करेमुआ के बैगन को निगल गई नौकरशाही
बदलता जमाना
इस गांव में अब न करेम उगता है और न होती है बैगन की खेती
रामेश्वर के लोटा-भंटा मेले में आज भी खोजा जाता है यह ब्रांड
अब तो अपनों के बीच ही बेगाना हो गया चंदौली के करेमुआ का बैगन
सत्य प्रकाश
चंदौली इलाके का सबसे खुशहाल गांव करेमुआ अब बेनूर हो गया है। बैगन और परवल की खेती के दम पर समूचे पूर्वाचल में तरक्की की गाथा लिखने वाला यह गांव बेजार है। जानते हैं क्यों? करेमुआ के जिस बैगन के दम पर गांव के तमाम नौजवान इंजीनियर और बड़े-बड़े अफसर बने, वह ब्राड गायब है। बैगन और परवल के दम पर तरक्की की गाथा लिखने वाले करेमुआ में अब सब्जियों की खेती नहीं के बराबर होती है। यह वही गांव है जहां बैगन की ऐसी प्रजाति विकसित हुई थी, जिसका दुनिया में कोई सानी नहीं था। करेमुआ ब्रांड के बैगन में न कीड़े लगते थे और न स्वाद कसैला होता था। किसान खेत से तोड़कर कच्चे बैगन का नाश्ता कर लेते थे। इस बैगन का चोखा इतना लजीज बनाता था कि बनारस के रामेश्वर इलाके के चर्चित लोटा-भंटा मेले में इसके लिए मारा-मारी होती थी।
किसान होरीलाल कहते हैं कि करेमुआ का बैगन जैसे ही बनारस की सब्जी मंडी में पहुंचता था, लूट मच जाती थी। लोटा-भंटा मेले में पहुंचने वाले पुरनिया आज भी करेमुआ का बैगन ढूंढते हैं। साथ ही उस बैगन के स्वाद का गुणगान करते नहीं थकते।
करेमुआ के बैगन को जानने से पहले इस गांव के इतिहास को भी जान लें। इस गांव से सटी है चंद्रप्रभा नदी। यह नदी पहले करेम से अटी-पड़ी रहती थी। भूख और गरीबी से बेहाल लोग जिंदगी बचाने के लिए करेमुआ आते थे और नदी से करेम निकालकर उसका साग और सब्जियां बनाते थे। दीगर बात है कि चंदौली की युवा पीढ़ी न करेम के स्वाद को पहचानती है और न ही करेमुआ को जानती है।
करेमुआ के जिस बैगन ने किसानों को आर्थिक संबल देकर उनके बेटे-बेटियों को शिखर तक पहुंचाया, आज वहां उसका नामो-निशान नहीं है। करेमुआ और उससे सटे गांव भैसही के किसानों के बेटे-बेटियां चंद्रप्रभा नदी को पार कर पढ़ने बबुरी जाते थे। कभी नदी तैरकर पार करनी पड़ती थी तो कभी कड़ाहे पर बैठकर। कभी पेड़ों की बल्लियों पर सवार होकर। तत्कालीन सांसद आनंदरत्न मौर्य ने इस गांव के किसानों की पीड़ा समझी तो पुल बनवा दिया। तरक्की के साथ करेमुआ का करेम, करैला, बैगन और परवल की खेती सिमटती चली गई। अब इस गांव में धान-गेहूं के अलावा कुछ नहीं होता।
करेमुआ के किसान कमलेश मौर्य कहते हैं कि रासायनिक उर्वरकों के अलावा बैगन की हाईब्रिड प्रजातियों ने करेमुआ ब्रांड के बैगन का सफाया कर दिया। ज्यादा मुनाफे के लालच में अधिक उत्पादन देने वाली बेस्वाद वाले बैगन के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। इस गांव के किसान बैगन के बजाए कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती को अहिमयत दे रहे हैं। उद्यान विभाग ने करेमुआ-भैसही में बैगन की सामूहिक खेती को बढ़ावा देने और सब्जियों की सुदृढ़ विपणन व्यवस्था करने की जरूरत आज तक नहीं समझी। हैरत की बात है कि चंदौली के उद्यान विभाग के अधिकारी न तो करेमुआ को जानते हैं और न ही सूबे के प्रसिद्ध करेमुआ ब्रांड बैगन को।
जापान ने अपनी धरती पर उगा लिया करेमुआ ब्रांड का बैगन
चंदौली के बैगन रामनगर जाइंट के साथ करेमुआ ब्रांड को अब कोई जानता भी नहीं। इन दोनों प्रजातियों का बीज जापान और अमेरिका के वैज्ञानिक अपने यहां ले गए थे। करेमुआ ब्रांड के बैगन के जीन से अपने यहां स्थानीय मौसम के अनुकूल पैदा होने वाली बैगन की तमाम प्रजातियां विकसित कर लीं। बनारस मंडल के उद्यान विभाग के अफसरों ने बैगन की दोनों प्रजातियों को संरक्षित कर इसकी खेती को बढ़ावा देने जरूरत नहीं समझी। बैगन की दोनों प्रजातियों का नाम उद्यान विभाग की फाइलों से भी गायब हो गया है।