काशी में पंचकोसी यात्रा से पूरी हो जाती हैं सभी मुरादेें

काशी में पंचकोसी यात्रा से पूरी हो जाती हैं सभी मुरादेें

त्रेता युग में भगवान राम ने भी की थी पंचकोसी यात्रा

विजय विनीत

पुराणों में पंचकोसी यात्रा का बड़ा महत्व है। त्रेता युग में भगवान राम ने अपने तीनों भाइयों लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और पत्नी सीता के साथ पंचकोसी यात्रा की थी। भगवान राम ने खुद रामेश्वर में शिवलिंग स्थापित किया था। उन्होंने यह यात्रा अपने पिता दशरथ को श्रवण कुमार के माता-पिता के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए की थी। द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यह यात्रा द्रौपदी के साथ की थी। मान्यता है कि पंचकोसी यात्रा से सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। सिर्फ कष्ट ही दूर नहीं होता, श्रद्धालुओं का जीवन भी सुखमय हो जाता है। काशी में अगर आप पंचकोसी यात्रा पर निकलते हैं तो पांचों पड़ावों और वहां स्थित मंदिरों के महत्व को जरूर जान लें। आइए आपको हम बताते हैं कि पंचकोसी यात्रा कैसे और कहां से शुरू करें?
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी कूप पर संकल्प लेने के बाद पंचकोसी यात्रा शुरू की जाती है। श्रद्धालु कूप का जल अपनी अंजुली में लेकर यात्रा शुरू करने का बचन लेते हैं। यह एक तरह से यात्रा पूरी करने का संकल्प भी है। हालांकि पंचकोसी यात्रा की शुरुआत मणिकर्णिका घाट से होती है। समापन भी यहीं होता है।

इच्छा की कामना के पूर्णता का है यह अच्छा समय

अगर आप के मन कोई इच्छा हो तो उसकी पूर्णता की कामना करने का यही अच्छा समय है। पंचकोसी यात्रा में पांच पड़ाव हैं, जिनसे गुजरने के लिए श्रद्धालुओं को करीब 50 मील की दूरी नापनी पड़ती है। पंचकोसी यात्रा के दौरान दाहिनी तरफ तमाम छोटे-छोटे लाल रंग के मंदिर दिखेंगे, जिन पर उनका नाम और क्रमांक भी अंकित होता है। पांचों पड़ावों पर पांच बड़े मंदिर हैं, जो आस्था के बड़े केंद्र माने जाते हैं। इन मंदिरों के आस-पास करीब ढाई हजार धर्मशालाएं हैं, जो तीर्थयात्रियों को भक्ति-भजन करने के लिए छतरी बनती हैं।
पहले दिन मणिकर्णिका घाट पर गंगा स्नान के बाद यात्री गंगा तट के तीर्थों का दर्शन करते हुए कंदवा पहुंचते हैं। यहां कर्मदेश्वर महादेव और अन्य मंदिरों में दर्शन-पूजन करने के बाद रात्रि-विश्राम करते हैं। पंचकोसी यात्रा के दूसरे दिन भीमचंडी में पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालु आराम करते हैं। भीमचंडी पड़ाव पर चंदिकेश्वर महादेव का मंदिर है जिसका स्वरूप कर्दमेश्वर मंदिर से काफी मिलता-जुलता है। यह काफी ऊंचा मंदिर है, जिसका शिखर पत्थर खुदाई से बनाया गया है। पास में है एक बहुत बड़ा जलकुंड। इसे गंधर्व सागर कुंड या गंधेश्वर के नाम से जाना जाता है।

भगवान राम ने रामेश्वर में स्थापित किया था शिवलिंग

वरुणा नदी के किनारे है तीसरा पड़ाव रामेश्वर। भगवान राम ने खुद अपने हाथ से यहां शिवलिंग स्थापित किया था। इस मंदिर के पास हैं लक्षिमणेश्वर मंदिर, भरतेश्वर मंदिर और शत्रुघ्नेश्वर मंदिर। ये मंदिर भगवान राम के छोटे भाइयों के हैं। यहां एक और मंदिर है जो देवी तुलजा भवानी को समर्पित है। इस देवी को पश्चिम भारत में पूजा जाता है। रामेश्वर में मूर्तियों को ध्यान से देखेंगे तो आप के मन में श्रद्धा का अनूठा भाव पैदा होगा। बताते हैं कि औरंगजेब की सेना भी इस मंदिर तक नहीं पहुंच पाई थी। बताते हैं कि इस मंदिर की रक्षा खुद तुलजा भवानी करती हैं।
पंचकोसी यात्रा का चौथा पड़ाव है शिवपुर, जहां पांचो पांडवों ने अलग-अलग आकारों का शिवलिंग स्थापित किया था। शिवपुर के मंदिर के पास में ही एक जलकुंड है, जिसे द्रौपदी कुंड के नाम से जाना जाता है। पांडवों ने यह यात्रा अज्ञातवास के समय की थी।

