स्पेशल रिपोर्टः बनारस का प्रतिष्ठित कबीर मठ बना धोखाधड़ी का अड्डा, गुरु–शिष्य पर दस लाख की ठगी का केस दर्ज-दोनों फरार, यौन शोषण के मामले में महंत विवेकदास जा चुके हैं जेल !

स्पेशल रिपोर्टः बनारस का प्रतिष्ठित कबीर मठ बना धोखाधड़ी का अड्डा, गुरु–शिष्य पर दस लाख की ठगी का केस दर्ज-दोनों फरार, यौन शोषण के मामले में महंत विवेकदास जा चुके हैं जेल !

विजय विनीत

कभी संत कबीर की निर्विकल्प भक्ति का केंद्र रहा उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित कबीरचौरा मठ इन दिनों सनसनीखेज विवादों के घेरे में है। मठ के मूलगादी महंत विवेक दास और उनके शिष्य प्रमोद दास पर दस लाख रुपये की ठगी, जालसाजी और जान से मारने की धमकी जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। शिवपुर थाने में न्यायालय के आदेश पर दोनों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है। शिकायतकर्ता का कहना है कि पहले पुलिस ने मामले को अनदेखा किया, लेकिन कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 30 मई 2025 को FIR दर्ज की गई। अब दोनों आरोपी फरार बताए जा रहे हैं।

पीड़ित सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कुमार मिश्रा, जो जौनपुर के मड़ियाहूं थाना क्षेत्र के भदिखन गांव निवासी हैं, ने बताया कि वे वर्षों से कबीर मठ से जुड़े रहे हैं और इसी नाते उनका भरोसा महंत विवेक दास और प्रमोद दास पर था। उन्होंने कबीर मठ, कादीपुर (शिवपुर) परिसर में बने 10 कमरे और एक दुकान तीन वर्षों के लिए लीज पर लेने की बात की थी। महंत ने स्वयं को संपत्ति का स्वामी बताते हुए खतौनी और पावर ऑफ अटॉर्नी के दस्तावेज दिखाए, जिसके आधार पर 10 लाख रुपये की डील तय हुई। प्रमोद दास ने यह कहते हुए जल्दबाजी की कि डीड जल्द रजिस्टर्ड होनी चाहिए। संतोष ने कई किश्तों में रकम दी। 23 सितंबर 2024 को डीड तैयार हुई और चाबियां सौंप दी गईं। इसी दौरान उनसे अतिरिक्त 50 हजार रुपये और लिए गए।

संतोष जब 19 मई 2025 को दुकानों की मरम्मत करा रहे थे, तभी विकास अग्रवाल और प्रदीप सोनकर वहां पहुंचे और काम रुकवा दिया। दोनों ने 1 मार्च 2024 की एक नोटोरियल डीड दिखाई, जिसके अनुसार वही कमरे और दुकानें पहले ही उन्हें शिष्य प्रमोद दास द्वारा सौंप दी गई थीं। इस पर जब संतोष ने महंत से बात की, तो उन्होंने रजिस्टर्ड डीड को वैध बताया और काम जारी रखने को कहा। लेकिन जब संतोष ने मामले की तहकीकात की, तो यह स्पष्ट हुआ कि एक ही संपत्ति को दो बार अलग-अलग लोगों को सौंपा गया है। जब संतोष ने अपने पैसे वापस मांगे, तो प्रमोद दास ने न केवल इनकार कर दिया बल्कि जान से मारने की धमकी भी दी।

शिकायत के बावजूद शिवपुर पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की। 24 मई को पुलिस कमिश्नर कार्यालय में प्रार्थना-पत्र देने पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंततः संतोष को न्यायालय का सहारा लेना पड़ा, जिसके आदेश पर यह मुकदमा दर्ज हुआ। शिवपुर थानाध्यक्ष राजू कुमार ने पुष्टि की कि कोर्ट के आदेश पर विवेक दास और प्रमोद दास के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और धमकी देने जैसी धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। दोनों अभियुक्त फरार हैं और पुलिस उनकी तलाश में जुटी हुई है।

