बनारस के फनकार हैं ‘खोसला रघु’ के नाम से मशहूर ऋषभ रघुवंशी, जिनके नगमों के दीवाने हैं रील बनाने वाले यूथ
खोसला रघु के गीतों में ऐसी ऊर्जा, जो गमों को भुला देती है
आलेखः विजय विनीत
(वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)
मुहब्बत के अलग कुछ अंदाज होते हैं
जागती आंखों के भी कुछ ख्वाब होते हैं।
जरूरत नहीं कि गम में आंसू ही निकलें
मुस्कुराती आंखों में भी सैलाब होते हैं।।
जिंदगी में ऐसे लम्हे जरूर आते हैं जब दे जाते हैं एक गहरा जख्म। ऐसा जख्म जिसका एहसास सालों साल सालता है। हया का इल्म न हो तो बेदर्द जमाने में दर्द कोई भी दे सकता है। तब काम आते हैं खोसला रघु के दर्द भरे गीत। वही खोसला रघु जिनके नगमों का दीवाना है दुनिया भर के युवाओं का हुजूम। जानते हैं क्यों? मुहब्बत में धोखा खाने के बाद जब दिल टूटता है तब उस दर्द का इलाज कहीं नहीं होता। तब काम आती है खोसला रघु की म्युजिक थिरैपी। गीत-संगीत की थिरकती ऐसी थिरैपी जो दिलों में उतरकर मन में समा जाती है। दर्द पर असर करती है मरहम की तरह। खोसला रघु के गीतों में ऐसी ऊर्जा है जो गमों को भुला देती है।
दरअसल, संगीत की दुनिया में खोसला रघु एक सितारे की तरह चमक रहे हैं। इनका चर्चित गीत “बरसे मोरे नैना…” इन दिनों हर युवाओं की जुबां पर है। गजब की कशिश भरी इनकी आवाज और रूमानियत भरे गीतों ने संगीत प्रेमियों को दीवाना बना दिया है। खोसला रघु अब देश के कुछ चुनिंदा गायकों में गिने जाने लगे हैं।
कौन हैं खोसला रघु?
परंतु, खोसला रघु के दीवानों को शायद यह नहीं मालूम कि ये शख्स आखिर कौन हैं? दरअसल, इस नाम के पीछे दो प्रतिभाशाली लोग छिपे हैं-ऋषभ रघुवंशी और संचित खोसला। बनारस के मूल निवासी ऋषभ रघुवंशी, लंदन से अकाउंट और प्रबंधन की डिग्री लेकर लौटे और फिर गीत-संगीत की दुनिया में रंग गए। उनके साथी संचित खोसला उनके लिरिक्स को अपने संगीत से सजोने लगे।दोनों ने मिलकर अपने नाम को जोड़कर नया नाम दिया है-खोसला रघु।
ऋषभ रघुवंशी का पारिवारिक परिचय भी कम दिलचस्प नहीं है। उनके पिता रतन सिंह पूर्वांचल के जाने-माने सफल कारोबारी हैं। इनके बड़े पिता नरेंद्र सिंह चंदौली जिले के पर्वतीय इलाके नौगढ़ के ब्लॉक प्रमुख हुआ करते थे, उस समय जब वहां डकैत और नक्सलियों का साम्राज्य था। नरेंद्र सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं; कई साल पहले कैंसर की बीमारी के कारण उनका निधन हो गया था। श्री नरेंद्र सिंह जी से मेरे दिल का रिश्ता था। पत्रकारिता की मंजिल पर चढ़ने के लिए उन्होंने ही हमें एक मंत्र दिया था, “डरो मत।” पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में हमें ईमानदारी और साहस की सीख भी उनसे ही मिली थी, जिस पर मैं आज भी चल रहा हूं।
