फटी-पुरानी उतरन नहीं नाट्य कला

फटी-पुरानी उतरन नहीं नाट्य कला

बनारस की विभा को नई सुबह का इंतजार

विजय विनीत

विभा को एक नई सुबह का इंतजार है। थिएटर की मजी हुई कलाकार हैं विभा पांडेय। अपनी प्रतिभा के बल पर वह अपने लिए एक बड़ा मुकाम बना रही हैं। बनारस की विभा एक उभरती हुई ऐक्ट्रेस हैं। उन्होंने  थिएटर अथवा एक्टिंग का कोर्स तो नहीं किया है, लेकिन नाट्य कला की बारीकियां उनके रग-रग में बसी है। कहती हैं, ‘असली गुरु मेरी मां हैं। उन्हीं से जाना कि थिएटर जीने की कला भी सिखाता है। थिएटर की एक-एक लाइन पर जितनी मेहनत की जाती है, वह आपको बतौर एक्टर तैयार होने में मदद करती है। थिएटर आपको हर पल बहुत एजुकेट करता है। प्ले कोई भी हो, उसे दिल से करना अपने आपमें एक पूरी यात्रा  है। ऐसी यात्रा जिसमें उसकी रिहर्सल्स, उसके ब्रेक्स… सब कुछ एक बहुत अलग फीलिंग देते हैं।’

बनारस के सुविख्यात साहित्यकार मनु शर्मा के कालजयी उपन्यास ‘‘अभिशप्त कथा” में विभा ने शर्मिष्ठा के पात्र का शानदार ढंग से मंचन कर सिद्धहस्त कलाकारों में अपना नाम दर्ज कराया है। दरअसल, अभिशप्त कथा कच्च और देवयानी की प्रेम कथा है, जो देवासुर संग्राम के इर्द-गिर्द घुमती है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से संजीवनी हासिल करने के लिए देवगुरु बृहस्पति का पुत्र कच्च उनकी शरण में जाता है और उसकी मुलाकात गुरु शुक्राचार्य की बेटी देवयानी से हो जाती हैं। लेकिन कच्च तो शर्मिष्ठा से प्यार करताहै। दोनों के जरिये सत्ता धर्म और राजनीति के सनातन चरित्र उभर कर सामने आते हैं। कथा भले ही पुरातन है, लेकिन इसके चरित्र (पात्र) सनातन हैं। इसमें आज की राजनीति और समाज का हूबहू चित्र समाया है। इस नाटक में विभा ने अपनी शानदार भूमिका से यह साबित कर दिया कि जिंदादिल शहर बनारस में थिएटर तब तक जिंदा रहेगा, जब तक उस जैसी कलाकारों का जुनून जिंदा रहेगा।

विभा ने साल 2015 में अजातशत्रु, संघर्ष और रुक्मणी हरण का मंचन करके वाहवाही लूटी थी। उन्होंने स्वच्छता अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ,  विकलांगता अभिशाप नहीं, भ्रूण हत्या, लड़कियों की सुरक्षा, बेटियों के साथ भेदभाव, जनसंख्या विस्फोट समेत तमाम सामाजिक विषयों पर नाट्य मंचन के जरिए अपनी कला का जादू विखेर चुकी हैं। इस्कान मंदिर में रुक्मणी हरण का सजीव मंचन कर विभा ने काफी शोहरत बटोरी है।

विभा के रग-रग में बसा है थिएटर

दरअसल विभा के रग-रग में बसा है थिएटर। इसलिए कि मंच कला में वह प्रयोगवादी हैं। वह कहती हैं, ‘‘नाटक और जिंदगी का नाटक, दोनों में बड़ा फर्क होता है। नाटक में नट को पता होता है कि आगे क्या होने वाला है। नट जानता है कि उसके हिस्से में आई भूमिका का अंत कहां और कैसे होगा?  लेकिन जिंदगी के नाटक में किसी को पता नहीं होता कि उसकी भूमिका में आगे क्या लिखा गया है? अपने हिस्से आई भूमिका को निभाना, बस यही उसके बस में होता है। हम जो करते हैं, वह सचमुच हम ही करते हैं? या उसका कर्ता-धर्ता कोई और है? इसी भ्रम में पूरा नाटक खत्म हो जाता है जिंदगी का। मैं नहीं चाहती कि नाट्य कला को लोग फटी-पुरानी उतरन में देखें। इसीलिए मैं हमेशा नया प्रयोग करने की कोशिश करती हूं।”

नाटक से अलग, रियल लाफइ में जब दो इंसान सच्चे होते हैं, तो उन के बीच प्यार और दोस्ती हमेशा बनी रहती है। मुझे लगता है कि अच्छी दोस्ती वही है, जहां हम अपने दोस्त या सहेली से कोई अपेक्षा नहीं रखते। दोस्तों में आपसी समझ हमेशा रहती है। मेरे लिए प्यार के माने विश्वास का एहसास है, जो कि माता-पिता व दोस्त किसी से भी हो सकता है। प्यार में कोई शर्त अथवा बनावटीपन नहीं होना चाहिए। लोगों के बीच सच्चा प्यार हो तो वे चाहे जितनी दूर रहें, पर प्यार का एहसास कम नहीं होता।

मेरे खून में भी नाना के अभिनय और कला का कीड़ा

विभा को जीवन की यह समझ उनके नाना से मिली है। वे सिद्धहस्त गायक और कलाकार थे। विभा कहती हैं, ‘‘नाना की छाप मेरी मां पर पड़ी। वह चाहती थीं कि मैं मंच कलाकार बनूं। शुरू में शौकिया तौर पर नुक्कड़ नाटकों में भाग लेना शुरू किया। अपने दोस्तों के साथ हजारों नुक्कड़ नाटक किए। थिएटर की बारीकियों को सीखा। कहीं न कहीं मेरे खून में भी मेरे नाना के अभिनय और कला का कीड़ा है।”