संतोष मिश्रा जी ने पुलिस से बार-बार गुहार लगाई, थाना शिवपुर में सूचना दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। मजबूरी में उन्होंने पुलिस कमिश्नरेट वाराणसी के संयुक्त पुलिस आयुक्त से भी गुहार लगाई। वहां भी कोई सुनवाई न होने पर उन्होंने न्यायालय की शरण ली। अदालत के आदेश पर FIR दर्ज की गई जिसमें धारा 316(2), 318(4), 319(2), 336(3), 338, 340(2), 351(3) BNS, 2023। लगाया गया। इन धाराओं का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह केवल एक साधारण ठगी या कूटरचना का मामला नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय जीवन के सबसे नाजुक पहलुओं को झकझोरा गया है।

कबीर मठ के महंत और शिष्य के खिलाफ दर्ज धाराएं बताती हैं कि आरोपियों ने केवल पैसे का बलिदान नहीं किया, बल्कि पीड़ित की आत्मा को भी चोट पहुंचाई है। आर्थिक लूट के साथ-साथ वे मानवीय सम्मान को भी दरकिनार कर गए हैं, जिससे पीड़ित की जिंदगी मानसिक और भावनात्मक रूप से बुरी तरह प्रभावित हुई है। यह मामला हमारी संवेदनाओं को झकझोरता है, क्योंकि इसमें अपराध के हर रूप ठगी, छल, अपमान और मानसिक यातना का समावेश है।

इन धाराओं के तहत केस दर्ज होना न्याय व्यवस्था की उस संवेदनशीलता को दर्शाता है जो केवल कागजों पर अपराध दर्ज करने तक सीमित नहीं, बल्कि पीड़ित के जख्मों को समझने और उन्हें भरने का प्रयास भी है। यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी बनती है कि हम ऐसे मामलों में पीड़ितों के दर्द को महसूस करें और उनके सम्मान की रक्षा के लिए आवाज़ उठाएं। यह मामला हमें बताता है कि अपराध केवल आर्थिक हानि तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह इंसान की सबसे गहरी भावनाओं और आत्मसम्मान को भी चोट पहुंचाता है। ऐसे मामलों में न्याय की अपेक्षा सिर्फ सज़ा देने से नहीं, बल्कि पीड़ितों के पुनर्वास और समाज में समान सम्मान के अधिकार को बहाल करने से पूरी होती है।

आध्यात्मिक धरोहर में उठता रहा है विवाद

वाराणसी के हृदय में स्थित प्रतिष्ठित धार्मिक स्थल “श्री सदगुरु कबीर मंदिर, कबीरचौरा मठ” इन दिनों न केवल आध्यात्मिक श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि एक गहन कानूनी और सामाजिक बहस का विषय भी बन गया है। यह विवाद तब सुर्खियों में आया जब मीडिया में यह मुद्दा उछला। रिपोर्ट में बताया गया था था कि मंहत और उनके शिष्य किस तरीके से मठ की जमीनों को भूमाफिया के हवाले करते जा रहे हैं। इस खुलासे के बाद मामला उच्च न्यायालय तक पहुंचा और व्यापक न्यायिक प्रक्रिया का आरंभ हुआ।

मठ के वर्तमान महंत विवेक दास और उनके कथित उत्तराधिकारी प्रमोद दास पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं, जिनमें ज़मीन की अवैध बिक्री, जाली दस्तावेजों का प्रयोग और समिति चुनावों में धांधली प्रमुख हैं। मठ की प्रतिष्ठा को झकझोर देने वाले इन आरोपों में यह भी उल्लेख है कि फर्जी हस्ताक्षरों और असत्यापित दस्तावेज़ों के माध्यम से समिति की बैठकों और निर्णयों को वैध ठहराने का प्रयास किया गया।

श्री सदगुरु कबीर मठ का पंजीकरण 13 फरवरी 1975 को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत हुआ था। वर्ष 1987 में संस्था का नाम परिवर्तित कर “श्री सदगुरु कबीर मंदिर, कबीरचौरा मठ” कर दिया गया। मठ के सुचारु संचालन हेतु तीन प्रशासनिक इकाइयों की स्थापना की गई, साधारण सभा, प्रबंधन समिति, और सहायक निरीक्षण मंडल।

साल 1999 में विवेक दास को मठ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। किंतु समय के साथ उनके कार्यकाल पर प्रश्न उठने लगे। आरोप लगाए गए कि उन्होंने न केवल मठ की संपत्तियों को निजी हित में बेचना प्रारंभ किया, बल्कि समिति के चुनावों में भी मनमानी की। वर्ष 2011-12 में सहायक पंजीयक द्वारा उनके विरुद्ध आदेश पारित किए गए थे।

