ये छल, ये धोखा और जुल्म बनाते हैं नक्सली

यह कैसा न्याय
लालब्रत तो छला ही गया उसकी पत्नी ज्ञानवती पर बेइंतहां जुल्म हुआ
सरेंडर के नाम पर गिरफ्तारी के बाद रची मुठभेड़ की झूठी कहानी
विजय विनीत
गरीब परिवार से आया लालब्रत कोल एक दिन नक्सली बन गया। जानते हैं क्यों? दबंग लोगों ने उसकी जमीन हड़प ली, उस पर जुल्म किया, कोई सुनवाई नहीं हुई। वह क्या करता। कोई चारा नहीं था बंदूक उठाने के अलावा। पर किसी बिंदु पर उसने तय किया कि मुख्य धारा की जिंदगी में लौटना चाहिए। तब उसके साथ पुलिस ने, व्यवस्था ने जो छल किया, जो धोखा दिया वह नाकाबिले बर्दाश्त था। वह तो जेल में है, लेकिन उसकी पत्नी ज्ञानवती और उसके बच्चों का क्या कसूर है जो वे लगातार पुलिसिया जुल्म का शिकार हो रहे हैं। उसकी पत्नी ज्ञानवती कोल न जाने कितनी दफा छली गई। पुलिस ने उसे तीन बार विधवा बनाया। जुल्म ढाया। बदन पर अनगिनत लाठियां तोड़ीं। फिर उसका हौसला नहीं डिगा। पति जेल में है। दर्जनों मुकदमें हैं। फिर भी उसे बचाने के लिए लगातार जद्दोजहद कर रही है।
यह किसी फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि चंदौली जिले के नौगढ़ पुलिस की नजर में हार्डकोर नक्सली लालब्रत कोल की पत्नी की है। पिछले साल 29 मई को सोनभद्र पुलिस ने मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार करने का दावा किया था। एक एसएलआर रायफल भी दिखाई। पुलिस ने लालब्रत के माथे पर रखा दो लाख का इनाम भी लिया। ज्ञानवती कहती है, ‘सोनभद्र पुलिस ने वादा किया था कि लालब्रत सरेंडर करेगा तो पुलिस उसे जमीन देगी। मकान देगी और दौलत भी। चंद दिनों में उसे जेल से आजादी मिल जाएगी। पर सारे वादे झूठे साबित हुए।’
बात उन दिनों की है जब सोनभद्र में एसपी सुभाष चंद्र दुबे थे। उन्होंने लालब्रत को समाज की मूल धारा में लौटाने के लिए वादा किया, पर उसने भरोसा नहीं किया। बाद में उसने सांसद पकौड़ी कोल से संपर्क साधा। सांसद ने पुलिस अधिकारियों से बात की। लालब्रत के समर्पण की बात तय हुई। एसपी ने ज्ञानवती को भरोसा दिलाया कि वह उसके पति के खिलाफ दर्ज सभी मुकदमें हटवायेंगे। न्याय दिलाएंगे। 26 मई 2012 को चोपन (सोनभद्र) पुलिस ज्ञानदेवी और लालब्रत के मौसेरे भाई मंगला प्रसाद को लेकर बिहार के डुमरखोह गांव पहुंची। बिहार पुलिस की कड़ी किलेबंदी को तोड़कर लालब्रत को सोनभद्र कोतवाली लाया गया। यह वाक्या 28 मई का है। ज्ञानवती बताती है, ‘पुलिस ने उसे और उसके संबंधियों को घर भेज दिया। रात में फर्जी मुठभेड़ की कहानी गढ़ दी। अगले दिन एसएलआर रायफल के साथ उसके पति को मिर्जापुर जेल भेज दिया गया। उसने अफसरों की चौखट पर कई बार गुहार लगाई, लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं मिला।’
ज्ञानवती को इस बात का संतोष है कि चंदौली के मौजूदा एसपी संतोष सिंह जब से आए हैं तब से पुलिस जुल्म बंद है। वह बताती है, ‘उसे याद नहीं कि पति के बागी बनने के बाद उसके और उसके सास-ससुर के बदन पर कितनी लाठियां तोड़ी गईं। बच्चों को मारा पीटा गया। पुलिस शौच करते समय उठाकर पिटाई शुरू कर देती थी। पुलिस ने उसे मजूरी करने लायक भी नहीं छोड़ा। पैरों ने अब जवाब दे दिया है। मनरेगा की मजूरी भी दूभर हो गई है।’
ज्ञानवती पिछले 15 सालों से पुलिस जुल्म झेल रही है। भवानी कांड हुआ तो लालब्रत के मारे जाने की खबरें अखबार में छपीं। तब उसने अपने माथे का सिंदूर और चूड़ियां तोड़ ली। पुलिस के झूठे नाटक से उसे तीन बार विधवा बनना पड़ा। बच्चों को लेकर छह साल तक मायके में रही, पर पुलिस ने वहां भी उसका पीछा नहीं छोड़ा।
जिंदगी की जंग लड़ रही ज्ञानवती कोल इनदिनों अपनी सास कलावती और तीन बच्चों के साथ नौगढ़ प्रखंड के मझगांवा में रहती है। वह अपने बच्चों का भविष्य संवारना चाहती है। उन्हें पढ़ा-लिखा रही है। उसे पता है कि कम पढ़े-लिखे होने के कारण ही उसके पति बागी बने थे। कहती है, ‘झरियावां के दबंगों ने उसकी जमीन हड़पी। पति को अन्याय बर्दाश्त नहीं हुआ। वह बागी बन गये। ससुर बचाऊ को पुलिस ने इस कदर पीटा कि उनकी जान ही चली गयी। संतोष इस बात का है कि जब से पति जेल में हैं उसके घर की तलाशी और रोजाना होने वाली पुलिसिया पिटाई बंद है।’
ज्ञानवती के घर में सिर्फ एक चारपाई है और है लालकार्ड, जिससे उसके परिजनों की आजीविका चल रही है। हालांकि नौकरशाही उसे आज भी सता रही है। इंदिरा आवास की बकाया किस्त देने के लिए रिश्वत मांगी जा रही है। उसका और जेठान कुंती देवी का घर अधूरा पड़ा है। लालब्रत की मां गुजरे दिनों को याद करते हुए कहती है, ‘औरत के लिए जिंदगी मुश्किल है। औरत अगर आदिवासी हो तो राह और भी कठिन हो जाती है। समाज के लोग उसे हिकारत की नजर से देखते हैं। जैसे आदिवासियों की कोई गरिमा ही नहीं है। अपने बेटे को छुड़ाने के लिए अदालत में अर्जी दी है, लेकिन न्याय भी गरीबों को कहां मिलता है। उसे अगर किसी पर यकीन है तो वह हैं मुलायम सिंह यादव। उन्होंने फूलन देवी की रिहाई कराई थी। लेकिन उसके बेटे लालब्रत को न्याय कब मिलेगा, उसे यह नहीं मालूम।’