अभिशाप नहीं बांझपन, पूर्वांचल में इलाज अब आसान
सीधी बात
विशेषज्ञ डॉ.नीलम ओहरी चाहती हैं कि सरकार मुहैया कराए आधारभूत ढांचा व सुविधाएं
महिलाओं को सुननी पड़ती हैं बांझ होने की फब्तियां, फंस जाती हैं तात्रिकों-ओझाओं के चंगुल में
प्रगतिशीलता के तमाम दावों के बावजूद पूर्वांचल में संतानहीनता को अभिशाप माना जाता है। संतानहीन महिलाओं को बांझ कहा जाता है और उनको आजीवन फब्तियां सुननी-सहनी पड़ती हैं। नई तकनीक की प्रगति के चलते बांझपन की समस्या का इलाज संभव है। हालांकि अब भी कृत्रिम गर्भाधान के तरीके महंगे होने की वजह से यह आम लोगों की पहुंच से बाहर है। वाराणसी की जानी-मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.नीलम ओहरी का मानना है कि बांझपन का इलाज करने वाले विशेषज्ञों को सरकार आधारभूत ढांचा और आवश्यक सुविधाएं मुहैया कराए तो बांझपन की समस्या के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकती है। पेश है डॉ.ओहरी से बातचीत के अंश-
सवाल: बांझपन की समस्या की असली वजह क्या है?
जवाब: मां नहीं बन पाने वाली महिलाओं की तादाद लगातार बढ़ रही है। लगभग 15 फीसदी महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं। इसके लिए कई वजहें जिम्मेदार हैं। कहीं देर से शादी हो रही है तो कहीं करियर के चक्कर में संतान प्रथामिकता सूची में नीचे पहुंच जाती है। मां नहीं बन पाने की समस्या से निपटने के लिए किशोरियों में जागरुकता पैदा करना जरूरी है। कई छोटे-मोटे लक्षण आगे होने वाली बड़ी बीमारियों के संकेत होते हैं। समय रहते उनको पहचान कर मामूली इलाज से ही समस्या दूर हो सकती है।
सवाल: क्या मोटापे के चलते भी बांझपन बढ़ रहा है?
जवाब: हार्मोनल असंतुलन के लिए जिम्मेदार पोलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओ) के मामले ज्यादा आ रहे हैं। यह बीमारी बेहद मामूली है और किशोरावस्था में ही इसके लक्षण पहचान कर इसे दूर किया जा सकता है। अगर इसकी अनदेखी की गई तो आगे चल कर यह महिलाओं में बांझपन की वजह बन सकती है। इस समस्या से बचने के लिए जीवनशैली में बदलाव जरूरी है। पीसीओ जैसी छोटी-मोटी समस्याएं शुरूआती दौर में आसानी से दूर की जा सकती हैं, लेकिन इनकी अनदेखी के नतीजे खतरनाक हो सकते हैं। यह गर्भाशय कैंसर में भी भूमिका अदा करता है। जीवनशैली में बदलाव से आधी समस्याएं हल हो सकती हैं।
सवाल: बांझपन के लिए क्या माता-पिता और अभिभावक भी जिम्मेदार हैं?
जवाब: बांझपन के लिए कुछ हद तक माता-पिता भी जिम्मेदार हैं। आजकल बच्चों का पालन-पोषण ऐसे तरीके से किया जाता है जिसमें उनको ज्यादा शारीरिक मेहनत नहीं करनी पड़ती। इसके अलावा युवा वर्ग में फास्ट फूड का प्रचलन भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इससे कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। असंतुलित आहार इस समस्या की जड़ में हैं। हाल के सालों में फास्टफुड ने इस समस्या को और भी ज्यादा गंभीर बना दिया है।
सवाल: बांझपन को लेकर ग्रामीण इलाकों की महिलाओं की सोच क्या है?