इस सबके बावजूद 24 जून 2024 को फर्म, सोसाइटीज और चिट्स कार्यालय, वाराणसी के सहायक पंजीयक ने विवेक दास को मठ की सोसाइटी का अध्यक्ष मानते हुए नवीकरण प्रमाण-पत्र जारी कर दिया। इस निर्णय को चुनौती देने हेतु आचार्य महंत विचार दास एवं समिति के अन्य तीन सदस्यों  देव शरण दास (सचिव) और गोपाल दास (सदस्य) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली।

याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि यह चुनाव पूरी तरह से अवैध था और उसकी संपूर्ण प्रक्रिया संस्था के नियमों के प्रतिकूल थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि समिति की बैठकों के रिकॉर्ड में फर्जी हस्ताक्षरों का सहारा लिया गया, जिससे कार्यवाही को वैध रूप देने की कोशिश की गई। मठ के भीतर हुए वित्तीय लेन-देन पर भी गंभीर सवाल उठे हैं, जिसमें पारदर्शिता का अभाव, गबन और स्वार्थसिद्धि की आशंका व्यक्त की गई है। इससे मठ की आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

इस संदर्भ में, वाराणसी की सिविल कोर्ट ने 11 मई 2023 को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश पारित किया था, किंतु इस आदेश की अवहेलना करते हुए सहायक पंजीयक द्वारा विवेक दास के पक्ष में नवीकरण प्रमाण-पत्र जारी किया गया। यही कारण रहा कि पुनः हाईकोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई गई। माननीय न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने 3 दिसंबर 2024 को सुनवाई करते हुए स्पष्ट आदेश दिया कि मठ की वर्तमान स्थिति में कोई परिवर्तन न किया जाए और यथास्थिति बनाए रखी जाए।

जमीन की बिक्री रोकें :  हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया था कि मठ की संपत्तियों के प्रबंधन और अधिकारों में किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा। लंबे समय से यह धार्मिक स्थल विवादों के केंद्र में रहा है, जहां दो अलग-अलग महंतों विवेक दास और विचार दास के बीच संपत्ति को लेकर खींचतान जारी है। मठ से जुड़ी कई कीमती संपत्तियों की खरीद-फरोख्त ने इसे और पेचीदा बना दिया है।

पिछले साल शिवपुर के कादीपुर में मठ की एक महंगी जमीन को विवेक दास के उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने कौड़ियों के दाम पर बेच दिया था। इसके अलावा, सदर तहसील के बखरिया गांव में स्थित एक अन्य करोड़ों की संपत्ति को भी विचार दास ने सिर्फ एक करोड़ रुपये में बेचने का सौदा किया। वहीं विवेक दास पर भी ऐसे ही सौदों के आरोप लगते रहे हैं। जेल से छूटने के बाद उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर प्रमोद दास की पावर ऑफ अटॉर्नी रद्द करने और किए गए सौदों को निरस्त करने की बात कही, लेकिन उन्होंने अभी तक कोई ठोस जानकारी सार्वजनिक नहीं की है।

आरोप है कि प्रमोद दास ने कादीपुर की जमीन महज कुछ लाख रुपये में पाटलिपुत्र रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक विवेक कुमार कुशवाहा के नाम रजिस्टर्ड सट्टा किया। यह सौदा बिना न्यायालय की अनुमति के किया गया। इसी तरह, महंत विवेक दास जब जेल में थे, उस दौरान प्रमोद दास ने मठ की 20 बिस्वा जमीन महेंद्र कुमार मिश्र को किराए पर देने का अनुबंध किया।

महंत विवेक दास पर गंभीर आरोप लगाते हुए संत प्रह्लाद दास ने दावा किया कि उन्होंने 50 अरब रुपये की मठ संपत्ति को अपने निजी ट्रस्ट के नाम दर्ज करा लिया और विदेश भागने की फिराक में हैं। इसी आधार पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नितेश कुमार के आदेश पर चेतगंज थाने में विवेक दास समेत 9 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। इसमें नगर निगम के कर्मचारी और ट्रस्ट के सदस्य भी शामिल हैं।