हमें गर्व है कि ऋषभ रघुवंशी, बनारस से निकलकर गीत-संगीत की दुनिया के क्षितिज पर छा गए हैं। उनके गीतों में जो कशिश और भावनाएं हैं, वह श्रोताओं के दिलों को छू जाती हैं। ऋषभ और संचित की जोड़ी ने यह साबित कर दिया है कि मेहनत और प्रतिभा का सही मेल हो तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
मोहक धुनों से दर्द का इलाज
बनारस की सरजमीं से निकलकर दुनिया भर में धूम मचाने वाले ऋषभ रघुवंशी और उनके मित्र संचित खोसला ने तमाम ऐसे गीतों की रचना की है जो प्यार में धोखा खाए लोगों का सटीक इलाज करती है। अपने मोहक गीतों से दुनिया की सैर कराने वाले खोसला रघु मानते हैं कि किसी के आने या फिर छोड़कर जाने से जिंदगी कभी नहीं रुकती। यह सच है कि बांटने से दर्द कम होता है और बांटने से बढ़ती हैं खुशियां। दर्द बांटने की कूबत को सिर्फ संगीत में है और खोसला रघु के रुमानियत भरे गीतों में है।
खोसला रघु संगीत की दुनिया के ऐसे सितारे हैं जिन्होंने अपने कंठ के जादू से उन लोगों को बड़ी राहत दी है जिनका दर्द से अटूट नाता रहा है। यकीन कीजिए, यह युगल जोड़ी अब टूटे हुए और जख्म खाए दिलों का इलाज कर रही है। अपने मोहक धुनों से जख्म और दर्द का इलाज करने का अनूठा प्रयोग कर रही है।
खोसला रघु मानते हैं कि शास्त्रीय संगीत के राग दो आत्माओं के बीच के अंतर को मिटा देते हैं। दर्द पर काबू पाने के लिए संगीत से बेहतर और कोई दोस्त नहीं। यह दुनिया का ऐसा खजाना है जिसमें ईश्वर का उपहार और पैगंबरों की कला समाहित है। वो कहते हैं—
संगीत के इस खुलूस को हम ढूंढते कहां,
अच्छा हुआ ये खुद ही लहू में उतर गया
पार्श्व गायक खोसला रघु कहते हैं कि संगीत की भाषा समूची दुनिया समझती है। यह जीवन की आवाज और इंसान के लिए बड़ा गहना है। इसके बगैर जीवन खाली है और जिंदगी रेगिस्तान की यात्रा के समान है। जो संगीत से प्यार करते हैं वो सपनों में चरम आनंद हासिल कर सकते हैं।
हर वक्त फिजाओं में तुम महसूस करोगे
प्यार की खुशबू में महकूंगा जमानों तक।
खोसला रघु प्रयोगवादी कलाकार
दरअसल, खोसला रघु ऐसे गीतकार नहीं जिन्होंने दुनिया के किसी नामी फनकार से गंडा बंधवाकर अथवा किसी संगीत के कालेज में जाकर डिग्री ली हो। संगीत खुद ही इनके दिलों अवतरित हुआ। दरअसल, ऋषभ रघुवंशी और संचित खोसला दोनों ही प्रयोगवादी कलाकार हैं। वो अपने अनुभवों से मनमोह गीतों की रचना करते रहते हैं। इन्होंने अपने गीतों में एक अनूठी रुमानियत विकसित की है, जिसे हम किसी खास शैली का नाम नहीं दे सकते। इतना जरूर है कि इनके कंठ का जादू इन्हें अद्वितीय बनाता है।
खोसला रघु की लयकारी का कोई जवाब नहीं है। वो जब कोई भी गीत गाते हैं तो राग श्रोताओं की आत्मा को छू जाते हैं और मन को झनझना देते हैं। रील बनाने वाले युवाओं में खोसला रघु के गीतों के प्रति गजब की दीवानगी है। इनके यू-ट्यूब का लिंक दिया जा रहा है जिन्हें डाउनलोड कर सुना जा सकता है। यकीन है कि इनकी आवाज और संगीत का जादू हमेशा श्रोताओं के दिलों में बसा रहेगा।