कल्पनाओं को पंख देने वाली कवयित्री: मुनक्का मौर्या ‘मृदुल’के काव्य संग्रह का भव्य लोकार्पण

रचनाएं निर्जीव होती हैं, पर जब कोई उन्हें आत्मा से पढ़ता है तो वे सजीव हो जाती हैं-मृदुुल
विशेष संवाददाता
चंदौली। आलोक इंटर कॉलेज के सभागार में बुधवार का दिन साहित्य और संवेदना के रंगों से सराबोर रहा। एक अद्भुत सांस्कृतिक क्षण का साक्षी बना यह परिसर, जब हिंदी साहित्य जगत में एक विशिष्ट पहचान बना चुकीं कवयित्री और शिक्षिका मुनक्का मौर्या के नये काव्य संग्रह ‘कल्पना के पंख’ का भव्य लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के तैलचित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन से हुई, जो भारतीय संस्कृति की उस परंपरा को स्मरण कराता है जहां ज्ञान और कला के आरंभ में श्रद्धा अनिवार्य होती है। सभागार में साहित्यप्रेमियों, शिक्षकों, छात्रों, पत्रकारों और गणमान्य जनों की उपस्थिति ने वातावरण को गरिमामय बना दिया था। हर चेहरा इस आयोजन का साक्षी बनने को उत्सुक था।

मुनक्का मौर्या का साहित्यिक सफर कोई नया नहीं है, लेकिन हर बार उनकी लेखनी एक नई दृष्टि, एक नई सोच और नई ऊर्जा के साथ सामने आती है। वर्ष 1990 से आलोक इंटर कॉलेज में हिंदी शिक्षिका के रूप में कार्यरत मुनक्का जी ने अपनी साहित्यिक यात्रा ‘शिव वेदना’ से शुरू की थी, जो एक आध्यात्मिक भावभूमि से निकलकर सामाजिक चेतना के पथ पर आगे बढ़ी। अब तक वे ‘जिंदगी के रंग’, ‘संकट में हिंदुस्तान’, ‘कृषक वेदना’, ‘आजादी से बबार्दी’ सहित 52 से अधिक पुस्तकों की रचयिता बन चुकी हैं। यह आँकड़ा मात्र गिनती नहीं है, यह उस तपस्या का प्रमाण है जिसे लेखिका ने न केवल शब्दों में जिया है, बल्कि समाज को भी अपने विचारों से दिशा दी है।
‘कल्पना के पंख’ संग्रह उनकी अब तक की रचनाओं से कुछ भिन्न है। यह संग्रह नारी मन की उन उड़ानों की कथा है, जो सामाजिक बंदिशों के बावजूद अपने सपनों के विस्तार की चाह रखती है। इन कविताओं में एक स्त्री की संवेदना है, उसका आत्मसंघर्ष है और अपनी पहचान की जद्दोजहद भी। कविताएं केवल भावनात्मक उद्गार नहीं हैं, ये विचारों का उद्घाटन हैं, पाठकों को झकझोरते भी हैं और सोचने पर भी विवश करते हैं।
अपने उद्बोधन में मुनक्का मौर्या ने कहा, “रचनाएं निर्जीव होती हैं, पर जब कोई उन्हें आत्मा से पढ़ता है तो वे सजीव हो जाती हैं। रचनात्मक कार्यों में मेरे परिवार का सहयोग मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा है। मेरा मानना है कि साहित्य वही होता है, जिसमें पाठक अपना अक्स देख सके। मेरी कविताएं मेरा अनुभव हैं, लेकिन उनका अर्थ तब पूर्ण होता है जब वे किसी और की अनुभूति बन जाएं।”

इस वक्तव्य ने उपस्थित जनसमूह को भावुक कर दिया। एक सादगीभरे स्वर में कही गई ये बातें, उस सच्चाई का उद्घाटन थीं जिसे हर सच्चा साहित्यकार भीतर से महसूस करता है। यह स्वीकारोक्ति इस बात की गवाही देती है कि मुनक्का मौर्या की कविताएं केवल ‘रचनाएँ’ नहीं, वे जीवन के साक्ष्य हैं, एक स्त्री के, एक शिक्षिका के, एक मां के और एक कवयित्री के।
कार्यक्रम में उप जिलाधिकारी अविनाश कुमार ने कहा कि साहित्य किसी समाज की आत्मा होता है। उन्होंने मुनक्का मौर्या के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि “आज जब व्यावसायिकता ने साहित्य की आत्मा को संकट में डाल दिया है, ऐसे में मुनक्का जी जैसी रचनाकारों की उपस्थिति प्रेरणादायक है।”

वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार विजय विनीत ने अपने संबोधन में कहा, “मुनक्का मौर्या की लेखनी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे कविता को किसी खांचे में नहीं ढालतीं। उनकी हर रचना एक अनुभव है, और हर अनुभव एक संवाद। ‘कल्पना के पंख’ वास्तव में एक स्त्री की उड़ान नहीं, बल्कि पूरी स्त्री जाति की आकांक्षा है।”
कार्यक्रम में ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष आनंद सिंह, वरिष्ठ साहित्यप्रेमी आनंद बहादुर सिंह, राजेश तिवारी, अखिलेश श्रीवास्तव, चंद्रशेखर गुप्ता, हरिशंकर, शशिकांत, अली बख्शी, रामनगीना सिंह और अनिता कुशवाहा जैसे अनेक प्रबुद्धजनों ने भी अपने विचार रखे और पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कवयित्री को भविष्य के लिए शुभकामनाएँ दीं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता आज़ाद बहादुर ने की, जिन्होंने मुनक्का मौर्या को जनपद की ‘साहित्यिक शक्ति’ बताया। उन्होंने कहा कि “जिन्होंने शब्दों को साध लिया, उन्होंने समाज को दिशा देना सीख लिया।” उन्होंने यह भी कहा कि मुनक्का मौर्या की कविताएं चुपचाप पाठक के भीतर प्रवेश करती हैं और वहाँ एक हलचल छोड़ जाती हैं।
‘कल्पना के पंख’ न सिर्फ एक कविता संग्रह है, बल्कि यह उस स्त्री की आवाज़ है, जिसने कल्पनाओं को शब्दों के पंख दिए हैं। यह संग्रह पाठकों को भीतर तक छूता है, उनकी सोच में हलचल पैदा करता है और समाज के प्रति उनकी दृष्टि को और मानवीय बनाता है।

यह लोकार्पण समारोह किसी औपचारिकता का निर्वाह मात्र नहीं था, यह उस विश्वास का उत्सव था कि साहित्य आज भी जीवित है, और उसकी धड़कनें उन शब्दों में गूंज रही हैं जो कलम से नहीं, आत्मा से निकलते हैं।
मुनक्का मौर्या की यह नवीन कृति न केवल उनकी साहित्यिक यात्रा का एक नया सोपान है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। चन्दौली की धरती पर जन्मी यह रचनाशक्ति अब उस मुकाम पर है जहाँ उनकी कल्पनाएँ केवल उनके नहीं रहीं, वे पूरे समाज की साझा संपदा बन गई हैं। कार्यक्रम का संचालन अनिल श्रीवास्तव ने बहुत ही सधे और आत्मीय अंदाज़ में किया। उनकी वाणी ने कार्यक्रम को गहराई भी दी और गति भी।