संपत्ति घोटालों के खुलासे के बाद चंदौली के सांसद वीरेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा कि यह मुद्दा संसद में उठाया जाएगा और कबीर की विरासत को सुरक्षित रखने के लिए हर संभव कदम उठाया जाएगा। बनारस के लहरतारा स्थित मठ के पीठाधीश्वर गोविंद दास ने सरकार से मांग की कि मठ में हुए घोटालों की जांच कराई जाए और जरूरत पड़ी तो रिसीवर नियुक्त किया जाए या संपत्ति को सरकार अधिग्रहण कर ले। मठ की कुटिया को विवाह आयोजनों के लिए एक पूर्व पार्षद को पैसे लेकर ठेके पर देना, साधुओं के साथ मारपीट और फर्जी मुकदमों में फंसाना ये सब गंभीर आरोप हैं, जिन पर निष्पक्ष जांच की ज़रूरत बताई गई है।

यौन उत्पीड़न से लेकर धोखाधड़ी तक

वाराणसी के प्रतिष्ठित श्री सद्गुरु कबीर मंदिर कबीरचौरा मठ मूलगादी के महंत विवेक दास पर इस साल मई 2024 में एक दलित महिला ने अश्लील हरकतों का आरोप लगाया था, जिसके बाद उन्हें जेल भेजा गया। महिला का आरोप था कि साल 2022 में ही महंत ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसके साथ अभद्र टिप्पणी की थी। मामला एससी-एसटी कोर्ट पहुंचा, जहां से वारंट जारी होने पर महंत को गिरफ्तार किया गया और जेल भेजा गया।

इसी दौरान जब विवेक दास जेल में थे, तब उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने मठ की करीब 20 बिस्वा जमीन बेचने के लिए रजिस्टर्ड सट्टा कर दिया। बताया जाता है कि संस्था की 157 बिस्वा जमीन को शिवपुर में मात्र 10,000 रुपये प्रति माह के किराये पर महेंद्र कुमार मिश्र नामक व्यक्ति को दिया गया। बरहीकला नेवादा निवासी यह व्यक्ति 24 जून 2024 को किए गए रजिस्टर्ड सट्टे में गवाह भी बना।

संत कबीर दास से जुड़े इस मठ की संपत्तियों को औने-पौने दामों पर बेचने का सिलसिला नया नहीं है। कबीर मठ से जुड़े 80 वर्षीय बाबा प्रह्लाद दास ने महंत विवेक दास पर मठ की 50 अरब रुपये की संपत्ति को अपने निजी ट्रस्ट के नाम करने का आरोप लगाया था। उन्होंने जिला मजिस्ट्रेट को दिए प्रार्थना पत्र में आरोप लगाया कि विवेक दास विदेश भागने की फिराक में हैं। इस शिकायत पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नितेश कुमार ने सख्त रुख अपनाते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। इसके बाद चेतगंज थाने में विवेक दास समेत नौ लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी सहित कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया।

इस मुकदमे में विवेक दास के साथ ही रामदास, प्रमोद दास, डॉ. दीपक मलिक, त्रिभुवन प्रसाद, आनंद दास (रामनगर, सीतापुर) और नगर निगम चेतगंज वार्ड के कर अधीक्षक, सर्किल क्लर्क और इंस्पेक्टर शामिल हैं। प्रह्लाद दास के मुताबिक, विवेक दास 1993 में संस्था के 23वें आचार्य बनाए गए थे। उन्होंने जिला जज की अनुमति के बिना संस्था की कई संपत्तियों को बेच दिया। बाद में विवेक दास ने “सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मूलगादी” नाम से एक निजी ट्रस्ट बनाया और श्री सद्गुरु कबीर मंदिर सोसाइटी की संपत्ति इस ट्रस्ट के नाम दर्ज करा दी। इस कार्य में नगर निगम के कई कर्मचारी भी शामिल बताए जाते हैं।

प्रह्लाद दास के अनुसार, साल 1999 में विवेक दास को संस्था की जिम्मेदारी दी गई थी। उस समय ट्रस्ट के पास मात्र तीन लाख रुपये बैंक बैलेंस था। लेकिन 2005 में उन्होंने ट्रस्टी के रूप में कार्य करते हुए बिना अनुमति सोसायटी एक्ट की धारा-5 का उल्लंघन करते हुए कई शहरों और अन्य राज्यों की संपत्तियों को बेच दिया। 14 अक्टूबर 2010 को विवेक दास ने एक निजी ट्रस्ट बनाकर उसकी रजिस्ट्री कराई और सोसाइटी की जमीनें इस ट्रस्ट के नाम हस्तांतरित कीं।