थिएटर के दम पर ही विभा को कई फिल्मों में काम मिला है। डायरेक्ट इश्क, मिर्जा जूलिएट, द सर्च आफ काशी, आफ्टर द लास्ट लेक्चरर, सपने सोच ऊंचाइयों की में यादगार रोल किया है। निष्ठा आर्ट के बैनर तले बनी फिल्म पहल, सबक, मुसलमान, अबार्शन, विघ्नहर्ता, रक्तव्यूह काफी चर्चित हुई है। विभा बताती हैं, ‘‘दूरदर्शन के कई सीरियलों में रोल कर चुकी हैं। बनारस में उन्हें मिस फोटोजनिक का अवार्ड भी मिल चुका है।”

बताती हैं विभा, ‘‘ मैं बचपन से ही स्टेज शो करने लगी थी। मुझे थिएटर में काफी पुरस्कार मिले। हम तो क्राफ्ट कला और कंटेंट पर यकीन करते हैं। हमारे लिए यह बात असरदार होती है कि फिल्म अथवा नाटकों में हमारी अदा कैसी रहती है?” मैं आभारी हूं उन लोगों की जिन्होंने हर मोड़ पर मेरा साथ दिया। मेरा हौसला बढ़ाया।  मेरे गुरु  डा.नारायण दत्त श्रीमाली जी ने मुझे रिचा से विभा नाम दिया। स्वामी जयनारायण जी और थिएटर के पुरोधा हरिशंकर सिंह ने मेरा मार्गदर्शन किया।  शुरू में मुझे थिएटर का हुनर सिखाया। निष्ठा आर्ट के निदेशक सत्य प्रकाश सत्या का मैं विशेष रूप से आभारी हूं जिन्होंने मुझे हौसला दिया, मौका दिया और मेरे अभिनय को सराहा। इन्होंने अपनी हर फिल्म में मुझे हिरोइन का रोल अदा करने का अवसर दिया। विभा को सफलता के शिखर पर पहुंचाने वाली संस्था दिशा क्रिएशन ने उनकी जिंदगी में हकीकत का रंग भरा। संस्था के निदेशक नवीन मिश्रा ने उन्हें गढ़ा और रंगमंच के काबिल बनाया।

विभा कहती हैं, ‘‘मुझे लगता है कि मेरा कैरियर सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह तो आप भी जानते हैं कि फिल्मों में आप की योजना काम नहीं करती। मेरी सोच यही है कि मेरे हिस्से अच्छे किरदार, अच्छी कहानियां, अच्छी फिल्में आएं। मैं उन्हें बेहतर तरीके से करते हुए लोगों का विश्वास जीतते हुए आगे बढ़ती रहूं। एक न एक दिन मुझे अपना मुकाम मिल जाएगा।”

विभा यह भी कहती हैं कि मेरे पास कई फिल्मों के आफर आते हैं। लेकिन जो लोग फिल्मों में महज नंगापन परोसना चाहते हैं, उनसे मैं दूर से ही हाथ जोड़ लेती हूं। किसी भी पात्र को शालीनता के साथ चित्रित किया जाना है, तो मुझे इससे परहेज नहीं है। मुझे लगता है बालीवुड में दोगलापन ज्यादा है।

मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट लाने का काम करते हैं मेरे मम्मी-पापा

थिएटर मेरा शगल है। जब अभिनय से प्यार हुआ, तभी मैं एक अच्छी अदाकारा बन पाई। परिवार वालों के प्यार व सहयोग से ही मैं अभिनय के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हूं। मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट लाने का काम मेरे मम्मी-पापा की करते हैं। आज मैं बनारस की उभरती कलाकार हूं। मुझे नाज है कि मैं काशी की हूं। काशी कलाकारों की नगरी है। अविनाशी काशी में कला कभी मर नहीं सकती। कला चाहे कोई भी हो। बनारस का थिएटर कभी मर नहीं सकता। मैं कहीं कुछ भी करती हूं, लगता है समूची काशी सफलता बटोर रहा है। इस शहर के लोग मुझे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित करते हैं। सभी यही कहते हैं, ‘विभा, तुम मेहनत करो, आगे बढ़ो, हमारा प्यार तुम्हारे साथ है। मुझे इस बात की खुशी है कि बनारस में नई पीढ़ी को भी सिनेमा व संगीत से जोड़ा जा रहा है। कथक में मेरी काफी रूचि है। नृत्य में डिप्लोमा कोर्स भी किया है। मुझे नृत्य बेहद पसंद है। क्लासिकल संगीत मुझे बहुत भाता है।’

 

4 thoughts on “फटी-पुरानी उतरन नहीं नाट्य कला

  1. Mai bahut hi khush hoo richa urf vibha meri saheli hai vo apney jeevan may khoobh kaamvab ho mere yahi dua hai bhagwan say tumko bhagwan jeevan ki har khushi dey may god bless my princess

  2. Hamesha Khush raho Aur age badho Bacha….. 👑👑👑🎉🎊👒📈

  3. कुछ भी छापने से पहले सत्य क्या है वो ज़रूर जान लें।
    कैसे कोई बाहर से सिख के अपने घर वालों को क्रेडिट देने लगता है।
    श्री नागरी नाटक मंडली से workshop किया है इन्होंने 2015 में

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!