इस कुंड में स्नान करने पर पापों से मुक्ति दिलाते हैं भगवान शिव

गोमुख से जुड़ा है चक्रपुष्करणी कुंड का जल स्रोत
जहां मृत्यु मंगलकारी हो और जीवन सफल। स्वर्ग सुख तिनके के समान महसूस हो। यह सिर्फ बनारस में ही संभव है। वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर स्थित चक्रपुष्करणी कुंड के पवित्र जल में स्नान का महत्व अनादि काल से है। मेले जैसा मंजर और कुंड में चौकी पर विराजमान देवी मणिकर्णिका की झांकी का दर्शन कर गोता लगाना सुखद लगता है। साल में सिर्फ अक्षय तृतीया के दिन ही मणिकर्णिका देवी के दर्शन होते हैं।
साफ और दूधिया जल वाला चक्रपुष्करणी कुंड कोई मामूली कुंड नहीं है। चारो धाम का पुण्य और अक्षय फल चाहिए तो अक्षय तृतीया पर मणिकर्णिका घाट पर पौराणिक चक्रपुष्करणी कुंड में स्नान जरूर करें। इस कुंड का जल स्रोत गोमुख से जुड़ा है।
यह वही कुंड है जिसे भगवान विष्णु ने अपने चक्र से स्थापित किया था। काशी में बाबा भोले और पार्वती रोजाना इसी कुंड में स्नान करते हैं। मां मणिकर्णिका के आशीर्वाद से भगवान शंकर लोगों को तारक मंत्र देकर मुक्ति दिलाते हैं।
चारो धाम का पुण्य चाहिए तो करें चक्रपुष्करणी कुंड में स्नान
स्कंद पुराण के काशी खंड में एक श्लोक है, ‘मरणं मंगलं यत्र सफलं यत्र जीवनम्, स्वर्ग्त्रिरणायते यत्र सैषा श्री मणिकर्णिका।’यानी जहां पर मौत मंगलकारी हो, जीवित रहना सफल हो और स्वर्ग सुख तिनके के समान हो, वह श्रीमणिकर्णिका स्थली है। मणिकर्णिका कुंड के प्रधान पुरोहित जयेंद्रनाथ दुबे के मुताबिक काशी खण्ड में इस बात का उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने इस कुंड में हजारों साल तक तपस्या कर भगवान शिव को खुश किया था। बाद में शिव-पार्वती के स्नान के लिए अपने चक्र से कुंड बनाया था। एक बार शिवजी ने ने कहा था कि जो विधि-विधान से इस कुंड में स्नान करेगा वह जीवन की दासता से मुक्त हो जाएगा। उसे चारों धाम के दर्शन-पूजन का पुण्य हासिल होगा।
किवदंतियों के मुताबिक सैकड़ों साल पहले प्रधान तीर्थ पुरोहित राजगुरु के परिवार को इसी कुंड से मां मणिकर्णिका की प्रतिमा मिली थी। यह परिवार पिछली आठ पीढ़ियों से अक्षय तृतीया पर मां मणिकर्णिका का श्रृंगार और पूजा-अर्चना करता आ रहा है।
गंगा के अवतरण से पहले का है कुंड
मणिकर्णिका घाट के संत गोविंद दास जी बताते हैं कि पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक बाबा भोले अपनी पत्नी पार्वती स्नान के साथ पवित्र कुंड में स्नान करने के बाद इतने प्रफुल्लित हो गए कि उनके कान का कुंडल मणि कुंड में गिर गया। तभी से यह कुंड मणिकर्णिका कुंड के नाम से जाना जाता है। मणिकर्णिका कुंड पहले स्थापित हुआ और गंगा का अवतरण बाद में।
मणिकर्णिका कुंड पर कई शिवलिंग, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा है। मां मणिकर्णिका की अष्टधातु की प्रतिमा का श्रृंगार सिर्फ अक्षय तृतीया को होता है। पुरोहित परिवार से जुड़े जयेंद्रनाथ दुबे बताते हैं कि मणिकर्णिका कुंड का जल स्तर घटने लगा है। कुंड के पत्थर खराब हो रहे हैं। पत्थरों का क्षरण रोकने के लिए सरकार को जल्द सार्थक कदम उठाना चाहिए।