प्रह्लाद दास ने सवाल उठाया कि आखिर कैसे बिना वैध प्रक्रिया के 50 अरब की संपत्ति नगर निगम के असेसमेंट रजिस्टर में इस ट्रस्ट के नाम दर्ज हो गई? उन्होंने आरोप लगाया कि आरोपों से बचने के लिए विवेक दास ने ट्रस्ट के अध्यक्ष और ट्रस्टी पद से इस्तीफा दे दिया और प्रमोद दास को महंत बना दिया। साथ ही दावा किया कि पूर्व महंत अब विदेश भागने की फिराक में हैं। विवेक दास ने मजिस्ट्रेट के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहा, “मुझे जानकारी नहीं थी कि संपत्ति बेचने से पहले जिला जज से अनुमति लेनी होती है, नहीं तो मैं ले लेता। अब मेरे शिष्य प्रमोद दास मठ की देखरेख कर रहे हैं।”

मठ की संपत्तियों की खरीद-फरोख्त का सिलसिला अभी भी थमता नजर नहीं आ रहा। हालांकि प्रमोद दास ने सभी आरोपों को नकारते हुए कहा कि मठ की किसी भी संपत्ति का दुरुपयोग नहीं हो रहा है और जो भी जमीनें विवादित हैं, उन्हें अतिक्रमण से मुक्त कराने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने इस प्रतिनिधि को बातचीत के लिए बुलाया, लेकिन खुद नदारद रहे। कई बार संपर्क की कोशिश की गई, लेकिन उनकी ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला। विवेक दास से एक मर्तबा मुलाकात हुई तो वो अपने एक शिष्य से पैर दबवा रहे थे।

परिचय देने पर वे भड़क गए और गाली-गलौज पर उतर आए। उन्होंने कहा, “मीडिया ने हमें शहर में नंगा कर दिया है। हम किसी से बात नहीं करेंगे और मठ में किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं घुसने देंगे जो हमारे खिलाफ दुष्प्रचार करता हो।” दूसरी ओर मगहर के मठाधीश विचार दास ने स्वीकार किया कि सारनाथ की जमीन बेचने के मामले में उनसे गलती हुई है, जिसे वह सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि जो कुछ हुआ, वह अज्ञानता के कारण हुआ।

पिछले साल राजस्थान के जोधपुर में भी विवेक दास के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज हुआ था। वहां भी उन पर धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोप दर्ज हुए थे। उक्त शिकायत जोधपुर के फतेहसागर स्थित कबीर आश्रम के महंत राजेंद्र दास ने दर्ज कराई थी और आरोप लगाया था कि उनके गुरु प्रह्लाद दास के ब्रह्मलीन होने के बाद उन्हें आश्रम का महंत बनाया गया, लेकिन उज्जैन के चेतन दास ने काशी के विवेक दास के साथ मिलकर उनकी महंती को निरस्त करने का फर्जी दस्तावेज तैयार कराया। राजेंद्र दास का कहना था कि जब विवेक दास ने उन्हें महंत घोषित ही नहीं किया था, तो हटाने का अधिकार उन्हें कैसे मिल गया?

बेच नहीं सकते कबीर मठ की ज़मीन

लहरतारा स्थित प्राचीन संत कबीर प्राकट्य स्थल के महंत गोविंद दास शास्त्री ने इस प्रतिनिधि से बातचीत में संत कबीर की संपत्तियों की हो रही खरीद-फरोख्त को लेकर गहरी चिंता जताई। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “जो गलत है, वह गलत है। अगर हम कुछ बना नहीं सकते तो हमें उसे बिगाड़ने का कोई अधिकार नहीं है। कबीर की परिसंपत्तियों को बेचने का किसी को अधिकार नहीं है। साल 2010 में महंत विवेक दास ने मठ की कुछ ज़मीनें बेची थीं और अब उनके शिष्य प्रमोद दास भी इसी राह पर हैं।”

महंत गोविंद दास के अनुसार, “कबीर की संपत्तियों पर योजनाबद्ध तरीके से डाका डाला जा रहा है और कबीर के अनुयायियों को इन गतिविधियों की कोई जानकारी नहीं दी जा रही। शिवपुर में जिस ज़मीन का सट्टा 24 जून 2024 को कराया गया था, उसकी बाज़ार कीमत करीब 20 करोड़ से अधिक है। पहले वहां अस्पताल बनाने की योजना थी, लेकिन दुबई के एक उद्यमी ने पीछे हट लिया। प्रमोद दास द्वारा बेची गई ज़मीन का सट्टा आज तक निरस्त नहीं किया गया है। कबीरचौरा मठ में कबीर म्यूज़ियम बनाने के लिए शासन द्वारा 25 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई थी, लेकिन विवेक दास ने यह कहकर मना कर दिया कि इससे मठ सरकारी हो जाएगा। गोविंद दास के अनुसार, बनारस के तत्कालीन कमिश्नर कौशलराज शर्मा ने इस विषय में कई बार बातचीत की थी, लेकिन प्रोजेक्ट को आगे नहीं बढ़ाया गया।”

