काशी के इस मंदिर में नगाड़े पर थाप देकर भगाएं काला जादू

बाबा बटुक के यहां हाजिरी दिए बिना काशी की तीर्थयात्रा पूर्ण नहीं होती
काशी के कमक्षा स्थित बटुक भैरव मंदिर में बम बटुकाय नमः का जाप करते हुए नगाड़े पर 101 थाप देने से जानलेवा काला जादू भी काफूर हो जाता है। बाबा का चक्र घूमता है और काला जादू कराने वाले दुश्मनों उल्टा प्रहार शुरू हो जाता है। श्री भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं।
बाबा के दर्शन मात्र से दैहिक, , दैविक और भौतिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। नव ग्रह दोष से छुटकारे के लिए बाबा का दर्शन जरूर करना चाहिए। बटुक भैरव प्रसन्न होकर सदा साधक के साथ रहते हैं और उसे सुरक्षा प्रदान करते हैं। अकाल मौत से बचाते हैं। ऐसे साधक को कभी धन की कमी नहीं रहती और वह सुखपूर्वक वैभवयुक्त जीवन-यापन करता है।
बटुक भैरव का वाहन कुत्ता है। कमक्षा मंदिर में बाबा के वाहनों को कहीं भी बैठने, घूमने की आजादी है। चाहे मंदिर के अंदर हों अथवा बाहर। ये कुत्ते जिन भक्तों के प्रसाद प्रेम से खा लेते हैं उनकी सभी विपत्तियां समाप्त हो जाती हैं।
हिन्दू शास्त्रों के मुताबिक श्री बटुक भैरव जयंती के दिन बाबा के दर्शन-पूजन से सभी जीवों के जन्मांतरों के पापों का नाश हो जाता है। बाबा बटुक भैरव अगहन की अष्टमी के अलावा रविवार और मंगलवार को विधिपूर्वक पूजन करने वालों के पापों का नाश कर देते हैं।
कमच्छा स्थित प्राचीन बटुक भैरव मंदिर में हर साल हरियाली श्रृंगार के अलावा जल विहार की झांकी सजाई जाती है। बाबा बटुक भैरव को इस मौके पर सीप से बने सिंहासन पर विराजमान कराया जाता है। नयानाभिराम झांकी के दर्शन से ही लोगों के कई जन्मों के पाप मिट जाते हैं।
महंत राकेश पुरी के मुताबिक बाबा भैरव यहां सात्विक,, राजसी और तामसी तीनों रूपो में विराजते हैं। शरद ऋतु के विशेष दिन में बाबा का त्रिगुणात्मक श्रृंगार किया जाता। मंदिर को तंत्र साधना के लिए भी जाना जाता है। तीन घंटे से ज्यादा समय तक महारूद्र यज्ञ होता है,, जिसमें पंचमेवा, साकला, देशी घी के साथ मदिरा अर्पित किया जाता है।
”सुबह बाल बटुक को जूस,, टॉफी,, बिस्कुट और फल का भोग लगाया जाता है। दोपहर को राजसी रूप में चावल, दाल,, रोटी-सब्जी का भोग लगाया जाता है। शाम को बाबा की महाआरती के बाद भैरव को मटन करी,, फिश करी,, अंडा के साथ मदिरा का भोग लगाया जाता है। इतना ही नहीं बाबा को प्रसन्न करने के लिए शराब से खप्पड़ भी भरा जाता है।
श्री बटुक भैरव की पूजा पद्धति इस प्रकार है—
ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा- मंत्र का जाप रोजाना
11 माला 21 मंगल तक जप करें। मंत्र साधना के बाद अपराध-क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें। भैरव की पूजा में श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ भी करना चाहिए। श्री बटुक भैरव का यंत्र लाकर उसे साधना के स्थान पर भैरवजी के चित्र के समीप रखें। दोनों को लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर यथास्थिति में रखें। चित्र या यंत्र के सामने हाल, फूल, थोड़े काले उड़द चढ़ाकर उनकी विधिवत पूजा करके लड्डू का भोग लगाएं। इस साधना को किसी भी मंगलवार या मंगल विशेष अष्टमी के दिन शाम 7 से 10 बजे के बीच करना चाहिए। साधना के दौरान खान-पान शुद्ध रखें। सहवास से दूर रहें। वाणी की शुद्धता रखें और किसी भी कीमत पर क्रोध न करें। यह साधना किसी गुरु अथवा सिद्ध पुरुष से जानकारी हासिल करने के बाद ही करें।
यदि आप भैरव साधना किसी मनोकामना के लिए कर रहे हैं तो अपनी मनोकामना का संकल्प बोलें और फिर साधना शुरू करें। यह साधना दक्षिण दिशा में मुख करके की जाती है। रुद्राक्ष या हकीक की माला से मंत्र जप किया जाता है। भैरव पूजा में केवल तेल के दीपक का ही उपयोग करना चाहिए। साधक लाल या काले वस्त्र धारण करें। हर मंगलवार को लड्डू के भोग को पूजन-साधना के बाद कुत्तों को खिला दें और नया भोग रख दें। भैरव को अर्पित नैवेद्य को पूजा के बाद उसी स्थान पर ग्रहण करना चाहिए।