संस्मरण: सिक्किम के पेलिंग में ‘कंचनजंघा’ ने हमें कर दिया हक्का-बक्का

संस्मरण: सिक्किम के पेलिंग में ‘कंचनजंघा’ ने हमें कर दिया हक्का-बक्का

विजय विनीत

मेरा सफर बनारस से शुरू हुआ। मुगलसराय से मुझे एनजेपी रेलवे स्टेशन के लिए ट्रेन पकड़नी थी। इस सफर का मकसद था सिक्किम को बेहद करीब से देखना। 03 अक्टूबर 2023 को हम न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन पहुंचे और टैक्सी से पेलिंग के लिए रवाना हुए। पूरे दिन रास्ते भर बारिश होती रही। भूस्खलन के चलते कई स्थानों से टैक्सी को निकाल पाना बेहद मुश्किल था। मूसलधार बारिश के चलते हम देर शाम पेलिंग पहुंचे। पेलिंग, भारत के सिक्किम के ग्यालशिंग जिले का एक हिल स्टेशन है, जो 2,150 मीटर (7,200 फीट) की ऊंचाई पर बसा है। यह शहर जिला मुख्यालय ग्यालशिंग शहर से 10 किमी और गंगटोक से 131 किमी की दूरी पर स्थित है।

भारत के नक्शे में पश्चिमी सिक्किम का एक छोटा सा शहर है पेलिंग। बेहद खूबसूरत और शांत शहर। ऐसा शहर जो अपनी प्राकृतिक छटा से समूचे सिक्किम का सौंदर्य प्रदर्शित करता है। हिमालय की गोद में बसे पेलिंग में आकर हर कोई हक्का-बक्का हो जाता है। हम भी पेलिंग की हसीन वादियों पर मोहित हो गए। बर्फ़ से ढंके हुए पहाड़ और पहाड़ की चोटियों से दिखने वाले मनोरम दृश्य पेलिंग शहर को और भी हसीन बना देते हैं। इस शहर से कंचनजंघा का बेहद मनोरम नजारा दिखता है। पेलिंग का समृद्ध इतिहास और संस्कृति इसे गंगटोक के बाद सिक्किम का सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्‍थान बना देते हैं।

टूअर एजेंसी ने किसी तारांकित होटल में ठहराने के लिए अनुबंध किया था, लेकिन हमें उस होटल में ले जाया गया जो सिर्फ नाम के लिए होटल था। बनारस के बजट होटलों से भी बदतर था इंतजाम और खान-पान। हम आरामदायक और आत्म-सुखद की अनुभूति लिए पेलिंग पहुंचे थे, लेकिन बेहद घटिया होटल में ठहरने के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था। किसी तरह रात बीती। सुबह हुई तो हिमालय के दर्शन ने मेरे दिल को छू लिया। कंचनजंघा की पहाड़ियों पर जमी बर्फ की झिलमिलाहट से मन को सुकून मिला। वैसे तो सारा सिक्‍किम ही बेहद खूबसूरत है, पर पेलिंग की बात ही कुछ और है। कहीं भी खड़े हो जाएं कंचनजंघा की चोटियां शान से अपना सर उठाए खड़ी दिखाई देती हैं।

नाश्ते के बाद हम पेलिंग शहर और उसके आसपास के दर्शनीय स्थलों की यात्रा करने के लिए तैयार हुए तभी जोरों से बारिश शुरू हो गई। घनघोर बारिश की बेड़ियों ने हमारे पैरों को जोरों से जकड़ लिया। टैक्सी वाले भी कम खिलाड़ी नहीं निकले। वो तेज बारिश और विनाशकारी बाढ़ का डर दिखाकर हमें गुमराह करते रहे, जिसके चलते हमारा काफी वक्त निकल गया। काफी हीला-हवाली और जद्दोजहद के बाद टैक्सी वाले हमें ‘पेलिंग ग्लास स्काईवॉक’ पर ले जाने के लिए राजी हुए। दरअसल, वो अपनी गाड़ियों का ईधन बचाने के फेर में हमारे साथ खेल करते रहे और हम कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं थे।