वहीं लहरतारा स्थित प्रकट्य स्थल के लिए राज्य सरकार ने 8 करोड़ रुपये और 3 करोड़ के इंटरप्रिटेशन सेंटर की स्वीकृति दी है। गोविंद दास का कहना है कि, “जब मठ के विकास की चिंता होनी चाहिए, तब कुछ लोग संपत्तियों को प्रॉपर्टी डीलरों के हाथ औने-पौने दामों पर बेचने में लगे हैं। उन्होंने कबीरचौरा मठ की स्थिति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने बताया कि वहां न तो शौचालय हैं, न बैठने या ठहरने की व्यवस्था। आश्रम में बंदूकधारी गार्ड तैनात हैं और बिहार के एक सजायाफ्ता अपराधी को कबीर विद्यालय पर कब्ज़ा करा दिया गया है। विवेक दास और प्रमोद दास ने मिलकर मठ की अरबों की संपत्ति बेची है। बिजली का कनेक्शन कट जाने के बावजूद अवैध रूप से बिजली इस्तेमाल करते रहे हैं। आश्रम को वैवाहिक स्थल की तरह प्रयोग में लाया जा रहा है, जो कबीर की अस्मिता पर चोट है।”

महंत गोविंद दास कहते हैं, “जिन जमीनों की बिक्री की गई है, वे उत्तर प्रदेश सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा-05ए का उल्लंघन करते हुए बेची गई हैं। फिलहाल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखते हुए संपत्ति के किसी भी हस्तांतरण पर रोक लगा दी है। इसके बावजूद नियमों को ताक पर रखकर एक नया विक्रय अनुबंध प्रॉपर्टी डीलर विवेक कुशवाहा समेत कई प्रापर्टी डीलरों के साथ किया गया है। सभी फर्जी बैनामों को शून्य कराया जाना जरूरी है।

सरकार बचाए कबीर की संपत्ति

बनारस के समाजवादी चिंतक एवं संत कबीर में गहरी आस्था रखने वाले विजय नारायण इस बात से अत्यंत व्यथित हैं कि कबीर दास की अति महत्वपूर्ण संपत्तियों को बेचने की होड़ मची हुई है। वह कहते हैं, “इसे डकैती ही कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। विवेक दास हों या उनके शिष्य विचार दास, सभी ने कबीर मठ की संपत्तियों को भूमाफिया के हाथ कौड़ियों के भाव बेच दिया है, और यह अमानवीय सिलसिला अभी तक जारी है। कबीर मठ किसी एक व्यक्ति या परिवार की बपौती नहीं है, यह तो कबीर के अनुयायियों की आस्था और विश्वास का मंदिर है, जो सदियों से एक सांस्कृतिक व आध्यात्मिक धरोहर के रूप में प्रतिष्ठित है।”

“कबीरचौरा मठ का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अपार है। यह मठ केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि कबीर के जीवन दर्शन, उनके आदर्शों और शिक्षाओं का जीता जागता प्रतीक है। कबीर की शिक्षाओं ने समाज में व्याप्त पाखंड, अंधविश्वास और कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई, और समानता, प्रेम तथा सामाजिक एकता का मार्ग प्रशस्त किया। इसीलिए कबीर मठ की विरासत न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अमूल्य है। कबीर मठ में संजोई गई कबीर से जुड़ी मूर्तियां, तैल चित्र और अन्य सांस्कृतिक धरोहरें श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बनी हुई हैं। ये वस्तुएं केवल कलाकृतियां नहीं, बल्कि कबीर के संदेशों की जीवंत गवाही हैं, जो सदियों से मानवता को सत्य, प्रेम और न्याय की प्रेरणा देती आ रही हैं।”