जवाब: बांझपन के कई कारण होते हैं, सम्भोग करने की सही जानकारी का होना, बच्चेदानी का मुंह ना खुलना, शरीर में शुक्राणुओं की कमी, बच्चेदानी का तापमान नियंत्रित ना होना इत्यादि। ग्रामीण इलाकों में तमाम महिलाएं विशेषज्ञ चिकित्सकों का इलाज कराने के बजाय तांत्रिकों और ओझाओं के चक्कर में पड़ जाती हैं। वहां महिलाओं का समय और पैसा बर्बाद तो होता ही है, कई बार ओझा और तांत्रिक ऐसे गुनाह को भी अंजाम दे देते हैं जिससे महिलाओं की जिंदगी बर्बाद हो जाती है। ग्रामीण महिलाओं को ध्यान में रखना चाहिए कि बच्चा स्त्री-पुरुष के शारीरिक संबंध बनाने से पैदा होता है न कि गले में गंडा-ताबीज बांधने से।
सवाल: महिलाओं में बांझपन के लिए जिम्मेदार एंड्रोमिट्रोसिस की समस्या बढ़ती जा रही है।
जवाब: महिलाओं में यह समस्या आम है और इसमें गर्भाशय, जहां भू्रण का विकास होता है, प्रभावित होता है। 35 से 50 प्रतिशत बांझ महिलाओं को एंड्रोमिट्रोसिस की समस्या होती है, तो 30 से 50 महिलाएं जिन्हें एंड्रोमिट्रोसिस की समस्या है, बांझपन की समस्या से जूझ रही हैं। बांझपन से परेशान महिलाओं (48 प्रतिशत) में एंड्रोमिट्रोसिस के मामले सबसे ज्यादा हैं। हालांकि एंड्रोमिट्रोसिस की समस्या से महिलाएं काफी परेशान होती हैं लेकिन यह समस्या तभी सामने आती है, जब उन्हें गभर्धारण में दिक्कत आती है। यह जरूरी नहीं कि यह समस्या बांझपन से जूझ रही हर महिला में हो किन्तु बच्चे न होने के कारणों में यह सबसे ऊपर है।
सवाल: बच्चा पैदा करने की सही उम्र क्या है?
जवाब: 30 साल से अधिक आयु की महिलाओं में अंडे कम बनते हैं, उनकी क्वॉलिटी भी अच्छी नहीं होती है, जिसमें गभर्पात और बच्चों में जन्मजात खराबी का खतरा बना रहता है। अधिकतर महिलाओं में यह बांझपन की सबसे प्रमुख वजह बनता है। इसके अलावा बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं में कई स्वास्थ समस्याएं भी हो जाती हैं, जिससे भी फर्टिलिटी प्रभावित होती है। ऐसे में महिलाओं को 30 साल से पहले मां जरूर बनने की कोशिश करनी चाहिए। जो महिलाएं अच्छी डाइट लेती हैं, शारीरिक रूप से सक्रिय रहती हैं, अपने वजन को नियंत्रित रखती है, उनमें बांझपन का खतरा 50 प्रतिशत तक कम हो जाता है। । विज्ञान और तकनीक की नई खोजों और विकास के कारण कृत्रिम प्रजनन तकनीक की सफलता का प्रतिशत भी बढ़ रहा है।
नई तकनीक भर देती है सूने आंगन में किलकारियां
बांझपन की दिक्कत से न सिर्फ दंपतियों को सामाजिक प्रताड़ना रहता है, बल्कि कई बार दोनों के आपसी निजी रिश्तों में भी खटास आने का डर रहता है। लेकिन इस तरह की समस्या होने पर घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि इस समस्या का भी समाधान चिकित्सा के क्षेत्र में है। आधुनिक मेडिकल तकनीकों के इस दौर में इसका सबसे उम्दा उपाय है आईवीएफ (इन विट्रो फटिर्लाइजेशन) है। इस तकनीक के जरिए कई नि:संतान दंपतियों को संतान सुख मिला है और इस तकनीक की सफलता 70 से 80 प्रतिशत तक है।
आई.वी.एफ. मूलत एक सहायक प्रजनन तकनीक है, इसके अंतर्गत प्रयोगशाला में पुरुष के शुक्राणु और स्त्री के अंडा निषेचन संयुक्त किए जाते हैं। फिर भ्रूण बनने के बाद स्त्री के गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है। यह तकनीक उन दंपतियों के लिए आशा की किरण है, जिनमें पुरुष के शुक्राणुओं की संख्या कम होती है। आजकल कई महिलाएं युवावस्था में अपने अंडों को आधुनिक तकनीक की मदद से फ्रीज करवा लेती हैं, ताकि जब वह मां बनना चाहें तो अच्छी क्वॉलिटी वाले अंडों का गर्भधारण में उपयोग किया जा सके।