पेलिंग घूमने निकले तो इस शहर के प्राकृतिक सौंदर्य और शांति ने हमें खींच लिया। ‘पेलिंग ग्लास स्काईवॉक’ पहुंचे तो हम अवाक रह गए। यहां जितनी देर तक रहे, बादल हमारे साथ अठखेलियां करते रहे। कभी काले-कजरारे बादल आते तो कभी अचानक लापता हो जाते। कभी डराते तो कभी जोरों से बारिश करने लगते। बादलों के खेल ने हमारे दिलों को छू लिया। ‘पेलिंग ग्लास स्काईवॉक’ पर टहलने का अनुभव बेहद सुखद रहा। पहली बार हमने किसी कांच के पुल पर चक्रमण किया और वहां गमले में लगे बेहद खूबसूरत फूलों को निहारा। वाकई एक अद्वितीय अनुभव था। यहां हमें अपने पैरों के नीचे गहरी खाइयों को देखने और उनकी खासियतों को समझने का मौका मिला। 

‘पेलिंग ग्लास स्काईवॉक’ से हमने अपनी आंखों से पेलिंग की आंचलिक बस्तियों को भी देखा जो बेहद खूबसूरत लग रही थीं। स्काई वाक करते हुए हम बुद्ध प्रतिमा स्थल पर पहुंचे तो वहां के प्राकृतिक सौंदर्य ने हमें काफी प्रभावित किया। बुद्ध का दर्शन करने के लिए कई खड़ी सीढ़ियां चढ़नी पड़ी। इन सीढ़ियों पर चढ़ना और फिर उतरना थकाने वाला काम जरूर था, पर उसका एहसास वाकई सुखद रहा। हमने स्काईवॉक के दौरान वहां के सुरम्य वातावरण में बारिश और बादलों की करतल ध्वनि के साथ अपना तारतम्य बिठाया और उन हसीन पलों को अपने मोबाइल में कैद भी किया।

इसके बाद हम पेमायांग्त्से मठ’ पहुंचे। यह सिक्किम के सबसे पुराने और प्रमुख मठों में से एक है। एल्गिन माउंट पांडिम के ठीक सामने। इसे 17वीं शताब्दी में ल्हात्सुन चेन्पो ने बनवाया था। तिब्बती बौद्ध धर्म के निंगमा आदेश का पालन पेमायांग्त्से मठ द्वारा किया जाता है। सिक्किम में उसी आदेश का पालन करने वाले सभी मठों को यही नियंत्रित करता है। मठ की तीन मंजिला इमारत की दीवारों पर पेंटिंग और विभिन्न मंजिलों पर संतों और रिनपोछे की मूर्तियों को उकेरा गया है।

पेमायांग्त्से मठ’ की वास्तुकला में जो सुंदरता है और इसकी दीवारों के भीतर जो शांति महसूस होती है, वह कंचनजंगा पर्वत के दृश्य के साथ सामने आती है। बौद्ध धर्म की विरासत और संस्कृति से रुबरु कराने वाले पेमायांग्त्से मठ में खूबसूरत जांगडोक ने हमें चकित कर दिया। खास बात यह है कि इस मठ के भिक्षु अन्य मठों से अलग दिखे, क्योंकि बौद्ध मठों में पहनी जाने वाली पीली टोपी के विपरीत ये लाल टोपी में थे। यहां के धार्मिक माहौल ने हमें आत्मिक शांति का अहसास कराया।

