बनारस के दालमंडी में अब तवायफों का नहीं, ‘मेड इन चाइना’ का जादू
तंग गलियों में हर तरफ दिखती हैं चीनी सामानों की दुकानें
चिंतित हैं बनारसी सामान बनाने और बेचने वाले व्यवसायी
भगवान की मूतिर्यों से लेकर बच्चों के खिलौने तक चीनी
सामानों का नहीं मिलता बिल, गारंटी में भी नहीं देते दुकानदार
विजय विनीत
वाराणसी के दालमंडी पहले तबले की थाप, घुंघुरुओं की खनखनाहट और तवायफों की सुरीली आवाजों के लिए जानी जाती थी और अब वह चाइना मार्केट में बदल गई है। भीड़-भाड़ वाले इस बाजार में ज्यादातर ‘मेड इन चाइना’ के सामान बिकते हैं। वह भी बिना रसीद-पुर्जा और बिना गारंटी के। यूं तो शहर में कई मशहूर बाजार हैं, लेकिन सभी को पता है कि बेहतरीन फिनिशिंग वाले सस्ते चीनी सामान चाहिए तो दालमंडी में ही मिलेगा।
दालमंडी की तंग गलियों में जिधर देखो उधर ‘मेड इन चाइना’ का जलवा नजर आता है। जासूसी के उपकरण से लेकर सस्ते मोबाइल, लैपटाप, कंप्यूटर, पंखे, टॉर्च, ताले, चश्मे, इलेक्ट्रिक शेवर, घड़ियां, खिलौने, टीवी, कपड़Þे आदि सामान अधिसंख्य दुकानों पर आसानी से मिल जाते हैं।
दालमंडी में भगवान की मूर्तियों से लेकर बच्चों के खिलौने तक सब कुछ चीनी हैं। ये सारे सामान अवैध तरीके से दालमंडी में पहुंचते हैं। टैक्स और वैट न लगने के कारण चीनी सामान सस्ते मिल जाते हैं। सूत्रों के मुताबिक दालमंडी में कुछ दुकानें तो ऐसी हैं जहां रोजाना दस से बीस लाख तक के सामान हाथों-हाथ बिक जाते हैं।
इस बाजार में पैसा बरसता है। दालमंडी पूर्वांचल के व्यवसाय का सबसे बड़ा केंद्र है। बनारसी सामान बनाने और बेचने वालों के लिए चिंता की बात यह है कि इस बाजार में चीन का पलड़ा काफी भारी पड़ने लगा है।
दालमंडी में जितने भी दुकानदार चीनी सामान बेचते हैं वे दो नंबर पर टिके हैं। दरअसर सिस्टम ही ऐसा है कि यहां ईमानदारी के साथ चीनी सामानों का व्यवसाय संभव ही नहीं है। मोबाइल की रिपेयरिंग करने और ट्रेनिंग देने वाले वसीम भाई कहते हैं, ‘दुर्भाग्य यह है कि दालमंडी का बाजार पूरी तरह अव्यवस्थित है। पिछले कुछ सालों में यह चीनी सामानों की बिक्री का बड़ा गढ़ बन गया है। समूचे पूर्वांचल के लोग इस बाजार में पहुंचते हैं और रोजाना करोड़ों का चीनी सामान खरीद कर ले जाते हैं। मेड इन इंडिया और मेड इन चाइना के सामानों का असंतुलन लगातार बढ़ता जा रहा है।’
आखिर दालमंडी में क्यों छा गया चीनी सामान? इस बाजार के कारोबारी इसकी ठोस वजह बताते हैं। व्यापारी नेता संजय केशरी और बदरुद्दीन अहमद कहते हैं कि शायद चीन ने कीमत पर खासा ध्यान दिया और उन सामानों को ही सस्ते में बनाकर भारत में जायज और नाजायज ढंग से बेचना शुरू कर दिया। दालमंडी और हड़हा में सैकड़ों दुकानों पर चीनी सामनों की बिक्री होती है। कीमत कम होने के कारण इस बाजार के दुकानदार और खरीददार दोनों ही चीनी सामानों को अहमियत देते हैं।
चीनी सामानों से पटते जा रहे दालमंडी जैसे बाजारों में देसी सामानों की बिक्री एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। स्थानीय व्यापारियों का मानना है कि ‘मेड इन चाइना’ के सामान से आजादी ‘मेक इन इंडिया’ का नारा देने वाले वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी दिला सकते हैं। आरएन इंस्टीट्यूट आॅफ एडवांस टेक्नालॉजी के मालिक सुरेंद्र पटेल कहते हैं कि ‘भारतीय कंपनियां चीनी कंपनियों से मुकाबला नहीं कर सकतीं। उनकी मशीनें हमसे बेहतर हैं। उनके कारीगर ट्रेनिंग लेकर काम शुरू करते हैं, लेकिन इस से भी बढ़कर चीनी कंपनियों को सस्ते दर पर बैंक से ब्याज मिलता है।
चीनी सरकार इन्हें टैक्स में कई तरह की छूट देती है। ऐसी सुविधाएं इंडिया में उद्यमियों को नसीब नहीं हो पाती हैं। इसके चलते पंखा, लकड़ी का खिलौना, शीशे की मोतियों का कारोबार अंतिम सांसें गिन रहा है। कई छोटी कंपनियां बंद हो चुकी हैं। कई बंद होने के कगार पर हैं। कम लागत और उम्दा सामान के आगे भारतीय उद्यमी टिक नहीं पा रहे हैं। यही वजह है कि दालमंडी जैसे बाजार चीनी सामानों से पटते जा रहे हैं।
जुगाड़ तकनीक में दालमंडी अव्वल
वाराणसी के दालमंडी सिर्फ सस्ते चीनी सामानों के लिए ही नहीं, जुगाड़ तकनीक के लिए भी जाना जाने लगा है। इस बाजार में कुछ दुकानदार भले ही उदंड भाषा का इस्तेमाल करते नजर आते हैं, लेकिन इनके पास ऐसे हुनर हैं जो पल भर में हर समस्या का समाधान कर देते हैं। दुनिया के किसी देश का कोई भी इलेक्ट्रानिक सामान इस बाजार में जुगाड़ तकनीक से बन जाता है। मोबाइल हो या कंप्यूटर अथवा जासूसी उपकरण। दालमंडी के हुनरमंद कारीगर जुगाड़ तकनीक और सस्ते दर पर सब कुछ बना देते हैं। यूपी में शायद ही ऐसा कोई बाजार होगा, जो दालमंडी के कारीगरों के हुनर का मुकाबला कर पाए। किसी शहर के कारीगर ऐसे नहीं हैं जो दालमंडी के कारीगरों की तरह जुगाड़ तकनीक से लैस हों।