ये है कर्मनाशा, जिसका जल छूने से नष्ट हो जाते हैं इंसान के सारे ”पुण्य”…!!
@विजय विनीत
#उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में स्थित कर्मनाशा नदी एक अनोखी और रहस्यमयी धारा है, जो न केवल क्षेत्र की भूगोल और कृषि को प्रभावित करती है, बल्कि इसके साथ जुड़े मिथकों और कहानियों ने भी इसे लोगों की नजरों में खास स्थान दिया है। कर्मनाशा नदी का नाम सुनते ही एक विशेष प्रकार का कौतूहल मन में उठता है। इस नदी के बारे में कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं, जो इसे एक ओर रहस्य से भर देती हैं, तो दूसरी ओर इसके महत्व और प्रासंगिकता पर भी ध्यान आकर्षित करती हैं।
कर्मनाशा नदी का नाम ही अपने आप में एक गूढ़ता का आभास कराता है – ‘कर्म’ और ‘नाश’ के संयोजन से उत्पन्न। किंवदंती है कि इस नदी का पानी छूने से मनुष्य के सभी ‘पुण्य’ नष्ट हो जाते हैं। यह विश्वास आज भी इस नदी के बारे में लोगों की धारणा को प्रभावित करता है। धार्मिकता में डूबी इस भारतीय समाज में जहाँ गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी नदियों को पुण्य की धाराओं के रूप में देखा जाता है, वही कर्मनाशा को इसके विपरीत मनहूस और अशुभ माना जाता है। इस नदी का पानी लोग नहाने तक में हिचकिचाते हैं, और यहां तक कि सिक्के फेंकना भी अशुभ मानते हैं।
यह अजीबोगरीब मान्यता पीढ़ियों से यहां की मानसिकता में गहराई से जमी हुई है, और यह विचारधारा पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रही है। यह अंधविश्वास शायद समाज में सकारात्मक और नकारात्मक धारणाओं को चिन्हित करने की प्रवृत्ति का प्रतीक है, जहां हर चीज़ या तो ‘पवित्र’ या ‘अशुद्ध’ मान ली जाती है।
कर्मनाशा की हार
इस नदी के महत्व को समझने के लिए हमें प्रसिद्ध साहित्यकार शिव प्रसाद सिंह की कहानी ‘कर्मनाशा की हार’ की ओर रुख करना चाहिए। यह कहानी कर्मनाशा नदी के प्रतीकात्मक संघर्ष को दर्शाती है। सिंह ने इस कथा में कर्मनाशा के मिथकों के पीछे के सामाजिक और मानसिक जाल को बेहतरीन तरीके से उजागर किया है। ‘कर्मनाशा की हार’ केवल एक नदी की कहानी नहीं है, बल्कि यह जीवन की उन मान्यताओं का भी प्रतिनिधित्व करती है, जिनसे पार पाना कठिन होता है। कहानी एक मानसिकता को दर्शाती है जो पीढ़ियों से इस नदी के प्रति लोगों की नकारात्मक दृष्टि को मजबूती देती आई है।
किंवदंती के अनुसार, कर्मनाशा नदी में हर साल बाढ़ आती है, जो अपने साथ दो लोगों की जान अवश्य ले जाती है। यह मान्यता इसे और भी डरावना बनाती है। बाढ़ का प्रकोप और नदी का पानी गांवों और फसलों को नष्ट कर देता है, जिससे इसे लोग ‘मनहूस’ मानने लगे हैं। हालाँकि, यह प्राकृतिक आपदा का प्रतिफल है, जो नदी के साथ जुड़ी सामाजिक धारणाओं को और गहराई प्रदान करता है।
परंतु इसके साथ ही यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि बाढ़ के कारण इस क्षेत्र की भूमि उपजाऊ और पोषक बन जाती है। यह नदी ही है जो चंदौली को धान का कटोरा बनाती है, और अगर कर्मनाशा न होती, तो शायद यहां के लोग आज उस उपजाऊ भूमि और धान की खेती से वंचित होते। बाढ़ के बाद की उपजाऊ मिट्टी फसलों को पोषण देती है, और यही वजह है कि चंदौली जिले की पहचान एक कृषि प्रधान क्षेत्र के रूप में बनी हुई है।
कर्मनाशा: अंधविश्वास या वास्तविकता?
कर्मनाशा को मनहूस मानने का जो अंधविश्वास बना हुआ है, उसे समाप्त करना आज भी एक चुनौती है। जब हमने खुद इस नदी का पानी पिया और इसके किनारे समय बिताया, तो अनुभव किया कि यह नदी भी अन्य नदियों की तरह ही शुद्ध और निर्मल है। शायद इस नदी से जुड़े अंधविश्वास ने ही इसे मनहूस बना दिया है, जबकि यह नदी चंदौली के लिए वरदान स्वरूप है। इसके जल में वह शक्ति है जो क्षेत्र की फसलों को जीवन देती है, और इसके बिना चंदौली का समृद्धि का सपना अधूरा ही रह जाता।
हमारी सोच यह है कि कर्मनाशा जैसी नदियाँ प्राकृतिक संसाधन हैं, जो अपनी परिस्थितियों के बावजूद मानव-जीवन को प्रचुरता से उपहार देती हैं। उन्हें मनहूस या अशुभ मानकर उनसे दूरी बनाना न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अनुचित है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी हानिकारक है।
कर्मनाशा का वास्तविक अर्थ
कर्मनाशा नदी को मनहूस मानने और पुण्य खत्म होने का डर केवल अंधविश्वास है। यह केवल उस मानसिकता का प्रतीक है जो सदियों से समाज में फैली हुई है। कर्मनाशा एक जीवनदायिनी है, जिसने चंदौली को धान के कटोरे के रूप में पहचान दी है। हमारे लिए, कर्मनाशा नदी न केवल एक धारा है, बल्कि यह उस सांस्कृतिक संघर्ष का प्रतीक भी है, जो अंधविश्वास और वास्तविकता के बीच चलता है।
कर्मनाशा को एक अशुभ नदी मानने के बजाय, इसके महत्व को समझना और इसकी जीवनदायिनी शक्ति का सम्मान करना अधिक आवश्यक है। यदि पुण्य खो भी जाएं, तो यह नदी हमें जीवन के महत्व को फिर से सोचने और समझने का अवसर देती है, और यही इस नदी की वास्तविक जीत है।