कपिलधारा में कपिल मुनि ने स्थापित किया था शिवलिंग

पंचकोसी यात्रा का आखिरी पड़ाव है कपिल धारा। कपिल मुनि ने यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। वाराणसी के उत्तरी छोर पर स्थित यह बेहद सुंदर मंदिर है। मंदिर पर खड़े होकर विशाल जलकुंड को निहार सकते हैं। यहां यात्रियों के ठहरने के लिए कई धर्मशालाएं हैं। सड़क की दाहिनी ओर कुंआ है, जिसे पार्वती शक्ति तीर्थ कहा जाता है। इसी के बगल में पार्वतीजी का मंदिर भी है। यात्री यहां दर्शन-पूजन करने के बाद विश्राम करते हैं। इसी मंदिर के पास ही ऐतिहासिक पक्का कुण्ड है। इस कुण्ड को बृषभध्वजेश्वर कपिल तीर्थ कहा जाता है। काशी के इस तीर्थ को गया के समान दर्जा मिला हुआ हैं। यात्री यहां स्नान कर पितृ तर्पण और श्राद्ध भी करते हैं।
कपिलधारा कुण्ड के पश्चिमी घाट पर छांगवक्रेश्वरी देवी का मंदिर स्थित है। यात्री इनका दर्शन-पूजन कर आगे बढ़ते हैं तो वहीं कपिल तीर्थश्वर का मंदिर है। इससे आगे बढ़ने पर विशाल मंदिर में बृषभध्वजेश्वर की मूर्ति है। यात्री यहां पहुंचकर इनका दुग्धाभिषेक और जलाभिषेक कर दर्शन-पूजन करते हैं। इस दौरान यात्री साधु-संतों और गरीबों को भोजन कराते हैं। साथ ही दान भी देते हैं। कपिलधारा में करीब नौ धर्मशालाएं हैं। यात्री यहीं विश्राम करते हैं।
अगले दिन यात्री यहां से आगे बढ़ते हुए कोटवां जाते हैं। इस गांव के पास विष्णु मंदिर में ज्वाला नृसिंह विष्णु की अद्भुत प्रतिमा है। भक्ति, विद्या और धन प्राप्ति के लिए इस मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है। बाद में यात्री वरूणा, गंगा संगम तीर्थ पर पहुंचते हैं। यहीं पर स्थित है आदिकेशव का विशाल मंदिर। इस मंदिर में स्थापित शिवजी को केशवेश्वर कहा जाता है। इस मंदिर के पास है केशव विष्णु जी की प्रतिमा। यात्री इनका दर्शन-पूजन कर आशीर्वाद लेते हैं। मान्यता है कि इनके दर्शन से समस्त प्रकार के दुःख, दरिद्रता, रोग दूर हो जाते हैं और सुख समृद्धि का उदय होता है। आखिरी पड़ाव से गुजरने के बाद यात्री मणिकर्णिका घाट पहुंचते हैं। पंचकोसी यात्रा के दौरान यात्री 108 तीर्थस्थलों और मंदिरों में 56 शिवलिंग, 11 विनायक, 10 शिवगण, 10 देवियों, चार विष्णु, दो भैरवों का दर्शन-पूजन करते हैं।
खाने-पीने का इंतजाम श्रद्धालुओं को खुद करना पड़ता है।

पड़ावों पर अर्पित करने को लेकर जाएं पान-सुपारी

अगर आप पंचकोसी यात्रा पर निकलें तो पांचों पड़ावों पर अर्पित करने के लिए पान-सुपारी अपने साथ लेकर जाएं। रास्ते में हर मंदिर में अक्षत अथवा बाबा भोले को कच्चा चावल अर्पित किया जाता है। यात्रा पर निकलें तो हर मंदिर में चढ़ाने के लिए फुटकर पैसे जरूर रखें। अपनी जरूरत की सभी चीजें साथ में रख लें। किसी पड़ाव पर कोई पुजारी आपसे मनमाने धन की डिमांड करता है तो यह पहले ही सोच लीजिए कि आपको दान करना क्या है? रात में भोजन बनाने की व्यवस्था करके चलें। मतलब, आंटा, दाल, चावल और सब्जी सब कुछ लेकर ही यात्रा पर निकलें।

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