आवारा कुत्ते ले रहे हैं नक्सलियों से मोर्चा

आवारा कुत्ते ले रहे हैं नक्सलियों से मोर्चा

 

नौगढ़ और सोनभद्र में पुलिस का नया प्रयोग

घुप अंधेरे में आहट पाते ही लगते हैं भौंकने

विजय विनीत

यूपी पुलिस अब हथियारों के बजाय आवारा कुत्तों के जरिये नक्सलवाद का मुकाबला कर रही है। ये नक्सली चरमपंथियों का मुकाबला बखूबी कर रहे हैं। 20 नवंबर, 2004 को नक्सलियों ने नौगढ़ (चंदौली) के हिनौत घाट में बारुदी सुरंग बिछाकर 17 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। इससे सबक लेते हुए सोनभद्र और चंदौली के नक्सल प्रभावित क्षेत्र नौगढ़ में आवारा कुत्तों को काम पर लगाया गया है। बदले में इन्हें बढ़िया खाना खिलाया जाता है।

सोनभद्र के नक्सल प्रभावित थानों में पुलिस मेस में आवारा कुत्तों के लिए अलग से भोजन बनाया जाता है। ये थाने में सारी रात गश्त देते हैं और किसी भी आगंतुक को देखकर भौंकने लगते हैं, इससे पुलिस वाले सचेत हो जाते हैं। पिछले दो सालों से दर्जनों आवारा कुत्ते थानों की रखवाली में लगे हैं। सोनभद्र का सबसे संवेदनशील थाना मांची हो अथवा पुलिस चौकी महुली या फिर पनौरा, बसुहारी, चकरिया पोखरिया, सभी स्थानों पर आवारा कुत्तों से पेट्रोलिंग में मदद ली जा रही है। कई मौकों पर इन कुत्तों ने नक्सलियों से कड़ा मुकाबला करने में पुलिस बल की मदद भी की है।

मांची पुलिस के मुताबिक , ‘पुलिस थानों की रक्षा करना आसान नहीं है। विशेष रूप से रात में आप हर आहट पर नजर नहीं रख सकते। हमारे पास संसाधनों के साथ ही बल की भी कमी है। इसलिए हमने इस काम में आवारा कुत्तों को लगाया है।’ माची थानाध्यक्ष अपने बगल में खड़े एक आवारा कुत्ते की पीठ थपथपाते हुए कहते हैं, ‘आखिर कुत्ता आदमी का सबसे भरोसेमंद दोस्त भी तो होता है?’ वह कुत्तों को उनकी सेवाओं के लिए धन्यवाद देना नहीं भूलते।

सोनभद्र के पन्नूगंज, रामपुर और चंदौली के नौगढ़, चकरघट्टा के थानों के अलावा दोनों जिलों में स्थापित पीएसी के आधा दर्जन कैंपों में आवारा कुत्तों की मदद ली जा रही है। मांची थाने में पांच आवारा कुत्ते दिन-रात पुलिस के साथ आतंकवादियों से लड़ रहे हैं। पुलिस के जवान भी इन कुत्तों के भोजन पर विशेष ध्यान देते हैं।

आमतौर पर इन कुत्तों को दिन में दो बार दाल-चावल दिया जाता है, लेकिन कभी-कभी उन्हें रोटियां भी दी जाती हैं। पुलिस अब आवारा कुत्तों के लिए अलग से रसोई की व्यवस्था करने का मन बना रही है। नौगढ़ के चकरघट्टा थाने के तत्कालीन प्रभारी विजय शंकर कहते हैं, ‘आवारा कुत्ते यहां सिर्फ भोजन करने नहीं आते। पूरी ईमानदारी से रात में ड्यूटी बजाने भी आते हैं। ये किसी भी अनजान व्यक्ति को देखकर या आहट सुनकर भौंकने लगते हैं।’

पुलिस के अधिकारी कहते हैं, ‘हम इनपर पूरा भरोसा करते हैं, ये नक्सलियों से निपटने के लिए तैयार हमारे बल का हिस्सा हैं। रात में जब घुप अंधेरा हो जाता है और कई-कई दिन तक बिजली के दर्शन नहीं होते, तब जवानों के साथ कुत्ते भी गश्त लगाते हैं और जब वे भौंकते हैं तो हम सतर्क हो जाते हैं और टार्च जला लेते हैं। अकेले चंदौली में 241 गांव नक्सल प्रभावित हैं। इनमें 74 गांव चकरघट्टा और 65 नौगढ़ थाना क्षेत्रों में हैं। इतने बड़े इलाके के लिए जितनी फोर्स चाहिए वह पर्याप्त नहीं है। पुलिस अधिकारियों के पास मुश्किल से एक जीप है। टायलेट की सुविधा नहीं है और न ही शिफ्ट के बीच में आराम करने की कोई जगह है। नक्सल प्रभावित इलाकों के पुलिसकर्मी चाहते हैं कि आवारा कुत्तों के लिए सरकार अलग से बजट आवंटित करे, ताकि उनकी सही तरीके से देखभाल हो सके।

जासूसी कुत्ते भी लड़ रहे हैं जंग

चंदौली के नक्सल प्रभावित इलाकों में सिर्फ आवारा कुत्ते ही नहीं, जासूसी में दक्ष कुत्ते भी नक्सलियों से लड़ रहे हैं। सीआरपीएफ के पास तीन जासूसी कुत्ते हैं जो पलक झपकते बारुदी सुरंगों का पता लगा लेते हैं।

सीआरपीएफ के मांची कैंट पर डरीना (लैब्राडोर) को नक्सलियों के खिलाफ लड़ने के लिए लगाया गया है। इसके प्रशिक्षक कहते हैं ‘डरीना दुश्मन को पहचानते ही हमला कर देती है। आतंकवादियों के संदिग्ध ठिकानों का भी पता लगा लेती है।’ मांची की सबसे संवेदनशील पुलिस चौकी महुली के सीआरपीएफ कैंप पर जासूसी कुतिया कैडवरी  (लैब्राडोर) और नौगढ़ कैंप में बिल्लो (जर्मन शेफर्ड) को तैनात किया गया है। इन कुत्तों की देखरेख और भोजन आदि पर जवानों से अधिक धनराशि खर्च की जा रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!