विजय नारायण का कहना है, “कबीर के विचार और उनकी छुआछूत रहित, समता पर आधारित शिक्षाएं आज भी हमारे समाज के लिए प्रकाशस्तंभ हैं। परंतु हाल के वर्षों में कबीर मठ की संपत्तियों पर जिस प्रकार अवैध कब्जे और मनमानी हो रही है, वह न केवल धार्मिक आस्था के लिए घोर अपमान है, बल्कि सामाजिक एवं कानूनी रूप से भी गंभीर समस्या है। कबीर की विरासत की सुरक्षा के बजाय, उनकी नामी-गिरामी संपत्तियों पर ज़बर्दस्ती कब्जा करना और उन्हें बेचना निंदनीय कृत्य है। इस संदर्भ में तत्काल राज्य हित में रिसीवर नियुक्त कर, पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए तथा मठ की जमीनों की अवैध बिक्री को तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए।”

वह आगे कहते हैं, “कबीरचौरा मठ के संबंध में किसी विदेशी मठ या मंदिर का फोटो सार्वजनिक नहीं किया गया है। कबीर मठ की जमीन बनारस की जनता की है, जिसे जनता ने वर्षों से आर्थिक सहयोग दिया है और जो जमीनों की रक्षा कर रही है। यह जमीन किसी की निजी संपत्ति नहीं कि कोई मनमाने ढंग से उसे बेच दे। विवेक दास यदि सच्चाई की राह पर हैं, तो उन्हें मठ के दो दशकों से आय-व्यय की पूरी वित्तीय जानकारी जनता के सामने रखनी चाहिए। यदि सरकार को मठ में भ्रष्टाचार का कोई प्रमाण मिलता है, तो उसे तुरंत मठ को अधिग्रहित कर उचित कार्रवाई करनी चाहिए। काशी के लोग कबीर के प्रति गहरा सम्मान और श्रद्धा रखते हैं, और कबीर की आस्था के साथ किसी भी प्रकार का खिलवाड़ काशीवासी बर्दाश्त नहीं करेंगे।”

समाजवादी चिंतक विजय नारायण यह भी कहते हैं, “कबीर मठ की संपत्तियों की इस लूट-खसोट में बनारस के प्रभावशाली भूमाफिया सक्रिय हैं, जिनका राजनीतिक सत्ता पर भी प्रभाव है। ये भूमाफिया न केवल मठ की संपत्तियों की मनमानी कर रहे हैं, बल्कि अधिकारी वर्ग को भी प्रभावित कर रहे हैं। नियमों के विपरीत, विवेक दास और उनके शिष्य प्रमोद दास मठ की किसी भी संपत्ति को बेचने का कोई अधिकार नहीं रखते। हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर, वे मनमाने तरीके से सौदेबाजी कर रहे हैं।”

“कबीर, जिन्होंने जीवन भर गरीबी में रहते हुए भी संपत्ति की मोह नहीं की, उनके नाम पर बनी संस्था ‘कबीर मूलगादी मठ’ को मिली संपत्तियों को बेचने का न तो कोई कानूनी अधिकार है और न ही नैतिक। इस कृत्य का परिणाम उन्हें अवश्य भुगतना पड़ेगा। कबीर में आस्था रखने वाले लोगों को इस अन्याय और लूट के विरुद्ध आवाज उठानी होगी। इस मामले में प्रशासनिक एवं सरकारी हस्तक्षेप अनिवार्य है, अन्यथा कबीर का वह विराट व्यक्तित्व और उनकी सच्ची विरासत इतिहास की धूल में दफन हो जाएगी, जिससे देश और समाज को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी।”

कबीर की विरासत पर डाका

वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं कि, “बनारस केवल आस्था और अध्यात्म की नगरी नहीं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक चेतना और समाज सुधार की एक ऐतिहासिक धुरी रही है। सदियों से यहां की गलियों, घाटों और मंदिरों ने न केवल अध्यात्मिक ऊर्जा का संचार किया, बल्कि समाज में व्याप्त कुरीतियों और पाखंड के विरुद्ध आवाज़ भी उठाई। इसी धरती पर जन्मे संत कबीर दास ने अपने निर्भीक विचारों और सत्यवादी जीवन के माध्यम से समाज को प्रेम, समानता और न्याय का संदेश दिया। लेकिन दुर्भाग्यवश, जिन कबीर की शिक्षाओं ने समाज को नई दिशा दी, उन्हीं के नाम पर खड़े किए गए मठ और संपत्तियां आज अनैतिक सौदों और अवैध कब्जों की भेंट चढ़ रही हैं। जो मठ कभी आस्था का प्रतीक थे, वे अब भू-माफिया और मठाधीशों की मिलीभगत का अड्डा बनते जा रहे हैं।”

