कला में संकटमोचन की भक्ति: रिज़वान की रंगों से रची काशी

कला में संकटमोचन की भक्ति: रिज़वान की रंगों से रची काशी

✍️ विजय विनीत

काशी… जहाँ संगीत, साधना और संस्कृति एक ही साँस में समाहित होते हैं। संकट मोचन संगीत समारोह के सुरों के बीच, इस बार एक ऐसा दृश्य आकार ले रहा है, जो भावनाओं को छूता है और बनारस की उस तहज़ीब को जीवंत करता है, जो आस्था, विविधता और सद्भाव का समुंदर समेटे हुए है।

वाराणसी के एक सादे मोहल्ले से उठता है एक किशोर चित्रकार – रिज़वान। नाम से मुस्लिम, लेकिन हृदय से बजरंगबली का भक्त। जब उसके ब्रश से संकटमोचन की आंखें बनती हैं, तो ऐसा लगता है जैसे आस्था किसी धर्म की नहीं, भावना की भाषा बोल रही हो।

रिज़वान कक्षा 11 का छात्र है, लेकिन उसकी पेंटिंग्स किसी अनुभवी चित्रकार की साधना जैसी लगती हैं। बीआर फाउंडेशन की कला शिक्षिका पूनम राय के मार्गदर्शन में वह न केवल चित्र बनाता है, बल्कि उन्हें जीता भी है।

पेंटिंग नहीं, श्रद्धा है संकट हरण

संकट मोचन संगीत समारोह की पेंटिंग गैलरी में रिज़वान की नवीनतम कृति “संकट हरण” इस बार जैसे आत्मा बन गई है। दर्शक जब उस चित्र को निहारते हैं, तो भीतर कुछ काँप उठता है। उसमें न जात है, न मज़हब – सिर्फ़ समर्पण है। उसकी रेखाएँ मंत्र हैं, रंग भक्ति हैं, और आकृति में संकटमोचन की मुस्कान है।

इस कथा की सबसे मार्मिक कड़ी है पूनम राय और रिज़वान का वह संबंध, जो सिर्फ़ कला का नहीं, आत्मा का है। पूनम हनुमान की उपासिका हैं, लेकिन रमज़ान में रोज़ा भी रखती हैं। जब वे व्रत के दौरान हनुमान चालीसा पढ़तीं, तो रिज़वान ध्यान से सुनता। एक दिन उसने कहा, “मैम, मैं भी पढ़ना चाहता हूँ।”

उस दिन के बाद हर पेंटिंग सेशन एक आध्यात्मिक अनुष्ठान बन गया। पूनम चालीसा पढ़तीं और रिज़वान श्लोक दोहराते हुए ब्रश चलाता। वह कहता है, “ऐसा लगता है जैसे बजरंगबली खुद मेरा हाथ पकड़कर चित्र बनवा रहे हैं।”

पेंटिंग से झलकती है गंगा-जमुनी तहज़ीब

काशी का संकट मोचन संगीत समारोह सिर्फ़ सुरों की साधना नहीं, बल्कि आस्था और संस्कृति का ऐसा मंच है, जहाँ हर जाति, धर्म और कलाकार अपनी आत्मा के स्वर में मोक्ष की तलाश करता है। इस बार उसमें रंगों की नई गाथा गूँज रही है – रिज़वान के चित्रों के रूप में।

उसकी पेंटिंग्स सिर्फ़ कला नहीं, बल्कि बनारस का सौंदर्यबोध हैं। जैसे कोई राग बागेश्री या राग मारवा रंगों में उतर आया हो। हर रेखा में संकटमोचन की छवि है, हर रंग में वह श्रद्धा जो मज़हबी सीमाओं से परे है।

काशी की आत्मा को रचता एक कलाकार

रिज़वान का सपना है कि वह अपनी एक पेंटिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट करे। लेकिन उससे भी बड़ा सपना वह हर रोज़ जीता है, जब वह पूनम राय के साथ रोज़ा खोलता है, जब वह हनुमान चालीसा पढ़ता है, जब वह बनारस के उस चेहरे को जीता है जो मंदिर और मस्जिद के बीच की दीवारों को रंगों से पाट देता है।

पूनम राय कहती हैं, “उसने मेरे साथ रमज़ान में रोज़ा खोला और उसी शाम संकटमोचन पर बैठकर चित्र बनाया। ये सिर्फ़ कला नहीं, बनारसी आत्मा की झलक है, जो भेदभाव नहीं जानती।”

रिज़वान की बनाई संकटमोचन की एक पेंटिंग को देखिए – नेत्र तेजस्वी हैं, मुँह पर मुस्कान है और पीछे हल्का सुनहरा प्रभामंडल। इस चित्र में केवल एक देवता नहीं, बल्कि एक शहर का स्वभाव, एक धर्म का उदार हृदय और एक किशोर चित्रकार की आत्मा झलकती है।

शायद इसीलिए बनारस, बनारस है – जहाँ संकटमोचन की चौखट पर एक मुस्लिम बच्चा चित्र बनाता है, और उसकी गुरु रमज़ान में रोज़ा रखती हैं। जहाँ सुर और रंग मिलकर एक नया राग रचते हैं – राग काशी।

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