बनारस में पित्ताशय का कैंसर परोस रही गंगा
मैली होती जीवनदायिनी गंगा
विजय विनीत
तारने वाली गंगा बनारस में मृत्युशैया पर पड़ी है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड लाख दावा करे, लेकिन काशी में स्थिति काफी खराब है। नदी के बीच में जहां-तहां बालू के टीले उभरने लगे हैं। रामनगर से राजघाट के बीच बालू खनन बंद होने से रेत का मैदान फैलता जा रहा है और गंगा सिकुड़ती जा रह है। साथ ही पानी भी घटता जा रहा है। प्रदूषण की हालत तो यह है कि इसका पानी पीना तो दूर, आचमन लायक भी नहीं रह गया है। गंगा निर्मलीकरण के लिए अब तक हुए प्रयास हवा-हवाई साबित हुए हैं।
गंगा में पानी कम होने की दो वजह है। पहला नदी के मुहाने पर टिहरी में बना बांध नदी के प्रवाह को रोक रहा है। दूसरा जगह-जगह लिफ्ट कैनाल बनाकर गंगा जल बाहर निकाला जा रहा है। हाल के दिनों में लगभग 50 से 60 सेमी तक पानी घटने से वेग घट गया है। इससे बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) बढ़ता जा रहा है। घाट के किनारे कई स्थानों पर बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) 16 से 21 मिलीग्राम प्रति लीटर है, वहीं नालों के किनारे इसी मात्रा 50 से 60 मिलीग्राम तक पहुंच गई है। इससे जल संबंधी बीमारियां तेजी से फैलती जा रही हैं।
गंगा को जीवनदायनी माना गया है। इसकी वजह यह है कि इसका जल कभी खराब नहीं होता। दरअसल विश्व की सभी नदियों से गंगा में ज्यादा आक्सीजन रखने की क्षमता है। गंगा के मुहाने के जल में आक्सीजन घुलने की क्षमता 10 से 12 मिलीग्राम प्रति लीटर है। अन्य नदियों में आक्सीजन रखने की क्षमता 8 मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक नहीं है। खास यह है कि गंगाजल में घुलित आक्सीजन (डीओ) सैकड़ों साल तक रह सकता है क्योंकि इसके जल में कार्बनिक, अकार्बनिक और जौविक पदार्थ आपस में प्रतिक्रिया नहीं करते। ये पदार्थ अन्य नदियों के जल के आक्सीजन को नष्ट कर देते हैं।
गंगा अन्वेषण केंद्र के पूर्व समन्वयक प्रो.यूके चौधरी कहते हैं कि गंगा में रासायनिक अवयवों की मात्रा विश्व की अन्य नदियों से कम है। जिस जल में घुलित रासायनिक अवयव (टीडीएस) कम होता है उसमें आक्सीजन की मात्रा अधिक होगी। टीडीएस वेग पर निर्भर करता है। जिस स्थान पर पानी में टीडीएस ज्यादा होगा, वहां घुलित आक्सीन की मात्रा अधिक होगी। प्रो.चौधरी के मुताबिक बनारस में गांगाजल में आक्सीजन की मात्रा विलुप्त हो रही है। इसका मतलब यह है कि पानी में वेग नहीं है। पानी घटने और नदी के सिकुड़ने का अर्थ यह है कि गंगा मर रही है। टीडीएस का बढ़ने और अन्य नदी नालों के कारण गंगाजल की गुणवत्ता प्रभावित कर रही है।
नदी में बैक्टिीरिया की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे पेचिश के अलावा आंत्रशोथ, पीलिया आदि बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है। कारण यह है आधा बनारस गंगा के पानी पर ही निर्भर है। बीएचयू आईएमएस के निदेशक प्रो.वीके शुक्ला के मुताबिक, बैक्टीरिया के चलते गंगा जल पीने वालों में पित्ताशय का कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। दूसरे शहरों के मुताबिक बनारस में यह बीमारी अब महामारी के रूप में फैलती जा रही है।
0 महत्वपूर्ण बिंदु
0 गंगा निर्मलीकरण पर पहले चरण में 3807.926 लाख रुपये खर्च हो चुका है।
0 गंगा घाटों पर घुलित आक्सीजन (डीओ) की मात्रा 2 से 5 मिलीग्राम प्रति लीटर है, जबकि बीच में डीओ 6.50 मिलीग्राम प्रति लीटर है।
0 गंगाजल में डीओ 6 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम नहीं होना चाहिए।
