों में भी नजर आती है। चित्रों में हनुमान जी की छवि ऐसी प्रतीत होती है, जैसे वे किसी भक्त की पुकार को सुनने के लिए तैयार हों, जैसे वे किसी दुखी आत्मा की पीड़ा को समझने के लिए मौन हो गए हों, या जैसे किसी बालक की मासूम विनती पर अपनी आशीर्वादपूर्ण मुस्कान बिखेरने के लिए तत्पर हों। उनके चित्रों में हनुमान जी की जो दिव्य शक्ति है, वह न केवल भक्तों को प्रेरित करती है, बल्कि उनका आत्मीय सम्बंध भी दर्शाती है।

जब संकट मोचन कलादीर्धा में पूनम राय की कलाकृतियों का प्रदर्शन हुआ, तो कला प्रेमियों का सैलाब उमड़ पड़ा। कुछ पल के लिए ऐसा महसूस हुआ, मानो वहां केवल चित्र नहीं, बल्कि चेतना की आकृतियां लटकी हुई हों। प्रत्येक रेखा और प्रत्येक रंग, जैसे भावों के शाब्दिक अनुवाद के रूप में बयां कर रहे हों, एक ऐसी कथा जो शब्दों से नहीं, केवल रंगों और रेखाओं के माध्यम से समझी जा सकती हो।
पूनम राय की हनुमान-श्रृंखला की विशेषता यही है कि उनके चित्र केवल दृश्यात्मक नहीं, बल्कि संवादात्मक हैं। उनके चित्रों में हनुमान जी केवल पूजनीय देवता के रूप में नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं से भरपूर रूप में दिखते हैं। कभी करुणा से, कभी गंभीरता से, कभी हर्ष से, कभी चिंतन में डूबे हुए, तो कभी उर्जस्वित अवस्था में। इन चित्रों में भक्ति का तेज तो विद्यमान है ही, साथ ही एक ऐसा मानसिक और भावनात्मक गहराव भी है, जो दर्शक को भीतर तक झकझोर देता है।
बनारस की लोकचित्र परंपरा में देवी-देवताओं के चित्र प्रायः केवल पूजन के लिए बनाए जाते रहे हैं, परंतु पूनम राय की दृष्टि और उनका दृष्टिकोण इससे कहीं अधिक गहरा और समृद्ध है। वे हनुमान जी को न केवल धार्मिक प्रतीक के रूप में, बल्कि संवेदनाओं के वाहक के रूप में चित्रित करती हैं। उनके ब्रश के प्रत्येक स्ट्रोक में कोई कथा छिपी होती है, और उनके रंग- गेरुआ, लाल, केसरिया, केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि मन की व्याकुलता, श्रद्धा और आश्वासन के प्रतीक बन जाते हैं।
कला और भक्ति का अद्वितीय संगम
पूनम राय की कलाकृतियां न केवल कलात्मक दृष्टिकोण से अनमोल हैं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभूति की दृष्टि से भी अत्यंत दुर्लभ हैं। हनुमान जी को जिस तरह से उन्होंने मौन भक्ति और वेदना के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है, वह समकालीन धार्मिक चित्रकला में दुर्लभ है। वे सिर्फ चित्रकार नहीं, बल्कि एक आस्था-द्रष्टा प्रतीत होती हैं, जो न केवल देखती हैं, बल्कि स्वयं को उस भावनात्मक और आध्यात्मिक गहराई में पूरी तरह डूबो देती हैं।

इसलिए उनके चित्रों में हनुमान जी चमत्कारी नहीं, बल्कि सहज और सजीव रूप में प्रकट होते हैं। वे कोई दूरस्थ देवता नहीं, बल्कि हमारे बीच ही एक आत्मीय उपस्थिति की तरह महसूस होते हैं। यही कारण है कि संकट मोचन कलादीर्धा में इन चित्रों को देखकर कई दर्शकों की आंखों में आंसू आ गए। एक दर्शक ने कहा, “ऐसा लगता है जैसे इन चित्रों ने मेरे मन की गहरी पीड़ा को पढ़ लिया हो।” एक श्रद्धालु ने चुपचाप हाथ जोड़ दिए, जैसे वह मंदिर में नहीं, बल्कि किसी चित्रमयी दरबार में खड़ा हो।
पूनम राय की चित्रशैली ने यह सिद्ध कर दिया है कि जब कला, भक्ति और भावना एक हो जाती हैं, तो चित्र केवल देखने के लिए नहीं रहते, बल्कि उन्हें जीया जाता है। उनका चित्रकला प्रदर्शनी केवल कला का प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुष्ठान बन जाती है, जहां संकट मोचन खुद बोलते हैं, सुनते हैं, और चित्रों के माध्यम से सीधे भक्तों के हृदय को छू लेते हैं।