‘सेवरो रॉक गार्डन’ और ‘दाराप गांव’ भी हमारे दर्शनीय स्थलों की सूची में थे, लेकिन घनघोर बारिश के चलते हम वहां नहीं जा सके। हम पेलिंग के ऐतिहासिक ‘रबडानसे खंडहर’  का भी दीदार नहीं कर सके जो सिक्किम के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ‘रिम्बी वॉटर फॉल्स’ को देखने की मुराद पूरी नहीं हो सकी। हम ‘खेचियोपालरी झील’ की ओर निकले। तभी जोरों से बारिश होने लगी और भूख का एहसास होने लगा। निराश होकर हम होटल में लौट आए।

पेलिंग बहुत महंगा शहर नहीं है। यहां थोड़े पैसे देकर लजीज व्यंजन का लुफ्त उठाया जा सकता है। यहां मछली-भात हर जगह मिल जाता है। शाकाहारी हैं तो दाल-भात और सब्जी भी। आमतौर पर सभी रेस्टोरेंट में शाकाहारी और मांसाहारी भोजन एक ही रसोईघर में बनाए जाते हैं। पेलिंग के मोमोज खाएंगे, उसके स्वाद को कभी नहीं भूल पाएंगे। जिस रेस्टोरेंट में मोमोज खाने पहुंचे वह देवरिया के सलेमपुर के महेंद्र गुप्ता का था। कई दशक पहले महेंद्र के पिता पेलिंग पहुंचे थे और वहीं बस गए थे। महेंद्र गुप्ता से मुलाकात हुई तो वो मिठाई लेकर हमसे मिलने आए। कुछ ही पल में उनके साथ हमारा नेह का रिश्ता जुड़ गया।

महेंद्र ने बताया, ‘शुरू में पेलिंग जंगलों से भरा इलाका था, जिसमें कई खुंखार जानवरों का बसेरा था। पेलिंग में लिम्बु समुदाय की जनजाति पायी है। इस क्षेत्र में कई ट्राइब्स की कई उपजातियां भी हैं जैसे खामधक, मुरिंगला, लिंगदेन और पघा। यहाँ के लोगों का प्रमुख व्‍यवसाय खेती है। इलायची, मक्का, धान, गेहूं और कुट्टू यहां की मुख्‍य फसलें हैं। पेलिंग का विकास एक समृद्ध शहर के रूप में होने का सबसे बड़ा कारण यहां बने दो बौद्ध मठों पेमयांग्स्ते और संगाचोलिंग, जिनके बीच में यह शहर स्थित है।’

पेलिंग शहर के लोगों ने बातचीत में हमें बहुत कुछ जानकारी दी! बताया कि अगस्‍त के महीने के आस-पास आएंगे तो यहां हर साल मनाए जाने वाले कंचनजंघा त्योहार का लुफ्त उठा सकते हैं। इस दौरान यहां हर ओर उत्सव का माहौल नजर आता है। त्योहार के दौरान कई तरह के खेल-तमाशे होते हैं। वॉटर रॉफ्टिंग, कयाकिंग, ट्रेकिंग, पहाड़ों पर बाइकिंग और दूसरे एडवेंचर गेम्‍स के साथ कई पारंपरिक खेलों में आप भी शामिल हो सकते हैं। साथ ही पेलिंग इलाके का पारंपरिक लिम्बु नृत्य, उडिंग और छब रंग के भी मजे ले सकते हैं।

सिक्किम के पेलिंग शहर में जाना कतई मुश्‍किल नहीं है। ये इलाका भारत के कई प्रमुख शहरों से हवाई और रेल मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। गर्मी के मौसम में जब भी मौका मिले आप पेलिंग जा सकते हैं और प्रकृति के मनोरम नजारों का दीदार करते हुए इस शहर की यादों को हमेशा के लिए अपने दिल में बसा सकते हैं। पेलिंग शहर में आने के बाद हमें एहसास हुआ कि इस सफर ने मेरे जीवन को नए अनुभवों की ओर बढ़ने का एक मौका दिया। इस शहर के शांत और प्राकृतिक माहौल ने मेरे दिल को छू लिया, और मैं इस सफर को कभी नहीं भूल पाऊंगा…!

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