बनारसी मिर्च से  लिपिस्टक बनाइए ना !

बनारसी मिर्च से  लिपिस्टक बनाइए ना !

मोदी की काशी में विकसित की गई मिर्च की नई प्रजाति काशी सिंदूरी

खास बातें

कास्टमेटिक्स और दवाओं में होगा इस्तेमाल, तीखी नहीं है मिर्च

लाल, भूरे, पीले, नारंगी और बैगनी रंग में आती है यह मिर्च

एक हेक्टेयर में पैदा होतीी है 60 से 80 कुंतल पकीी मिर्च

वर्ष 2002 में शुरू हुआ था रिसर्च, कई साल तक देश में परीक्षण

 

विजय विनीत

अब आप लाल सुर्ख मिर्च देखकर डरें नहीं। इसे होठों से लगा लें। घबराइए नहीं, मिर्च अब जुबान को कड़वा नहीं, होठ और चेहरे का श्रृंगार करेगी। बनारस स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आईआईवीआर) ने मिर्च की एक ऐसी प्रजाति विकसित की जिसमें तीखापन है ही नहीं। इसके रंग से  लिपिस्टिक बनेगी और अन्य कास्टमेटिक्स का सामान। दवाओं में भी इसका इस्तेमाल होगा।

आईआईवीआर ने मिर्च की जो नई प्रजाति विकसित की है उनका नाम है आईवीपीबीसी 535। सरकार ने इसे काशी सिंदूरी नाम से रिलीज किया है। इसे पाइप्रिका मिर्च के नाम से भी जाना जाता है। यह देश की पहली ऐसी पाइप्रिका मिर्च है जिसका पूर्वांचल में बंपर उत्पादन किया जा सकता है। दरअसल इस मिर्च का इस्तेमाल खाने के लिए नहीं, प्राकृतिक रंग तैयार करने के लिए किया जाता है। इससे ओलियोरेजिन तेल निकलता है। इसमें रंग पदार्थ कैपसैंथिन ज्यादा होता है। इसके प्राकृतिक रंग का इस्तेमाल महंगी लिपिस्टक बनाने में इसका प्रयोग किया जा सकता है। पाइप्रिका से निकले रंग से बने पदार्थ त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाते। यह मिर्च कई रंग में आता है। लाल, भूरा, पीला, नारंगी और बैगनी रंग वाले पाइप्रिका अब पूर्वांचल के परिवेश में अब आसानी से उगाई जा सकती है। प्राकृतिक रंग बनाने वाली मिर्च हंगरी में खोजी गई थी। यूरोप में इस मिर्च काफी लोकप्रिय है। लेकिन भारत में अभी तक पाइप्रिका की कोई ऐसी प्रजाति नहीं थी, जिसे गर्म क्षेत्र में उगाया जा सके।

आईवीपीबीसी 535 प्रजाति की मिर्च को विकसित किया है आईआईवीआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.राजेश कुमार ने। वर्ष 2002 में उन्होंने गर्म प्रदेश की पाइप्रिका मिर्च पर रिसर्च शुरू किया। गर्म जलवायु वाले इलाकों में पाइप्रिका मिर्च तीखी हो जाती है, लेकिन डा.कुमार ने इस मिर्च को तीखा होने नहीं दिया। उनके रिसर्च पर चार साल तक देश भर के कृषि  विश्वविद्यालयों में ट्रायल हुआ। प्रयोग सफल होने पर केंद्र सरकार ने आईआईवीआर की आईवीपीबीसी 535 प्रजाति की मिर्च को रिलीज कर दिया। इस मिर्च को पूर्वोत्तर भारत के किसान आसानी से उगा सकते हैं। इसकी खेती से डेढ़ लाख रुपये प्रति एकड़ मुनाफा कमाया जा सकता है। किसान आईआईवीआर से पाइप्रिका मिर्च की खेती करने और तेल निकालने के लिए संयंत्र लगाने की तकनीकी जानकारी मुफ्त में हासिल कर सकते हैं।

 

ऐसे करें पाइप्रिका की खेती

आईआईवीआर से बीज लेकर जुलाई से 15 सितंबर तक नर्सरी तैयार करें। 25 दिन बाद खेत में रोपाई करें। उर्वरक, रसायन और शस्य क्रियाएं सामान्य मिर्च की तरह होगी। इसकी खेती से 60 से लेकर 80 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन किया जा सकता है। इसे सुखाने के बाद बाजार में बेचा जा सकता है। सौंदर्य प्रसाधन से लेकर दवाओं में इसका प्रयोग बेहद गुणकारी साबित होता है।

 

काशी सिंदूरी मिर्च की खेती बड़े पैमाने पर शुरू किया जाए तो पूर्वांचल मालामाल हो सकता है। विश्व बाजार में इस मिर्च से बने प्राकृतिक रंग की जबर्दस्त डिमांड है। कास्टमेटिक में इसके हर्बल रंग का इस्तेमाल किया जाता है। विदेशों में इस रंग की जबर्दस्त डिमांड है।

डा.राजेश कुमार-वरिष्ठ वैज्ञानिक

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