“कबीरचौरा मठ, जो एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है और जिसने स्वतंत्रता संग्राम में भी क्रांतिकारी गतिविधियों को संरक्षण दिया था, अब भ्रष्टाचार और घोटालों की जकड़ में है। आरोप है कि मौजूदा मठाधीशों ने इस धरोहर की करोड़ों की संपत्तियों को बाजार भाव से कहीं कम कीमतों पर निजी हाथों में बेच दिया। यह केवल संपत्ति का नहीं, बल्कि एक संपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर का क्षरण है। कबीर मठ की जमीनें और भवन केवल ईंट-पत्थर नहीं हैं, वे उन करोड़ों अनुयायियों की श्रद्धा और विश्वास का केंद्र हैं, जो कबीर की वाणी में जीवन का सत्य खोजते हैं। इन धरोहरों का इस प्रकार बेचा जाना और उन पर अवैध कब्जा जमाया जाना न केवल धार्मिक दृष्टि से गंभीर अपराध है, बल्कि यह सामाजिक और नैतिक रूप से भी एक गहरी चोट है।”

विनय मौर्य के अनुसार, “कबीर की विचारधारा का सार ही यह था कि संपत्ति, दिखावा और पाखंड से परे जाकर मनुष्य को सत्य, सेवा और समभाव में जीवन जीना चाहिए। लेकिन विडंबना यह है कि आज उन्हीं के नाम से चलने वाले मठ उनकी शिक्षाओं को ताक पर रख, निजी स्वार्थ की पूर्ति के केंद्र बन गए हैं। प्रॉपर्टी डीलरों और कुछ महंतों के बीच की सांठगांठ न केवल कबीर मठ की गरिमा को कलंकित कर रही है, बल्कि शासन-प्रशासन की निष्क्रियता भी इस स्थिति को और गंभीर बना रही है। ऐसे में आवश्यकता है कि सरकार इस पूरे मामले में हस्तक्षेप करे, संपत्तियों की बिक्री की उच्चस्तरीय जांच कराए, और मठ की पूरी वित्तीय स्थिति को सार्वजनिक करे।”

“यह घटना न केवल धनराशि की ठगी का मामला है, बल्कि यह आस्था और विश्वास की हत्या भी है। जिस मठ को समाज को दिशा देने वाला माना जाता था, वहीं उसके प्रतिनिधि ने अपने भक्तों को ठगा। यह मामला कबीर मठ की छवि और वहां के आध्यात्मिक वातावरण पर भी सवाल खड़ा करता है। इसके अलावा, महंत विवेक दास का नाम पहले भी विवादों में रहा है। मई 2024 में उन्हें एक महिला से संबंधित अश्लीलता के गंभीर मामले में कोर्ट ने जेल भेजा था, जहां उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी और उनके खिलाफ वारंट जारी किया गया था। ऐसे कई मामले हैं जो महंत के चरित्र और उनकी साख पर सवाल उठाते हैं।”

वरिष्ठ पत्रकार विनय यह भी कहते हैं, “कबीर की धरोहर पर किसी भी प्रकार का डाका, केवल बनारस की संस्कृति ही नहीं, पूरे देश की आत्मा पर हमला है। जो लोग कबीर की शिक्षाओं से प्रेम करते हैं, उन्हें इस लूट और अनैतिकता के विरुद्ध संगठित होकर आवाज़ उठानी चाहिए। क्योंकि अगर कबीर को बचाना है, तो केवल उनकी कविताएं नहीं, उनकी विरासत और विचार भी बचाने होंगे। यह पूरा मामला समाज में एक बड़ा संदेश छोड़ता है कि धर्मस्थल और आध्यात्मिक संस्थान भी लालच और फरेब का केंद्र बन सकते हैं। जब गुरु और महंत जैसे आध्यात्मिक नेतृत्व में बैठे लोग अपने विश्वासियों को धोखा देते हैं, तो उनकी आस्था कहां सुरक्षित रह सकती है? कबीर के नाम और उनके संदेशों के बीच इस प्रकार की घटनाएं कब तक जारी रहेंगी? “

(कबीर दास की परिसंपत्तियों के फर्जीवाड़े के संबंध ने महंत विवेक दास और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास से उनका पक्ष जानने की कई बार कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अगर कोई जवाब आता है उनके पक्ष को भी स्टोरी के साथ अपडेट कर दिया जाएगा।)

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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