क्या AI आपकी सोचने की शक्ति को मार देगा?

अपने दिल-दिमाग की गहराई बनाए रखिए, वरना एक दिन हमारे पास सब कुछ होगा, सिवाय एक जिंदा दिल के…!
@विजय विनीत
एक सुबह नींद खुली और सबसे पहला सवाल जो दिल में आया उसे आपने खुद से नहीं पूछा। सीधे मोबाइल की स्क्रीन खोली और टाइप किया, “AI, मुझे आज क्या सोचना चाहिए?” यहीं से शुरुआत हो रही है अपनी सोचने की शक्ति को गंवाने की। अब सवाल हमारे भीतर से नहीं उठते, स्क्रीन से झांकते हैं। हम आत्मा से संवाद नहीं करते, प्रॉम्प्ट बनाते हैं। कभी चुप्पी से एक कविता फूटती थी और अब हम गूगल से पूछते हैं, “write a poem on loneliness.”
हमारी आदतें बदल रही हैं। समय के साथ बदलना भी चाहिए, लेकिन हम सोचना, समझना और खुद से संवाद करना छोड़ देंगे तो क्या होगा? पहले मन में कोई हलचल होती थी तो चुपचाप बैठे रहते थे। उसे समझते थे, उससे जूझते थे और अंततः उसे शब्द देते थे। अब हलचल होते ही हम उसे टाइप कर देते हैं, “Why am I feeling sad today?” और जो जवाब मिलता है वह हमारे भीतर से नहीं, बल्कि बाहर से आता है। बिल्कुल एक मशीन की निर्मम, निष्पक्ष, लेकिन भावशून्य सलाह के रूप में घुला हुआ जवाब।
हम उन पलों को खोते जा रहे हैं, जब सोचने के लिए अकेले बैठना पड़ता था। वो एकांत, जो विचारों को जन्म देता था। हमारे सवाल अब हमारी आत्मा से नहीं, मशीन से निकलते हैं। सोचने की शक्ति धीरे-धीरे अभ्यास से आती है। जैसे शरीर को व्यायाम की ज़रूरत होती है, वैसे ही दिमाग को विचारों की ज़रूरत होती है। जब हर काम का आसान रास्ता सामने हो, जब हर प्रश्न का उत्तर तैयार हो तो सोचने का अभ्यास धीरे-धीरे खत्म होने लगता है।
हम पहले किताबों में जवाब ढूंढ़ते थे और अब जवाब तैयार हैं, एक क्लिक पर। हर चीज़ आसान लगती है। अगर हम हर रचना AI से करवाने लगें और हर फैसला AI से पूछने लगें और हर विचार पहले किसी मॉडल से पास करवाएं तो धीरे-धीरे हमारी खुद की सोचने की क्षमता खत्म हो जाएगी। फिर हम सिर्फ ऑपरेटर होंगे और मशीनें चलाने वाले जीव। इन मशीनों में जज़्बात कम और आदतें ज़्यादा होंगी।
हम भूलते जा रहे हैं कि सोच केवल डेटा से नहीं बनती, वह अनुभव से बनती है। वह गलती करने से, हारने से, भ्रमित होने से और अंततः अपने भीतर उतरकर सच्चाई को खोजने से बनती है। AI यह सब नहीं करता। वह न टूटता है, न हिचकता है, न पछताता है, लेकिन इंसान इन्हीं प्रक्रियाओं से बड़ा होता है। सोचिए, क्या यह सहूलियत हमारी सोचने की आदत को कुंद नहीं कर रहीं?
