मिराज, मृगतृष्णा, माया : जीवन के सत्य का अनावरण

मिराज, मृगतृष्णा, माया : जीवन के सत्य का अनावरण

विजय विनीत

चेन्नई की लेखिका डा. छवि कालरा द्वारा लिखी गई एक प्रभावशाली पुस्तक जो मानवता, अस्तित्व, और हमारे जीवन की वास्तविकता के गहरे प्रश्नों का उत्तर खोजने पर आधारित है। यह पुस्तक पाठकों को आत्म-चिंतन और गहरे मानसिक, आध्यात्मिक विश्लेषण की यात्रा पर ले जाती है, जहाँ वे अपने अस्तित्व की गहनता और सत्य की खोज कर सकते हैं।

पुस्तक का शीर्षक ही तीन महत्वपूर्ण शब्दों से बना है: ‘मिराज’, ‘मृगतृष्णा’, और ‘माया’। तीनों शब्द हमारे जीवन की वास्तविकता और भ्रम के बीच के संघर्ष को दर्शाते हैं। ‘मिराज’ का तात्पर्य एक ऐसी दृष्टि से है जो वास्तविक प्रतीत होती है लेकिन वास्तव में अस्तित्व में नहीं होती। यह जीवन के उन पहलुओं की ओर इशारा करता है जो हमें आकर्षित करते हैं, लेकिन अंततः खोखले होते हैं। ‘मृगतृष्णा’ वह प्यास है जो कभी नहीं बुझती, चाहे हम कितनी भी कोशिश कर लें। यह हमारे जीवन के उन आदर्शों, इच्छाओं और सपनों को दर्शाती है जिन्हें हम कभी पूरी तरह प्राप्त नहीं कर पाते। ‘माया’ हिन्दू दर्शन के अनुसार, संसार का वह भ्रम है जिसमें हम फंसे हुए हैं और जो वास्तविकता को धुंधला कर देता है।

डॉ. छवि की यह पुस्तक मुख्य रूप से उन प्रश्नों पर आधारित है जो मानवता और जीवन के उद्देश्य से जुड़े हैं। हम कौन हैं? हमारा अस्तित्व क्या है? क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं, या हमारी सोच, क्रियाएँ और इच्छाएँ किसी बड़े, अनदेखे बल द्वारा संचालित होती हैं? पुस्तक इन प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास करती है। यह बताती है कि हमारा अस्तित्व केवल भौतिक शरीर और सामाजिक पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि उससे कहीं अधिक गहरा और व्यापक है।

मानवता और अस्तित्व का सवाल

पुस्तक का एक प्रमुख विषय ‘खुद को खोजने’ पर केंद्रित है। आज की व्यस्त और तेजी से बदलती दुनिया में, हममें से कई लोग अपनी असली पहचान खो चुके हैं। हम समाज, परिवार, और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों में उलझकर यह भूल जाते हैं कि हम असल में कौन हैं। यह पुस्तक आत्म-चिंतन और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में एक प्रोत्साहन है, जो बताती है कि वास्तविकता का पता लगाने के लिए हमें बाहरी दुनियाओं से पहले अपने भीतर की ओर देखना चाहिए।

‘मिराज, मृगतृष्णा और माया’ का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह आध्यात्मिकता और भौतिक वास्तविकता के बीच सेतु का कार्य करती है। जहाँ एक ओर यह भौतिक जीवन की चुनौतियों, इच्छाओं और संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करती है, वहीं दूसरी ओर यह आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उन समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास करती है। पुस्तक में यह दर्शाया गया है कि मानव जीवन में संघर्ष और भ्रम का कारण बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि हमारी अपनी सोच और दृष्टिकोण में छिपा होता है।

यह पुस्तक ‘माया’ के बंधन से मुक्ति का संदेश भी देती है। माया वह धुंध है जो हमारे असली स्वरूप को छिपाती है और हमें बाहरी संसार की ओर आकर्षित करती है। यह बाहरी संसार दिखावे और भ्रम से भरा है, और इसमें उलझने के कारण हम अपने भीतर की शांति और सत्य से दूर हो जाते हैं। पुस्तक यह सिखाती है कि हमें अपने भीतर की ओर ध्यान देना चाहिए, अपनी सच्ची पहचान को पहचानना चाहिए, और माया के बंधन से मुक्त होकर अपनी वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए।

स्वयं की खोज की यात्रा

हालांकिपुस्तक मुख्य रूप से आत्म-खोज और आत्म-साक्षात्कार पर आधारित है, यह समाज और दुनिया के प्रति हमारी जिम्मेदारियों कोभी नहीं भूलती। यह बताती है कि आत्म-चिंतन और आत्म-साक्षात्कार के साथ-साथ हमें अपने आस-पास के लोगों और समाज के प्रति भी जागरूक होना चाहिए। हमारी व्यक्तिगत यात्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हम अपनी आंतरिक शांति और सच्चाई को समाज के साथ कैसे साझा करते हैं और उसे बेहतर बनाने में कैसे योगदान करते हैं।

‘मिराज, मृगतृष्णा और माया’ एक ऐसी पुस्तक है जो जीवन के गहरे और जटिल प्रश्नों का उत्तर खोजने की कोशिश करती है। यह हमें हमारी असली पहचान, हमारे अस्तित्व, और इस संसार में हमारे उद्देश्य को समझने की दिशा में मार्गदर्शन करती है। पुस्तक के माध्यम से, डॉ. छवि ने पाठकों को आत्म-चिंतन, आत्म-साक्षात्कार, और माया के भ्रम से मुक्त होकर सच्चाई की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया है।

इस पुस्तक का संदेश स्पष्ट है: जीवन के सतही भ्रमों से ऊपर उठकर हमें अपनी आंतरिक वास्तविकता और सच्चाई को पहचानना चाहिए, और इस दुनिया में अपने अस्तित्व को सार्थक बनाना चाहिए।

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