गर्मी में देसी उपचार से मवेशियों को बचाएं

गर्मी में देसी उपचार से मवेशियों को बचाएं

विजय विनीत

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुधन का योगदान अहम है। भारत में करोड़ों लोगों की आर्थिकी पालतू पशुओं पर टिकी है। कोई गाय, भैंस, बकरी पालता है तो कोई  भेड, ऊंट, घोड़ा, घोड़ी आदि। अगर आप पशुपालन व्यवसाय से जुड़ें है तो अपने मवेशियों को गर्मी के मौसम से बचाएं। गर्मी के दिनों में कई बार तापमान मवेशियों के लिए असहनीय बन जाता है। ऐसे में पशुओं को छायादार स्थानों पर रखें।

गर्मी के दिनों में पशुओं को दिन में कम से कम तीन बार पानी अवश्य पिलाएं। पानी में थोड़ी नमक और आटा मिला दें ताकि पशुओं के शरीर का टेंपरेचर सही बना रहे। कोशिश करें कि पशुओं को दो बार ठंडे पानी से नहलाएं। पशुओं को गर्मी जनित रोग जैसे खुरपका, मुंहपका, लंगडी बुखार आदि से बचाव के लिए टीके अवश्य लगवाएं।

गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा खिलाना लाभकारी होता है। पशुओं को बार-बार प्यास लगती है। अप्रैल के महीने में पशुओं को मूंग, मक्का, काउपी, बरबटी आदि का हरा चारा गुणकारी रहता है। हरी घास को सुखाकर भी खिलाया जा सकता है। गर्मी में मवेशियों को चारे में एमिनो पावर और ग्रो बी प्लेक्स मिलाना चाहिए। इससे पशुओं की पाचन शक्ति सही रहेगी।

इसे भी आजमाएं

किसान भाइयों को पशुओं के घरेलू उपचार के बारे में जानकारी रखना जरूरी है। घरेलू उपचार से पशुओं को गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकता है। कई बार अस्पताल पहुंचने से पहले ही पशु दम तोड़ देते हैं। ऐसे में उन्हें प्राथमिक उपचार से  बचाया जा सकता है। घरेलू नुस्खों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री (हींग, अजवाइन, हल्दी, सौंफ, तेल, काला नमक, सादा नमक, खाने का सोडा, नौसादर आदि) कृषकों के घरों मे आसानी से उपलब्ध हो जाती है।

अफारा (गैस बन जाना) :  कई बार अधिक मात्रा में हरा चारा खाने से पशु का बायीं ओर का पेट फूल जाता है। सांस लेने में पशुओं को कठिनाई होती है।  इसके लिये आधा लीटर अलसी के तेल को 30 मिली तारपीन के तेल में मिलाकर पिलायें। साथ ही पानी में 15 ग्राम हींग का घोलकर पिलाने से पशु को आराम मिलता है।

खांसी : कई बार पशुओं को ठंड के मौसम में खांसी हो जाती है। इसके लिए कपूर की एक टिकिया को सात चम्मच शहद और गुड़ के साथ मिलाकर दिन में तीन चार चटायें तो पशु को आराम मिलता है।

कब्ज :  कई बार अधिक चारा, जहरीला या दूषित अनाज खाने से कब्ज हो जाती है। ऐसे में पशु को 100 ग्राम सादा नमक, और 30 ग्राम सोंठ या अदरक को आधा लीटर पानी में घोलकर पिलाना चाहिए।

दस्त : दस्त लगने पर पशु को पहले दिन आधा लीटर अलसी का तेल या आधा कप अरंडी का तेल पिलायें तथा दूसरे दिन 8 चम्मच खडिया पाउडर 4 चम्मच कत्था एवं 2 चम्मच सोंठ गुड़ के साथ पानी में मिलाकर पिलाने से आराम मिलता है।

निमोनिया: अमतौर पर यह रोग शीतकाल में होता है। सर्दी लग जाने से पशु को बुखार भी आ जाता है। नाक से पानी बहता है। इसके लिये सोंठ 100 ग्राम, अजवाइन 100 ग्राम, चायपत्ती 25 ग्राम, मेथी 100 ग्राम तथा गुड़ या शीरा 500 ग्राम आदि को करीब 2 लीटर पानी में पीसकर दिन में 2 बार पिलाना चाहिये।

मुंह के छाले: खुर और मुंहपका रोग में पशुओं के मुंह में छाले पड़ जाते हैं। ये छोले जीभ के सिवाय मुंह के अन्दर अन्य हिस्सों पर दिखाई देते हैं, जिसके कारण पशु चारा खाना बन्द कर देता है। इस वजह से पशु का स्वास्थ्य एवं दुधारू पशु का दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है। इसके लिये पशु को अमकली 125 ग्राम और 50 ग्राम पीली कटीली दोनों को 2 लीटर पानी में उबालें तथा जब पानी करीब एक लीटर रह जाये तो बीमार पशु को दें।

जूं: जूं के स्पर्श मात्र से एक पशु से दूसरे पशु को लग जाती है। सर्दियों में बच्चों एवं बड़े पशुओं दोनों में ही जूं होने की अधिक आशंका होती है। इसके बचाव के लिये 1 ग्राम तम्बाकू और 2 ग्राम नहाने का साबुन, 40 ग्राम पानी में डालकर उबाल लें फिर ठंडा हो जाने पर 1 ग्राम मिट्टी का तेल मिलाकर मालिश करें।

किलनी : प्राय: थन, पूंछ, कान तथा अन्य स्थानों में किलनियां चिपट जाने से पशु को बड़ा कष्ट होता है। उनका दूध उत्पादन प्रभावित ता है। इनसे बचाव के लिये 1 ग्राम नील और 2  ग्राम गंधक को 8 ग्राम वैसलीन या सरसों के तेल में मिलाकर लगाने से किलनी मर जाती है। इसके अलावा 4 ग्राम नमक, 1 ग्राम मिट्टी का तेल का 4 ग्राम सरसों के तेल में मिलाकर लगाने से किलनियां मर जाती है।

जख्म : सर्व प्रथम रूई या कपड़े का टिंचर आयोडीन में भिगोकर जख्म की सुई करें। तत्पश्चात हल्दी में मक्खन या सरसों का तेल मिलाकर जख्मों पर लगाने से आराम मिलता है।

जहरबाद : पशुओं में पैर पटकना, थर-थर कांपना, डगमगाते हुए चलना, सांस में कठिनाई अनुभव करना, शारीरिक ताप का बढ़ना इत्यादि जहरबाद रोग के मुख्य लक्षण है। ऐसी स्थिति में प्राथमिकता उपचार के तौर पर इमली पानी में नमक का घोल बनाकर पिलायें या कोयलें का 200 ग्राम पाउडर एक लीटर पानी में घोल बनाकर पिलाने से रोग की तीव्रता कम होती है।विष खा जाना : कोई पशु चारे के साथ अनजाने में विषैला कीड़ा खा लेता है अथवा किसी व्यक्ति द्वारा पशु को रंजिश वश विष दे दिया जाता है। ऐसी स्थिति में निम्नलिखित उचार देना चाहिए। डेढ़ सेर घी में एक सेर एप्सम सावट मिलाकर पिलाना चाहिये या एक सेर गरम दूध में 25 ग्राम तारपीन का तेल अच्छी तरह मिलाकर पिलाये और फिर 250 ग्राम केले के जड़ का रस में 10 ग्राम कपूर मिलाकर पिलाना चाहिए।

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