निःसंदेह AI तेज़ है, स्मार्ट है और ज्ञान का पहाड़ है। वह समस्या नहीं, एक अद्भुत उपलब्धि है। वह कुशल है और तथ्यात्मक है। वह आपकी रिपोर्ट भी लिख सकता है, आपके लिए प्रेमपत्र लिख सकता है। कविताएं भी गढ़ सकता और उसे गा भी सकता है। एक विचार को नये शब्द दे सकता है। सवाल यह है कि ऐसा क्या है जो AI नहीं जानता। वह उस घाव को नहीं समझ सकता जो टूटे रिश्ते के बाद दिल में उतरता है। वह उस बेचैनी को नहीं पहचान सकता जो मां की आंख से चुपचाप गिरा आंसू कहता है। वह किसी की आंख में तैरती हुई उस खामोशी को नहीं पढ़ सकता, जिसमें कभी सैकड़ों शब्द भरे होते हैं।
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस उस टूटे हुए रिश्ते की पीड़ा नहीं जानता, जहां एक इंसान चुपचाप तन्हाई से लड़ रहा हो। वह बच्चे की आंखों में आई हार की नमी नहीं पहचानता। वह उस खामोशी की भाषा नहीं समझता। अपनों के बिछड़ जाने के बाद उपजने वाली पीड़ा को वह नहीं समझ सकता।
सोचना एक अभ्यास है। जैसे शरीर बिना व्यायाम के कमजोर पड़ता है। मशीनें हावी होंगी तो हर बच्चा GPT से होमवर्क करवाएगा। हर लेखक AI से ही कविता-कहानी लिखवाएगा। हर रचनाकार रेडीमेड विचारों से अखबारों के पन्ने भरेगा तो फिर रचनात्मकता कहां बचेगी? ऐसे में इंसान क्या बन जाएगा? सिर्फ एक मशीन चलाने वाला प्रयोक्ता अथवा पासवर्ड और टेम्प्लेट का गुलाम?
तकनीक सहायक हो सकती है, लेकिन विकल्प नहीं बन सकती। हमारा गुस्सा, हमारी करुणा, हमारी चुप्पियां, हमारी बेचैनियां ये सब किसी एल्गोरिद्म से नहीं बनतीं। AI जवाब दे सकता है, लेकिन वह किसी अधूरे ख़्वाब की टीस नहीं जान सकता। वह यह नहीं समझ सकता कि जब कोई अपना चला जाए तो दिल किस तरह भारी हो जाता है।
AI को जरूर अपनाइए लेकिन मदद के लिए, सहयोग के लिए। भरोसा सिर्फ अपने विचारों पर रखिए। मत छोड़िए वो पुरानी आदतें। किताबें पढ़ने, अपनों को पत्र और डायरी लिखने की आदतें। अकेले में बैठकर खुद से सवाल करने की आदतें। कभी-कभी हार मानकर भी फिर से उठ खड़े होने, गलती करने और फिर उसे सुधारने की आदतें।
जब आप खुद से सवाल करना छोड़ देंगे, जब हर विचार कॉपी लगेगा। जब हर निर्णय सिर्फ ‘जैसा सब कर रहे हैं’ बन जाएगा। तब नुकसान AI नहीं करेगा। आप खुद अपनी सोचने की ताक़त को दफना चुके होंगे। यह समय सोचने का है कि क्या हमें AI का उपयोग करना है या उस पर निर्भर होना है? क्योंकि फर्क बड़ा है। हम तकनीक के साथ-साथ अपनी सोचने, महसूस करने और संवेदना रखने की शक्ति को भी बनाए रखेंगे? यही चुनौती है आज के इंसान के सामने इंसान बने रहने की। इसलिए डरिए मत। सिर्फ सावधान जरूर रहिए।
धरती पर इंसान वही है जो सोचता है। जो खुशी और दुख-दर्द को महसूस करता है। जो रोता है, हंसता है, गलती करता है और खुद को बेहतर बनाता है। AI तेज़ हो सकता है लेकिन उसे इंसान ने ही बनाया है। इंसान से बनाई गई चीजें उसके दिमाग के भला तेज कैसे हो सकती हैं? इंसान से गहरा कोई नहीं है।
AI को अपनाइए, लेकिन अपनी आत्मा को न भूलिए। अपनी सोच को जिंदा रखिए। सवाल पूछिए, खुद से भिड़िए, असहमत होइए। गलतियों से सीखिए और जवाबों को खुद तलाशिए। तकनीक जितनी भी आगे जाए, लेकिन इंसान पीछे न छूटे यह सोचना ज्यादा जरूरी है।
किसी इंसान अथवा मशीन पर आप पूरी तरह निर्भर हो जाते है तो वह स्थिति आपको गुलाम बना देती है। अगर हमारी सोचने की शक्ति चली गई तो हम सब सिर्फ तेज़ दिमाग वाले, लेकिन खोखले दिल वाले प्राणी बनकर रह जाएंगे, जहां सब कुछ होगा…सिवाय मनुष्यता के। अपने दिल-दिमाग की गहराई बनाए रखिए, वरना एक दिन हमारे पास सब कुछ होगा, सिवाय एक जिंदा दिल के…!