फिकरेबाजीः तेजी से पनपता एक गंभीर मर्ज

खूबसूरती की प्रशंसा करना मानव स्वभाव है, लेकिन असभ्य आचरण और सीमा के अतिक्रमण ने खूबसूरती की प्रशंसा में छिपे एक सौंदर्य को नष्ट कर दिया है। जो शब्द किसी लड़की का सड़क पर चलना दूभर कर दे और जो शब्द किसी लड़की के मान सम्मान को छिन्न-भिन्न कर नश्तर की तरह उसके दिल में चुभ जाए वह खूबसूरती की प्रशंसा में कहे गए शब्द नहीं हो सकते हैं। उन शब्दों में ऐसा बल भी नहीं होता है जो लड़की को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। सिर्फ लड़के ही नहीं, कई बार लड़कियां भी दब्बू टाइप लड़कों पर फिकरेबाजी कसती हैं। उन्हें छेड़ती भी हैं।
फिकरा एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ आज की युवा पीढ़ी खूब समझती है। इसका इस्तेमाल भी हमारी युवा पीढ़ी रोजमर्रा की चीजों की तरह करती है। वह लड़कियां जो कामकाजी हैं और आमतौर पर जिन्हें घर से बाहर रहना पड़ता है, वह भी इस शब्द के अर्थ से भली-भांति परिचित हैं, क्योंकि इसका शिकार वही सबसे ज्यादा होती हैं। किसी खूबसूरत चेहरे को देखा नहीं कि फिकरेबाजी शुरू हो जाती है।
यह मानव का स्वभाव है कि वह किसी भी खूबसूरत चीज को देखता है तो उसके होठों से प्रशंसा के दो वह बोल फिसल ही पड़ते हैं। जरूरत है तो खूबसूरती का सही आकलन करने की, जिसमें असभ्यता का कहीं नामोनिशान नहीं होना चाहिए। इंसान जब ताजमहल या वृंदावन गार्डन जैसी खूबसूरत चीजों को देखता है तो उसके होंठ खुद उसकी प्रशंसा में खुल जाते हैं। उसी तरह किसी खूबसूरत लड़की को देखकर किसी युवा का दिल धड़कना और उसकी खूबसूरती पर प्रशंसा के दो शब्द बोलना नाजायज नहीं है, लेकिन समय के साथ प्रशंसा के इन दो बोल के मायने अब बदल गए हैं। आजकल खूबसूरती की प्रशंसा में घटिया शब्दों का इस्तेमाल होने लगा है जिसे सुनकर वितृष्णा होती है। मजनुओं के मुंह से निकलने वाले फिकरे ज्यादा घटिया और सीमा के बाहर होते हैं। ऐसे ऐसे वाक्यों का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है जिसे लिख पाना भी मुमकिन नहीं है।
दरअसल फिकरा शब्द बड़ी तेजी से हमारी युवा पीढ़ी पर हावी होती जा रही है। सहज और सरल अंदाज में घटिया फिकरेबाजी को सुंदरता की प्रशंसा में कहे गए शब्दों मान लेना असभ्यता का परिचायक होता है। एक महाशय का यह मानना है कि यदि कोई आपकी बीवी को देख कर सीटी बजाता है या फिर दो फिकरे कर देता है कोई से सुंदरता का प्रमाण-पत्र नहीं मान लेना चाहिए। एक और महाशय हैं जिनका यह मानना है कि फिकरेबाजी तो युवाओं का अधिकार है। अरे जवानी में लड़कियों को नहीं छोडेंगे तो क्या बुढ़ापे में छेड़ेंगे। ऐसे उत्तर से युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट होती जा रही है।
आमतौर पर किसी हद तक कोई युवक किसी युवती की प्रशंसा में दो शब्द तभी बोलता है जब वह उसे अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है। अपना जीवन साथी बनाने की हद तक गंभीर होता है। परंतु बदलते समय में इसके मायने बदल गए हैं। अब किसी युवक द्वारा किसी युवती की प्रशंसा सिर्फ भागने के उद्देश्य होती है। आज के माहौल में बहुत कम ऐसे उदाहरण मिलेंगे जब लड़कों ने प्रेम संबंधों को वैवाहिक संबंधों तक खींचा हो।
सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा क्यों और कब हुआ? जब खूबसूरती की प्रशंसा कहे जाने वाले सीमाबद्ध शब्दों का स्थान शुद्ध रूप से फिकरेबाजी ने ले लिया। फिकरेबाजी खूबसूरती की प्रशंसा में कहे गए शब्दों का मापदंड बनती चली गई। कौन है इस सब के लिए दोषी? क्या सिर्फ लड़के या सिर्फ लड़कियां या फिर आधुनिकता और पश्चिमी समाज का अंधानुकरण करने की होड़। क्या इसके लिए दिनों-दिन निर्लज्ज होता जा रहा हमारा समाज दोषी है अथवा फिल्मों का असर हो रहा है। दरअसल सामाजिक परिवर्तन हमारे सोच को एक गलत दिशा की तरफ मोड़ रही है। परिवर्तित होते समाज की जो इच्छाएं और आकांक्षाएं होती हैं वह हम पूरी तरह नहीं कर पा रहे हैं।
परिवर्तन के नाम पर अपने अस्तित्व को गिरवी रखते जा रहे हैं। अपनी अस्मिता और अपने गौरव पर ऐसे समाज के नियम और कानून लादे जा रहे हैं, जिससे हमारा दूर-दूर का वास्ता नहीं है। जो हमारे अनुकूल कतई नहीं है। फ़िकरेबाजी के लिए यदि फिल्मों को दोषी ठहराया जाए तो गलत नहीं होगा। आज धड़ल्ले से प्रेम कहानियों पर आधारित फिल्में बन रही हैं जिसमें सड़क छाप मजनू भद्दे अंदाज में नायिका के सामने अपने प्रेम का इजहार करता है। नायिका बकायदा हंसकर उसकी हो जाती है। इस तरह की फिल्मों ने भी युवा पीढ़ी पर खासा असर डाला है। फ़िकरेबाजी को प्रोत्साहित किया है।
इन दिनों फिकरेबाजी और प्रेम के जाल में कहे गए घटिया शब्द ही प्रेम का मापदंड बन चुके हैं। फिकरेबाजी का कम होना तभी संभव है जब आज के युवा समझें कि प्रेम के इजहार के लिए यह उचित तरीका नहीं है। यह काफी हद तक लड़कियों को नागवार लगने वाला तरीका है। शब्दों के वाण से अपने मान-सम्मान को नष्ट करने वाले किसी भी युवा के प्रेम को स्वीकार कर लेना किसी भी युवती के लिए संभव नहीं है।
युवतियों को भी इस बारे में खासी सावधानी बरतनी होगी। उन्हें ध्यान रखना होगा कि उनकी छोटी सी हरकत फिकरेबाजी और फिकरेबाजों को खुश करने वाली ना हो। कभी-कभी हल्की सी हंसी या किसी फिकरेबाज को आंख भर देखने से युवक, लड़की की ओर आकर्षित हो जाते हैं। इस तरह एक गलत परंपरा की बेल चलती है। इसलिए फिकरेबाजी को निरुत्साहित करने के लिए युवतियों का सचेत रहना बेहद जरूरी है। तभी इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है, वरना आने वाले समय में सड़कछाप मजनू के लिए फिकरबाजी एक अस्त्र की तरह होगी, जिसका इस्तेमाल युवतियों के मान-सम्मान को छिन्न-भिन्न करने के लिए धड़ल्ले से किया जाएगा।