0 बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) 7 से 8 मिली ग्राम (नदी के बीच), घाटों पर बीओडी 16 से 21 मिली ग्राम प्रति लीटर और नालों के पास 60 से 80 मिलीग्राम प्रति लीटर है।
0 गंगा में बीओडी की न्यूतनम मात्रा एक या दो मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए।
0 क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े
वाराणसी। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहायक वैज्ञानिक अधिकारी टीएन सिंह बेबाकी से स्वीकार करते हैं कि गंगा तेजी से बीमार होती जा रही है। साथ ही बीमारी फैलाने वाले कॉलीफाम बैक्टिरिया की संख्या तेजी से बढ़ रही है। श्री सिंह मुताबिक अप स्टीम में गंगा भले ही स्वस्थ है, लेकिन बैक्टिरिया की मात्रा बहुत ज्यादा अधिक है। मध्य स्टीम में गंगा अद्ध स्वस्थ है और डाउन स्टीम में बीमार है। डाउन स्टीम में कॉलीफाम बैक्टिरिया की संख्या करीब 2 करोड़ 40 लाख तक है, जबकि होना चाहिए महज दस से पचास।
0 गंगा में घुल रहा जहर
राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के संस्थापक विशेषज्ञ सदस्य एवं बीएचयू के प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी का मानना है कि गंगा बेमौत मर रही है। भागीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों पर बांध बनाए जाने से गंगा में जल प्रवाह लगातार घटता जा रहा है। वाराणसी में करीब 375 एमएलडी मलजल आता है। इसमें करखानों का मलजल 75 एमएलडी है। इसमें विषाक्त लेड, कैडमियम, क्रोमियम, निकिल, कापर आदि जहरीले रसायन शामिल होते हैं। गंगा में गिरने वाले जल को शोधित करने के लिए दीनापुर (क्षमता-80 एमएलडी) और भगवानपुर (क्षमता 9.8 एमएलडी) और डीएलडब्ल्यू दस एमएलडी के प्लांट लगाए गए हैं।
इनसे घुलता है जहर
ज्ञान प्रवाह ड्रेन, सामने घाट ड्रेन, महादेव घाट, अघोरेश्वर आश्रम घाट, रामघाट, नगवां (अस्सी), रविदास पार्क, गंगा महल घाट, निरंजन घाट, शिवाला घाट, डंडी घाट, हरिश्चंद्र घाट, विजयानगरम, चौकी घाट, क्षेमेश्वर घाट, पांडेय घाट, अहिल्या बाई घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, मान मंदिर घाट, मीरघाट, ललिता घाट, जलासेन घाट, मणिकर्णिका घाट, संकठा घाट, भोंसले घाट, मेहता घाट, पंचगंगा घाट, ब्रह्मा घाट, लाल घाट, त्रिलोचन घाट, गोल घाट, नंदेश्वर घाट, तेलिया नाला, भैसासुर घाट, राजघाट ड्रेन- एक, राजघाट ड्रेन-दो, वसंत कालेज आउट फाल से वरुणा संगम तक।
0 अत्याधुनिक डिजिटल ऐप बेकार
गंगा की सेहत सुधारने के लिए पीएम ने अत्याधुनिक डिजिटल ऐप तैयार कराया था। मकसद था गंगा में गंदगी फेंकने वालों पर नकेल कसना। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सहयोग से अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी पर आधारित ऐप कोई करिश्मा नहीं दिखा पाया। पहले की तरह लोग अपने पशुओं को गंगा में नहलाते हैं और साबुन से कपड़े भी धोते हैं।
0 मोदी के शीर्ष एजेंडे में निर्मल गंगा
निर्मल गंगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शीर्ष एजेंडे में शामिल है। वाराणसी संसदीय सीट से चुनाव जीतने के बाद वह पहली बार बनारस आए तो गंगा घाट पर उन्होंने नमामि गंगे परियोजना शुरू करने का ऐलान किया। साथ ही गंगा के खोये हुए गौरव को वापस दिलाने का संकल्प भी लिया था और कहा था कि मुझे तो गंगा ने बुलाया है, न मैं खुद आया हूं न और किसी ने भेजा है। बाद में अस्सी घाट पर फावड़ा चलाकर सफाई की थी। गंगा निर्मलीकरण के लिए काशी को अब तक फूटी कौड़ी नहीं मिली। मोदी सरकार ने 20 हजार करोड़ रुपये खर्च करने का निर्णय लिया था। बीस महीने गुजर जाने के बावजूद बीमार गंगा की न तो सेहत सुधरी और न ही घाटों की सफाई हुई। बीते दशकों में गंगा एक्शन प्लान पर करोड़ों रुपये खर्च हुए हैं, लेकिन नदी आज भी प्रदूषित है।